जीवन मे सबसे अधिक मेहनत दिमागी और हिम्मत वाला काम ठेकेदारी वाला कहलाता है।व्यक्ति जब इस काम को करने मे लग जाता है तो उसके सामने एक साथ हजारो मुशीबत एक साथ इकट्ठी हो जाती है इस काम मे अगर जरा सी चूक हो गयी तो मेहनत और धन दोनो ही बरबाद होते देखे जा सकते है। उसके बाद अगर किसी प्रकार से कार्य मे मेहनत करने के बाद भी करप्सन है तो यह कार्य और भी बेकार हो जाता है वहां पर मेहनत की कीमत खत्म हो जाती है और भ्रष्टाचार का बोलबाला हो जाता है,आदमी एक बार तो धनी बन जाता है लेकिन उससे जीवन मे अन्य काम भी नही होता है,अक्सर इस काम मे लगे रहने वाले लोग अगर मेहनत का कमा कर नही खाते है तो राहु के गोचर के समय मे वे जो पास मे है वह भी गंवा देते है और नाम तथा पोजीसन भी उनकी गिर जाती है। इस कुंडली मे छठे भाव का मालिक मंगल है यी मंगल लगन का भी मालिक है। भाग्य के दाता चन्द्रमा मंगल के साथ है। लगनेश जब अष्टम मे होते है तो वह जोखिम लेने अपमान सहने खतरनाक काम करने तथा उन्ही कामो को करने का बीडा उठा लेते है जो काम अन्य कोई नही कर पाता है। यात्रा वाले भावो मे तीन तरह की यात्रायें मानी जाती है एक तो जल यात्रा होती है,एक स्थल यात्रा होती है तथा एक वायु यात्रा होती है। यात्रा के कारक भावो मे चौथा भाव अष्टम भाव और बारहवा भाव देखा जाता है। चौथा भाव जमीनी यात्रा या साधारण यात्रा या जनता के बीच मे की जाने वाली यात्रा भी मानी जाती है,केतु जब चौथे भाव मे आजाता है तो वह यात्रा के प्रकार को पटरियों पर रस्सी पर रोपवे आदि के लिये अपना प्रभाव देने लगता है।एक यात्रा खुद के वाहन से की जाती है एक यात्रा सरकारी वाहन से की जाती है,और जब यात्रा का कारक ग्रह लगनेश कार्येश भाग्येश लाभेश की द्रिष्टि मे आजाता है तो जातक यात्रा वाले कार्यों से धन को कमाना शुरु कर देता है। यात्रा के कारक ग्रहो मे शुक्र और चन्द्रमा को देखा जाता है। जातक का लगनेश मंगल चन्द्रमा के साथ अष्टम स्थान मे बैठा है,यह स्थान जोखिम लेकर किये जाने वाले कामो के लिये भी जाना जाता है। मंगल की द्रिष्टि लाभ भाव मे भी है और धन भाव तथा खानपान भाव के भाव मे भी है मंगल अपनी पूर्ण द्रिष्टि से गुरु और शनि को भी तीसरे स्थान पर विराजमान होने के कारण देख रहा है।
मंगल चन्द्र का मिला हुआ रूप सम्बन्धित भावो के लिये निराशा देने वाला भी होता है।साथ ही यह प्रभाव भाव के त्रिकोण पर भी जाता है,यह क्रिया एक प्रकार से जन्म कही और कार्य कहीं,अगर जातक का भाई है तो वह विदेश मे रहने वाला होता है,त्रिक भाव मे होने से माता को आपरेशन के दौर से भी गुजरना पड्ता है। आदि बाते मंगल चन्द्र की उपस्थिति से भी मिलती है। मंगल गर्मी से सम्बन्धित है मंगल बिजली से भी सम्बन्धित है मंगल लोहे से भी सम्बन्ध तब बना लेता है जब वह शनि को अपनी अष्टम द्रिष्टि से देख रहा हो। .इस प्रकार से जो कार्य करने का क्षेत्र जातक को मिलता है वह लोहे से सम्बन्धित वाहन जो पटरियों पर चलता हो और सूर्य के साथ होने पर सरकारी रूप से चलाया जाता हो के लिये माना जायेगा। लेकिन लाभ देने का मालिक बुध अगर मार्गी होता तो जातक रेलवे मे काम करता हुआ पाया जाता,वक्री होने से जातक रेलवे के कार्यों का ठेका लेने के लिये भी माना जाता है। चन्द्र मंगल सूर्य केतु बुध पांचो ग्रहो के मिलने से सरकारी निर्माण कार्य भोजन कार्य कभी कभी के लिये किये जाने वाले कार्यों के लिये भी अपनी युति को प्रदान करते है। राहु के लिये पहले मे लिख कर आया हूँ कि यह कभी काम खूब करवाता है और भूत की तरह से काम करने के लिये आगे बढाता है लेकिन कभी कभी यह बिलकुल ही निठल्ला बना देता है और जातक को कभी कभी ही काम करने के लिये देता है। केतु सूर्य और बुध जब चौथे भाव मे होते है और राहु जब कार्य भाव मे होता है तो जातक के द्वारा कमाया हुआ या किया हुआ कार्य चौथे भाव मे बैठे सरकारी कर्मचारी बुध वक्री यानी उल्टी बातो को थोप कर खा जाते है। इस बात को और भी गहरी नजर से देखने की जरूरत है। जनता मे भ्रष्ट आचार विचार व्यवहार फ़ैलाने वाले लोग उन्ही मे होते है जिनके बारहवे आठवे और दूसरे चौथे छठे भाव मे बुध वकी होता है।
राहु जब कार्यों का मालिक होता है तो वह अपने गोचर से जातक को कार्यों की उपलब्धि दिलवाता है,अगर केतु साथ दे रहा है तो राहु कमा कर बचा सकता है अगर केतु कमाने से अधिक खाने वाले ग्रहों के साथ है तो वह दिन रात कमाने के बाद भी पूर्ति नही डालपाता है।
पिछले समय मे केतु का गोचर अष्टम मे मंगल चन्द्र के साथ रहा है,इस गोचर के कारण जातक ने ठेकेदारी के कार्य किये उन्हे सप्तम के मालिक शुक्र के साझे मे कर दिया। मंगल और चन्द्र ने मिलकर केतु को और भूख दे दी जिससे जो भी कार्य किये गये थे वे उत्तेजना मे आने से और अपने काम को दूसरो से करवाने के कारण जातक के पास जो भी कार्य थे उनके अन्दर मोक्ष दे दिया।
जनवरी 2012 से राहु का गोचर लगन से हटकर बारहवे भाव मे जायेगा और यह राहु जन्म के मंगल चन्द्र सूर्य बुध (व) केतु को अपनी छाया मे लेगा। इस छाया का फ़ल जातक को दिक्कत देने वाला भी हो सकता है,जातक के किये गये कार्यों की बदौलत अगर जातक राहु के उपाय कर लेता है तो जातक को भली भांति सफ़लता भी दे सकता है,अन्यथा यह राहु शनि की सहायता से नवम्बर 2014 तक बेकार और असहाय बनाकर पटक देगा जिससे जातक आगे के जीवन मे केवल अपने परिवार की सहायता पर ही निर्भर होकर रह जायेगा।
मंगल चन्द्र का मिला हुआ रूप सम्बन्धित भावो के लिये निराशा देने वाला भी होता है।साथ ही यह प्रभाव भाव के त्रिकोण पर भी जाता है,यह क्रिया एक प्रकार से जन्म कही और कार्य कहीं,अगर जातक का भाई है तो वह विदेश मे रहने वाला होता है,त्रिक भाव मे होने से माता को आपरेशन के दौर से भी गुजरना पड्ता है। आदि बाते मंगल चन्द्र की उपस्थिति से भी मिलती है। मंगल गर्मी से सम्बन्धित है मंगल बिजली से भी सम्बन्धित है मंगल लोहे से भी सम्बन्ध तब बना लेता है जब वह शनि को अपनी अष्टम द्रिष्टि से देख रहा हो। .इस प्रकार से जो कार्य करने का क्षेत्र जातक को मिलता है वह लोहे से सम्बन्धित वाहन जो पटरियों पर चलता हो और सूर्य के साथ होने पर सरकारी रूप से चलाया जाता हो के लिये माना जायेगा। लेकिन लाभ देने का मालिक बुध अगर मार्गी होता तो जातक रेलवे मे काम करता हुआ पाया जाता,वक्री होने से जातक रेलवे के कार्यों का ठेका लेने के लिये भी माना जाता है। चन्द्र मंगल सूर्य केतु बुध पांचो ग्रहो के मिलने से सरकारी निर्माण कार्य भोजन कार्य कभी कभी के लिये किये जाने वाले कार्यों के लिये भी अपनी युति को प्रदान करते है। राहु के लिये पहले मे लिख कर आया हूँ कि यह कभी काम खूब करवाता है और भूत की तरह से काम करने के लिये आगे बढाता है लेकिन कभी कभी यह बिलकुल ही निठल्ला बना देता है और जातक को कभी कभी ही काम करने के लिये देता है। केतु सूर्य और बुध जब चौथे भाव मे होते है और राहु जब कार्य भाव मे होता है तो जातक के द्वारा कमाया हुआ या किया हुआ कार्य चौथे भाव मे बैठे सरकारी कर्मचारी बुध वक्री यानी उल्टी बातो को थोप कर खा जाते है। इस बात को और भी गहरी नजर से देखने की जरूरत है। जनता मे भ्रष्ट आचार विचार व्यवहार फ़ैलाने वाले लोग उन्ही मे होते है जिनके बारहवे आठवे और दूसरे चौथे छठे भाव मे बुध वकी होता है।
राहु जब कार्यों का मालिक होता है तो वह अपने गोचर से जातक को कार्यों की उपलब्धि दिलवाता है,अगर केतु साथ दे रहा है तो राहु कमा कर बचा सकता है अगर केतु कमाने से अधिक खाने वाले ग्रहों के साथ है तो वह दिन रात कमाने के बाद भी पूर्ति नही डालपाता है।
पिछले समय मे केतु का गोचर अष्टम मे मंगल चन्द्र के साथ रहा है,इस गोचर के कारण जातक ने ठेकेदारी के कार्य किये उन्हे सप्तम के मालिक शुक्र के साझे मे कर दिया। मंगल और चन्द्र ने मिलकर केतु को और भूख दे दी जिससे जो भी कार्य किये गये थे वे उत्तेजना मे आने से और अपने काम को दूसरो से करवाने के कारण जातक के पास जो भी कार्य थे उनके अन्दर मोक्ष दे दिया।
जनवरी 2012 से राहु का गोचर लगन से हटकर बारहवे भाव मे जायेगा और यह राहु जन्म के मंगल चन्द्र सूर्य बुध (व) केतु को अपनी छाया मे लेगा। इस छाया का फ़ल जातक को दिक्कत देने वाला भी हो सकता है,जातक के किये गये कार्यों की बदौलत अगर जातक राहु के उपाय कर लेता है तो जातक को भली भांति सफ़लता भी दे सकता है,अन्यथा यह राहु शनि की सहायता से नवम्बर 2014 तक बेकार और असहाय बनाकर पटक देगा जिससे जातक आगे के जीवन मे केवल अपने परिवार की सहायता पर ही निर्भर होकर रह जायेगा।
- राहु के उपायो मे जातक अनैतिक कामो को नही करे.
- अधिक चिन्ता के कारण घर के माहौल में तनाव नही फ़ैलाये.
- अपने को धर्म स्थानो मे ले जाकर श्रद्धा पूर्वक अपने इष्ट की सेवा को करता रहे.
- इस राहु का असर पत्नी पर भी जाता है इसलिये जातक अपनी पत्नी की किसी भी बीमारी या दिमागी उलझन मे अपने को सहानुभूति से प्रस्तुत करे.
- जातक घर के किसी भी सदस्य को कटु वचन नही कहे अन्यथा बुरी बाते तो पूरी हो जाती है भली बाते पूरी नही होती है.
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