Friday, March 9, 2012

राहु उतारने का तंत्र होली

लोग एक दूसरे से आपसी रंजिस मान लेते है कोई किसी बात पर कोई किसी बात पर इन सब बातो से दूर जाने के लिये राहु को उतारना जरूरी होता है। संवत की समाप्ति पर हिन्दू त्यौहारों में दुश्मनी को समाप्त करने के लिये भी एक त्यौहार का प्रचलन आदि काल से भारत मे चल रहा है जिसे होली के नाम से जाना जाता है। होली का शाब्दिक अर्थ हो +ली यानी जो होना था वह हो चुका,और जो हो चुका है उसे साथ लेकर चलने से कोई फ़ायदा नही है इसी बात को ध्यान मे रखकर रंगो का त्यौहार होली मनाया जाता है।होली का प्रचलन कब हुआ किसी को पता नही है लेकिन आदि काल से होली के लिये कई प्रकार के वृतांत लिखे और प्रचलन मे चलते हुये देखे जाते है। होली का एक रूप भगवान शिव के बदन पर उपस्थित भभूत को भी माना जा सकता है। साथ ही भक्त प्रहलाद की बुआ होलिका के द्वारा उन्हे जलाने के लिये किये जाने वाले प्रयास से भी माना जा सकता है। राहु का उदाहरण देखने के बाद पता चलता है कि जो अपने प्रभाव से ग्रहण में ले ले उसे राहु की उपाधि से विभूषित किया जाता है। होलिका को वरदान था कि वह अपने आंचल से जिसे ढक लेगी वह भस्म हो जायेगा और वह खुद बच जायेगी,इस बात को भी तांत्रिक रूप से देखा जा सकता है। दूसरे प्रकार को भी माना जाता है कि भगवान शिव अपने शरीर को भस्म से ढक कर रखते है,यह भस्म और कुछ नही बल्कि उनकी पूर्व पत्नी सती के शरीर की भस्म ही है जो उन्होने अपने पिता दक्ष की यज्ञ मे पिता के द्वारा अपमान के कारण आहुति देकर शरीर को जला डाला था। इस बात मे भी सती की ह्रदय से चाहत ही उन्हे सती की भस्म से विभूषित होने के लिये मानी जा सकती है। रंगो के द्वारा लोग एक दूसरे को रंगते है तो इसका भी मतलब होता है कि लोग अपने अपने अनुसार लोगों को अपने अपने पसंद के रंगो से रंगने के बाद देखकर खुश होते है। भले ही जिसके रंग लगाया जा रहा है वह उसे पसंद नही हो लेकिन दूसरा व्यक्ति अपने रंग से रंगने के बाद देखकर खुश होता है। राहु के इस रंगो के रूप को देखकर भी एक प्रकार से जो व्यक्ति होली के रंगो से रंगने के पहले होता है वह रंगने के बाद उसकी शक्ल मे परिवर्तन होना भी इसी राहु की स्थिति से ग्रहण मे आया हुआ माना जाता है। आज के युग मे जब रंगो की उपलब्धि आराम से हो जाती है पुराने जमाने मे कैमिकल रंगो की अनुपस्थिति से और पेड पौधो की उपस्थिति से प्राकृतिक रंगो से संयोजन से जो होली मनाई जाती थी वह एक प्रकार से उपयुक्त भी होती थी और लोगो के लिये उनके शरीर से कोई दिक्कत नही देने वाली होती थी बल्कि उन रंगो से मौसम के अनुसार त्वचा और मन को पसंद करने वाले रंगो के कारण शरीर और मन को खुशिया देने के लिये भी मानी जा सकती थी। जब शरीर पर मल मल कर रंगो को पोता जाता है तो शरीर से उन रंगो को छुटाने के लिये शरीर को साफ़ भी करना होता है जब शरीर को साफ़ किया जाता है तो सर्दी के मौसम मे रोम कूपों मे जमा मैल भी छूटता है और त्वचा की बीमारिया तथा हर्षोल्लास के कारण मन् का ग्रहण भी कुछ समय के लिये दूर होता है यह बदलाव व्यक्ति के लिये चिन्ता आदि से दूर रहने का मुख्य कारण भी माना जाता है।

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