Thursday, November 3, 2011

चिन्ता सांपिन केहि नहिं खाया,को जग जाहि न व्यापी माया.

प्रस्तुत कुंडली कन्या लगन की है और स्वामी बुध छठे भाव मे विराजमान है,दूसरे भाव मे चन्द्रमा है जो तुला राशि का है तीसरे भाव मे राहु वृश्चिक राशि का है पंचम भाव मे मंगल है जो मकर राशि का है सप्तम मे सूर्य और बुध अष्टम मे शुक्र नवे भाव मे केतु और दसवे भाव मे मिथुन राशि का शनि है.राहु और केतु के बीच मे जितने भी ग्रह होते है वे सभी जैसे एक सांप के पेट मे उसके खाये हुये जीव जन्तुओं जैसे माने जाते है.राहु के पास वाले ग्रह खतरे मे होते है और केतु के पास वाले ग्रह सुरक्षित होते है.लेकिन राहु अपने काल चक्र के अनुसार सभी ग्रहों पर अपना धावा बोलता है,धावा बोलने के समय मे अगर ग्रह वक्री हो जाता है तो बच जाता है और अगर वह अस्त है तो भी राहु उसके पास से निकल जाता है,मंगल की राशि मे ग्रह है तो बच जाता है,और यह मंगल पर द्रिष्टि से अपना प्रभाव डालता है तो मंगल भी राहु के अनुसार अपने कार्य करने लगता है लेकिन मंगल जब राहु को देखताहै तो वह एक गुलाम की तरह से अपना काम करने लगता है.जिस ग्रह को शनि देखता है या अपनी युति रखता है वह अगर शनि की चौथी और दसवी द्रिष्टि से ग्रस्त है तो राहु को उसे पचाने मे कोई दिक्कत नही होती है लेकिन शनि जिस ग्रह को तीसरे और पांचवे तथा सातवी नजर से देखता है वह राहु को पचाना भारी पड जाता है.सभी को पता है कि गुरु हवा का कारक है सूर्य रोशनी और ताप दोनो का कारक है चन्द्रमा पानी का कारक है,मंगल आग के गर्म पिंड के समान है,बुध जिसके साथ है या जिस भाव मे है उसी के जैसा हो जाता है शुक्र सजावट और द्रव्य पदार्थो मे बदले हुये रूप का कारक है,शनि ठण्डी वायु और काली मिट्टी का कारक माना जाता है.गुरु से पिछली राशि जातक का पिछला जन्म और गुरु से अगली राशि जातक का अगला जन्म माना जाता है। राहु से आगे की राशि जातक के पिछले जन्म मे मृत्यु का कारण और राहु से पीछे के राशि आगे के जन्म मे मृत्यु का कारण तथा राहु के स्थान को वर्तमान के जन्म मे मृत्यु का कारण माना गया है.राहु किये जाने वाले प्रयास का कारक है और केतु उन प्रयासो के लिये दिये जाने वाले साधनो का कारक है.राहु जिस भाव मे उसी भाव का और जिस राशि मे है उसी राशि का प्रभाव आजीवन देता है.गोचर से राहु जिस जिस भाव राशि ग्रह के साथ गुजरता जाता है उसी के प्रति जन्म के समय के राशि और भाव का प्रभाव प्रकट करता चला जाता है। केतु का स्वभाव विपरीत माना जाता है जहां जहां राहु अपने असर से दिक्कत पैदा करता चला जाता है वहीं वहीं केतु अपने गोचर से उसे ठीक भी करता चला जाता है,अगर राहु मार कर जाता है तो केतु उसी रूप को किसी न किसी रूप मे पैदा करके जाता है राहु अगर घर को जला कर जायेगा तो केतु नया घर बनाकर जायेगा,राहु अगर भटका कर जायेगा तो केतु उसे स्थापित करके जायेगा। यह समय चक्र लगभग एक सौ आठ महिने का होता है.राहु अपने स्वभाव से चन्द्रमा के साथ चिन्ता को देने वाला होता है मंगल के साथ खून मे इन्फ़ेक्सन को पैदा करता है गुरु के साथ सांस सम्बन्धी बीमारी को देता है बुध के साथ बहुत सारे दिमागी भ्रम भरने के बाद प्रसारण का कारण देता है अच्छे भाव मे है तो अच्छा और बुरे भाव मे है तो बुरा प्रभाव देता है,शुक्र के साथ भौतिक सम्पत्तियों और स्त्रियों के प्रति नशा देता है,शनि के साथ काली आंधी के रूप मे कार्यों और व्यवहार मे अपने को प्रस्तुत करता है.शुक्र के साथ माया का प्रभाव जोडता है और चन्द्रमा के साथ चिन्ता का कारण बनाता है,माया के वशीभूत होकर प्राणी अपने जीवन की गति को भूल कर अजीब से माहौल मे अपने को लगाकर भुला देता है कि वह है क्या और चिन्ता के कारण उसे यह भी पता नही होता है कि उसके जीवन का वास्तविक अर्थ क्या है.गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस की चौपाई इसी भाव को पैदा करने के बाद लिखी गयी थी.

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