Monday, March 12, 2012

भूत विश्लेषण

गुरु जीव का कारक है और सूर्य आत्मा है,इस बात से सभी परिचित है। जीव को बल देने के लिये जब भावानुसार ग्रह अपनी अपनी शक्ति से पूर्ण करते है तो जीव गुरु के रूप मे अपनी औकात को बनाता चला जाता है। जिन्दा रहने तक गुरु की स्थिति है और मरने पर शनि की स्थिति का बनना सत्य है.जब शनि राहु के साथ हो तो और भी सत्यता का प्रकट होना माना जाता है और जब मंगल भी अपनी युति शनि को दे दे तो मृत धारणा अपनी गर्मी को प्रकट करने के लिये भी गुप्त रहस्य को उजागर करने के लिये जानी जा सकती है। वृश्चिक लगन के लिये एक धारणा बहुत ही शक्तिशाली बन जाती है वह धारणा अक्सर रहस्य खोजने और रहस्यों से पर्दाफ़ास करने की भी होती है। इस लगन वाले जातक जब और अपनी धारणा को प्रकट करने मे समर्थ हो जाते है जब गुरु उनके अष्टम मे जाकर विराजमान हो जाये। गुरु जिस भाव मे होगा और जिस राशि मे होगा गुरु पर जो भी ग्रह अपना अच्छा बुरा असर दे रहे होंगे वही कारक गुरु के लिये बढाने वाले हो जायेंगे और गुरु उन्ही कारको मे अपने प्रयासो को जारी रखने सम्बन्ध बनाने और ज्ञान के क्षेत्र मे विस्तार के लिये माना जायेगा गुरु के आगे और गुरु के पीछे के ग्रह भी गुरु को जल्दी बल देने के लिये अपनी अपनी शक्ति का प्रयोग करना शुरु कर देंगे। किसी भी ग्रह से आगे राहु और केतु उस ग्रह से लेना शुरु कर देते है और ग्रह के पीछे के राहु केतु उस ग्रह को देना शुरु कर देते है,लेकिन जन्म के समय के राहु केतु हमेशा ही अपनी शक्ति से लेना और देना जारी रखते है। यथा ब्रह्माण्डे तथा पिण्डे कहावत के अनुसार जो ब्रह्माण्ड मे हो रहा है वह शरीर के अन्दर भी हो रहा है केवल पहिचानने की कला जरूरी है। जितने भी इतिहासकार हुये है उन्होने अपनी बुद्धि से उन रहस्यों को प्रकट करने की कला को जाहिर किया है जो वास्तव मे काफ़ी समय तक छुपे थे और मानव के लिये एक प्रकार से रहस्य बने हुये थे लेकिन इतिहासकारो ने अपनी बुद्धि का प्रयोग करने के बाद उन गुत्थियों को सुलझा लिया जो भौतिकता से परे भी थे और साधारण आदमी के लिये जानने के लिये पहुंच से भी दूर थे। यह कुंडली एक बडे इतिहासकार की है,गुरु जो सम्बन्धो का कारक है और वह वृश्चिक लगन से दूसरे तथा पंचम भाव का स्वमी होकर अष्टम मे विराजमान हो गया है तथा गुरु ने अष्टमेश तथा लाभेश बुध से आपस मे स्थान परिवर्तन का प्रभाव भी दिया है। जो इतिहासकार होते है उनकी बुद्धि मे सबसे पहले भूत प्रेत जिन्न बेताल और भूत के प्रति जिज्ञासा जन्म जात होती है,वे सबसे पहले उन्ही शक्तियों को जानना चाहते है जो समाज मे बखान की जाती है लेकिन वे देखी नही जा सकती है। देखना और समझना दोनो ही अपने अपने स्थान पर बहुत बडे भेद से समझी जा सकती है। अक्सर नवे केतु के लिये यह कहा जाता है कि व्यक्ति के प्रति वह केवल सर्वधर्मी की उपाधि देता है और समाज पिता और परिवार के जो भी कार्य होते है वह अपने स्तर से पूरा करने की कोशिश करता है लेकिन अष्टम गुरु से जब वह आगे के भाव मे यानी नवे भाव मे होता है तो वह गुरु से ज्ञान और सम्बन्ध के बारे मे ग्रहण करता रहता है तथा एक शिक्षा के रूप मे समाज दुनिया को बताता रहता है। नवा भाव ऊंची शिक्षा के लिये भी जाना जाता है और जो भी ऊंची शिक्षा प्राप्त की जाती है वह गुरु के द्वारा दिये गये प्रभाव से ही सम्बभ होती है अगर गुरु को परे कर दिया जाये तो ऊंच शिक्षा का प्रभाव नही बन पाता है,कारण इस भाव का मालिक कालपुरुष की कुंडली के अनुसार गुरु ही है। सतह के भाव को चौथा भाव कहा जाता है सतह से नीचे के भाव को अष्टम मे देखा जाता है और सतह से ऊपर के भाव को बारहवा भाव कहा जाता है,यानी जमीन पर जमीन के नीचे और जमीन के ऊपर। इस लगन मे गुरु का स्थान जमीन के नीचे है और जमीन के नीचे से मतलब होता है अवशेषों के बारे मे जानकारी जो हो चुका है,वह भी इसी भाव मे देखा जाता है जो होना है वह बारहवे भाव से और जो हो रहा है वह चौथे भाव से देखा जा सकता है। क्यों हुआ इसका पता आठवा भाव ही बतायेगा और जो आगे होगा उसके लिये बारहवा भाव ही प्रकट करेगा। जितने भी विद्वान ज्योतिषी है वे सबसे पहले अष्टम के अनुसार अपनी गणना को करना शुरु करते है और जो प्रभाव पिछले समय तक रहे है और उन प्रभावो ने जातक को जो फ़ल दिये है वह अष्टम से मिलते है तथा जो जातक के साथ वर्तमान मे हो रहे है और जातक को जो परेशानी है वह इसी भाव से देखे जा सकते है। तथा जातक के साथ भविष्य मे जो होगा वह बारहवे भाव के स्वामी से ही देखा जा सकता है।

इसी प्रकार से पिछले और अगले जन्म के बारे मे देखा जा सकता है पीछे का जन्म अष्टम से देखा जाता है अगला जन्म बारहवे भाव से तथा चलने वाला जन्म चौथे भाव के आधीन होता है। कल जो सोचा था वह अष्टम की बात थी कल के लिये जो सोचा जायेगा वह बारहवे भाव की बात होगी और अभी जो दिमाग मे चल रहा है वह चौथे भाव की बात होगी। यह भे माना जाता है कि इतिहास को देखकर चलने वाले समस्या का ख्याल रख कर चलते है लेकिन आज की सोच कर कल की देखने वाले अक्सर बरबाद ही होते देखे गये है। यह बात समझने के लिये ही इतिहास का देखना जरूरी होता है,जो इतिहास बताता है वह सत्य की घटना का वर्णन करता है लेकिन जो आगे भविष्य के बारे मे बताते है उनके बताये गये भेद मे कुछ अन्तर भी हो सकता है। इस कुण्डली मे गुरु की स्थिति अष्टम मे है और गुरु मिथुन राशि का है गुरु की नजर दसवे भाव मे भी है और दूसरे भाव मे भी है और चौथे भाव मे भी है। गुरू अपनी पूरी योग्यता का मालिक अष्टम से दे रहा है,जातक अपने द्वारा जो भी भूत के बारे मे सीखा है या उसे जो भी मालुम हुआ है वह पूरी तरह से उसे बखान करने की कोशिश करेगा वह जो भी इशारा या वर्णन करेगा वह अक्षरस: सत्य की तरफ़ ही होगा कारण गुरु झूठ जब तक नही बोलता जब तक उसके ऊपर राहु का प्रभाव नही हो। राहु कनफ़्यूजन देकर झूठ बोलने के लिये अपनी गति को प्रदान कर देगा तो गुरु सत्य से परे चला जायेगा। लेकिन जब गुरु सत्य से परे होगा तो गुरु की सामान्य स्थिति नही होगी वह किसी न किसी कारण से अटकने लगेगा,जैसे गुरु सांस लेने की गति प्रदान करता है सांस लेने का मुख्य स्तोत्र हवा होती है अगर हवा के अन्दर राहु के विषाणु होंगे तो वह गले मे जाकर खरास पैदा कर देंगे वह खरास की जाने वाली बात को अटकाने लगेगी यानी जो भी बात की जायेगी वह खांस कर की जायेगी,अक्सर जो लोग झूठ बोलते है उनके बारे मे भी देखा होगा कि वह बात करते हुये अटक जाते है और वही अटकन बता देती है कि सामने वाला झूठ बोलने की या बात बनाकर बोलने की चेष्टा कर रहा है। गुरु को अगर अनुभव की बातो से जोड कर देखा जाये तो भी एक बात देखने को मिलती है कि झूठ बोलने वाला व्यक्ति अपने किसी न किसी अंग को खुजलाने लगेगा,यह भी राहु का प्रभाव माना जाता है। एलर्जी के रोग तभी पैदा होते है जब जातक के सम्बन्ध उसकी जलवायु से विपरीत हो जाते है,वह जलवायु चाहे खून के विपरीत हो या रहन सहन से दूर हो। जातक का गुरु कर्म भाव को देख रहा है जहां सिंह राशि है इस राशि का मालिक गुरु से दसवे भाव मे है और बुध के साथ है,बुध ने गुरु से राशि परिवर्तन किया हुआ है,जब गुरु इतिहास की बाते बताने से दूर होने लगता है तो उस पर बुध हावी हो जाता है वह बुध पराशक्तियों और ज्योतिष की बाते करने लगता है। गुरु जो शिक्षा को देने वाला है वह बुध के सामने आते ही बोलने और कथन करने तथा ज्योतिष की बाते करने के लिये अपने को आगे लाने लगता है।गुरु सोचने का मालिक है समझने का मालिक जबकि बुध का स्वभाव गणना करने का एक प्रकार से एक दूसरे की बात को पहुंचाने का कारक भी होता है। यही गुरु जब धन भाव से अपनी युति को जोड लेता है और खुद भी धन भाव का मालिक होता है तो वह केवल किसी भी काम को धन से तौल कर देखने लगता है। गुरु जो वृश्चिक राशि के धन भाव का मालिक है और धनु राशि जो न्याय धर्म और कालेज शिक्षा की कारक है से गुरु अपने जीवन यापन के लिये धन को प्राप्त करने का कारण सोचने लगता है। लेकिन गुरु का सम्बन्ध अपने नवे स्थान यानी चौथे भाव मे शुक्र के साथ भी है। गुरु जो महानता का कारक है और शुक्र जो भौतिकता का कारक है से सम्बन्ध बन जाने से वही गुरु ऐश्वर्य की तरफ़ देखने की बात भी करता है और मैने जो पहले कहा है कि चौथा भाव वर्तमान जीवन का कारक है तो वही गुरु जो पहले के समय मे धर्म और आध्यात्मिकता के मामले मे गूढ जानकारी देने और खोजने के लिये माना जाता था वही गुरु अपनी युति से गूध बातो की जानकरी से भौतिकता मे जाकर राज करने की बात भी सोच सकता है।

शुक्र कुंड्ली मे सप्तम का मालिक भी है और बारहवे भाव का मालिक भी है यानी जीवन साथी का मालिक भी है और आराम के साधन जुटाने तथा अपनी औकात को भविष्य मे देखने के लिये भी अपनी सोच को रखने वाला है इसी शुक्र से सम्बन्ध होने के कारण जातक का वर्तमान जीवन अपने जीवन साथी के आधीन भी है। साथ ही आराम के साधन और दूसरी दुनिया की सोच को अपने साथ मिला लेने से वह केवल पिछली ऐतिहासिक जानकारी के लिये ही माना जा सकता है अगर इस गुरु को पिछले जन्म के लिये देखा जाये तो मिलता है कि पिछले जन्म मे भी जातक पुरुष शरीर मे ही था,दुनिया के नक्से मे मिथुन राशि का प्रभाव अलास्का आदि देशो की तरफ़ इशारा करता है तो गुरु का स्थान इसी प्रकार के ठंडे देशो की तरफ़ था। पिछले जन्म का समय अगर देखा जाये तो गुरु का स्थान लगन के अनुसार आठवे भाव मे आते आते 815 साल लग गये है,इस प्रकार से जातक का पिछला जन्म जातक के जन्म से आठ सौ पन्द्रह साल बाद हुआ है। गुरु का स्थान लगन मे रहने पर वृश्चिक राशि मे था इसलिये इस प्रकार के गुरु के कार्यों या तो तकनीकी कार्यों का होना माना जाता है या यही गुरु हेंडीक्राफ़्ट वाले कामो को करने के लिये माना जा सकता है। लगन से गुरु का अष्टम तक जाना धन हिम्मत सुख शिक्षा बीमारी संसार की लडाई इन सभी से वह पिछले समय मे जूझ चुका है इसलिये वह सच्चाई और रहस्यों के गूढ अर्थ को जानना चाहता है,वह पिछले समय मे तकनीकी बुद्धि को रखने वाला था इसलिये उसे अपनी तकनीकी दिमाग से ही सभी बाते जानने की इच्छा भी होनी मानी जा सकती है। जातक अपने दिमाग से पिचले अनुभव के आधार पर जान सकता है कि आगे क्या होने वाला है,कारण जो भी आगे के कारण जाने जाते है वह इतिहास के अनुभव पर भी देखे जाते है और ग्रह गणित और ज्योतिष तथा पराशक्तियों की सहायता से भी देखे जाते है,जातक जीवन के लिये कुछ इस प्रकार की सोच को रखता है कि वह एक भले व्यक्ति की तरह से देखा जाये। यह पिछले जन्म की धारणाओ और अनुभव के आधार पर ही कहा जा सकता है। अक्सर इस प्रकार का पिछला जन्म आगे के लिये जो सोच देता है वह सोच असहाय और बच्चो के भविष्य के विकास की सोच को रखता है,अगर जातक से कहा जाये कि वह किसकी सहायता करेगा तो वह फ़ौरन उत्तर देगा कि बुजुर्गो की सहायता और बच्चो के आगे बढने मे सहायता करना ही उसकी सोच है। इस जीवन मे आने का मतलब ही जातक के लिये माना जा सकता है कि जो सबसे नीचे के तबके के लोग है,जो हमेशा से गंदगी मे पडे रहे है उनकी सहायता करने के लिये जातक का जन्म हुआ है। वह अपनी सिद्धान्तो की दुनिया के बल पर लोगो की  सहायता भी करेगा और जो गूढ बाते है उनकी जानकारी भी प्राप्त करेगा। यह बाते पढने और सुनने मे एक प्रकार से कपोल कल्पना का आभास ही दे सकती है लेकिन इनकी सत्यता के लिये समझने के लिये उसी प्रकार से समझना जरूरी है जैसे एक शरीर केवल अपनी सीमा तक ही काम करने वाला है और जब सीमा समाप्त हो जाती है तो शरीर तो वही रहता है लेकिन वह काम नही कर पाता है। भूत की जानकारी ही इतिहास की जानकारी है जिसे इतिहास आता है वह वर्तमान को समझ कर भविष्य की कल्पना करने के बाद सुखी रह सकता है,जो आज की जिन्दगी को जीकर कल के सपने देखता है वह कल का सुख नही देख सकता है।

12 comments:

  1. guruji pranam, is kundali me chandrama saptam bhav me baitha hai aur lagn me padi vrishchik(MANGAL) rashi par poorn drishti rakhe hai aur teesre bhav me baitha mangal nave bhav me padi kark(CHANDRAMA) rashi ko poorn drishti se dekh raha hai to kya ye chandrama mangal ki yuti hogi ya kisi bhi prakar ka sambandh man jayega.

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  2. विश्वास मै अधिकतर मामले मे दक्षिण भारतीय ज्योतिष शैली को मानने वाला हूँ,जीवन के चार त्रिकोण होते है एक धर्म से सम्बन्धित होता है एक अर्थ से एक काम से और एक मोक्ष नामक पुरुषार्थ से सम्बन्ध रखता है,इस जातक का लगनेश काम वाले त्रिकोण मे विराजमान है,इस त्रिकोण से ही जातक को आजीवन जूझना है,लेकिन मुकाबला करने के लिये सूर्य बुध और केतु अपनी शक्ति को प्रयोग मे लायेंगे,जब भी राहु के साथ कोई भी ग्रह होता है राहु अपनी शक्ति से उन ग्रहों का असर अपने द्वारा दिखाना शुरु कर देता है.यहां पर चन्द्रमा राहु मंगल शनि इन सभी का बल राहु के द्वारा शोख कर अपने मे लिया जा रहा है,राहु जब भी गोचर से अपनी युति किसी भी भाव मे मिलायेगा इन्ही ग्रहो का मिश्रित फ़ल प्रदान करने की अपनी पूरी प्रक्रिया करेगा.शनि राहु और मंगल मिलकर प्राचीन बातो के लिये देखे जाते है और राहु जब पंचम पर अपनी नजर इन ग्रहों के द्वारा डालता है तो वह शिक्षा से सम्बन्धित क्षेत्र होता है लेकिन केतु अपनी हठधर्मी से सूर्य बुध की युति लेकर तथा कभी कभी बुध भी गुरु का स्थान लेकर या गुरु बुध के स्थान पर जाकर बडा नाम और क्रियायें अपनी ऐतिहासिक जानकारियों से प्राप्त कर सकता है.सप्तम का चन्द्रमा हमेशा छल करने वाला होता है और जब भी जातक अपनी युति से पब्लिक सर्विस की तरफ़ अपना रुख करेगा उसका कैरियर खराब हो जायेगा साथ ही शादी विवाह के बाद भी जातक के साथ छल किया जायेगा.

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  3. guruji is blog me apne likha hai ki "गुरु का स्थान लगन के अनुसार आठवेभाव मे आते आते 815 साल लग गये है" ye kis prakar kuch samajh me nahi aaya. ise spasht kare guruji.

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  4. शरीर सहित जीवन कितना भी है लेकिन शरीर से रहित आत्मा का चलन सौ साल माना जाता है.

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  5. लगभग 862 पहले आपका जन्म वर्तमान के थाइलेंड देश में हुआ था,आप पिछले जन्म में स्त्री जातक थे,उस जन्म मे आप या तो अध्यापक थे,या गणितज्ञ थे,या भूविज्ञानी थे,उस जन्म की कुछ व्यापकता के अनुसार आपके अन्दर गहराई से पूंछने की कला,गहराई से किसी भी मामले में खोजने की कला,किसी भी कारकत्व बात वस्तु मनुष्य जीव आदि की गहराई वाले कारणो को जानने की कला भी आपके अन्दर पीछे के जन्म से ही आयी है,अक्सर आपको पुस्तको में पढने के लिये आधुनिक ज्ञान को बटोरने के लिये उतकंठा का बना रहना भी माना जा सकता है,किसी के सामने किस प्रकृति से बात करनी है कैसे अपने को प्रकाशित करना है कैसे हाव भाव दिखाने है यह कला भी आपको पीछे के जन्मो के अनुसार ही मिली है.या यह भी कहा जा सकता है कि आप पैदाइसी एक्टर भी है.पिछले जन्म की बातो का इस जन्म मे साथ रहने के कारणो मे जो बात मुख्य रूप से आपके अन्दर है उसके अन्दर किसी भी पुरानी बात को नये रूप मे बदल कर कहने की और जो भी बाते लोगो के समझ से बाहर की बाते है या जो भी धर्म अर्थ कर्म आदि के बारे मे पिछले समय मे किया जाता था उसके लिये इस समय के बदले हुये रूप मे स्थापित करने और बताने के लिये भी जाना जा सकता है।इन्ही कारणो से जब तक आप दूसरे की जिज्ञासा शान्त करने की कोशिश करते रहेंगे आपका जीवन सुखी और शांत रहेगा। धन के क्षेत्र का मालिक गुरु है गुरु का स्थान आपके नवे भाव मे है जो उच्च का माना जा सकता है,बुध वक्री साथ है जो धर्म ध्वजा के रूप मे भी कहा जा सकता है जो निशान आपके द्वारा जीवन मे लिये जायेंगे वह निशान वही होंगे जो प्रयोग नही करके केवल दिखाये जा सकते होंगे। बुध वक्री का रूप अक्सर गुरु के साथ होने पर उल्टी बुद्धि को सीधा करने के लिये भी माना जा सकता है। शनि मंगल राहु दवाइयों के मामले मे उलझे हुये कार्यो के मामले मे कर्जा दुश्मनी बीमारी के मामले में अन्दरूनी जानकारी जो गूढ बातो के लिये जानी जाती है के लिये भी अपनी सहायता करने वाले है,पिता वाले व्यापार के कार्य और उन कार्यों मे कभी कभी आपसी असमानता भी मानी जा सकती है सुबह शाम के काम भी माने जा सकते है,राजकीय कार्यों मे भी अपने दखल को दिया जाना माना जा सकता है,बडे भाई और पिता के रूप मे राजकीय प्रभाव भी माना जा सकता है.अक्सर प्लान बनाकर किये जाने वाले सफ़ल नही होते है जो काम रास्ता चलते किये जाते है सफ़ल होते है.

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  6. ललित मोहन जी आप अपने बारे और अधिक जानना चाहते है तो कृपया बेव साइट www.astrobhadauria.com पर अपने प्रश्न को भेजे,कमेन्ट मे कुच बाते बहुत गहरी होती है जो सार्वजनिक करना ठीक नही माना जा सकता है.

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  7. Guruji Charan Sparsh!!!

    Mera naam Divya hai. Mujhe apne pichale jiwan ke baare mein janane ki bahut jigyasa hai. Kripaya batain.
    Dob: April 24, 1977
    Time: 11:10 am
    Place : New Delhi

    Dhanyavaad

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  8. swami jee meri dob 19-may-1984,05:12 AM,Almora uttrakhand ki hai.Jara kripa kar ek ane wale kal ke bare mai bataye.maine aap ke blog pade aur mai bada parbhavit hua hu. dhanywad apka Dhirendra Joshi.

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