Friday, October 28, 2011

लक्ष्य की प्राप्ति बनाम राहु की दशा

रामकथा मे शिव पार्वती विवाह का वर्णन मिलता है.यह वर्णन राहु की दशा से पूर्ण कहानी के रूप मे समझ मे आ सकता है.केतु जो ब्रह्माण्ड की धुरी के रूप मे माना जाता है को ही शिव माना गया है,तथा पार्वती सती आदि उनकी पत्नी को राहु के रूप में उपस्थित किया गया है। शिवजी की पूर्व पत्नी सती का अपने पति के प्रति अपमान करने के कारण अपने पिता की यज्ञ मे शरीर को भस्म कर देने के बाद उनका पुनर्जन्म राजा हिमालय के यहां पार्वती के रूप मे हुया। नारद जी ने जब हिमालय के पुत्री जन्म का समाचार सुना तो वे उनके महल मे गये और पार्वती के प्रति अपनी भविष्यवाणी करने लगे,कहने लगे कि पार्वती संसार के सभी गुणो से पूर्ण है और अपने नाम को जगत की माता के रूप मे प्रकट करने वाली है,लेकिन इन्हे जो पति मिलेगा वह माता पिता से हीन होगा,हमेशा उदास रहने वाला होगा,जोगी के वेश मे होगा कोई कार्य नही करने वाला होगा उसे वस्त्र पहिनने और नही पहिनने से कोई मोह नही होगा,ऐसी रेखा पार्वती के हाथ मे है,सभी को पता था कि नारद जी का कथन कभी अधूरा नही होता था। नारद जी ने बाद मे कहा कि जो जो भेद पार्वती के पति के रूप मे बताये है वे सभी गुण भगवान शिव के अन्दर मिलते है.अगर पार्वती का विवाह शंकर जी के साथ हो जाता है तो सभी प्रकार से पार्वती का कल्याण ही माना जायेगा,इसलिये अगर पार्वती भगवान शिवजी को पति के रूप मे प्राप्त करने के लिये भगवान शिवजी की तपस्या करने लगे तो उन्हे वे पत्नी के रूप मे स्वीकार कर सकते है।

मन भगवान शिव की छवि को रखकर पार्वती जी जंगल मे जाकर तपस्या करने लगी,और अपने मन को पूर्ण रूप से भगवान शिव के प्रति अर्पित कर दिया.यही से गोस्वामी तुलसी दास जी ने राहु की दशा का पार्वती के लिये बहुत ही विचित्र तरीके से वर्णन किया है।

"संवत सहस मूल फ़ल खाये,सागु खाइ सत वरष गंवाये"

सहस नाम के संवत में केवल उन्होने मूल फ़ल यानी जडो के रूप मे प्राप्त फ़लो का भोजन किया और सात साल उन्होने शाक खाकर ही तपस्या की.कुछ दिन उन्होने पानी और हवा के सहारे ही बिताये और कुछ दिन उन्होने कठिन उपवास करके ही अपनी तपस्या को जारी रखा,बेल पत्री जो धरती पर सूखी पडी थी,सहस नाम के संवत मे तीन वर्ष तक उसी का सेवन किया। उसके बाद सूखे पत्ते भी खाने छोड दिये और उसी समय से उनका नाम अपर्णा रख दिया गया। जब शरीर सूख कर क्षीण हो गया उस समय उन्हे एक आकाशवाणी सुनाई दी,कि हे पार्वती ! तुम्हारी तपस्या सफ़ल हो गयी है,अपने कष्ट को भूल जाओ तुम्हे भगवान शिवजी पति रूप मे मिलेंगे.जैसे ही तुम्हारे पिता बुलाने के लिये आयें तुम अपने हठ को त्याग कर अपने घर चली जाना,जैसे ही सप्त ऋषि तुमसे मिलने आयें तभी यह प्रमाण मान लेना कि यह आकाशवाणी मिथ्या नही है। इतनी बात सुनने के बाद तपस्या से क्षीण शरीर मे स्फ़ूर्ति आ गयी।

इस प्रकार से पार्वती की राहु की दशा का अन्त हुआ और राहु की दशा समाप्ति के बाद गुरु की दशा लगते ही भगवान शिव के साथ उनका विवाह हुआ,जो हमेशा के लिये अमर हो गया।

राहु का समय शुरु होते ही जातक का दिमाग परिवेश के अनुसार भ्रम मे भर दिया जाता है। जो परिवेश आसपास का होता है जहां पर वह पैदा होता है वही तरह तरह के कारण व्यक्ति के दिमाग मे भर जाते है और उन्ही कारणो के अनुसार वह अपने जीवन को लेकर चलने लगता है। भगवान शिव की पहली शादी के रूप मे सती का रूप उनके साथ था,राहु का छलावा होने के कारण जब भगवान श्रीराम को वनवास हुआ था तो सती के दिमाग मे एक भ्रम भर गया कि जिस भगवान की पूजा शिवजी हमेशा करते है वही भगवान स्त्री वियोग के कारण वन मे भटक रहे है और सीते सीते रटने के अलावा उनके पास और कोई शब्द ही नही है। इसलिये उन्होने श्रीराम की परीक्षा लेने के लिये सीता का वेश बनाया और रास्ते मे बैठ गयी,उन्होने सोचा था कि अगर राम साधारण पुरुष होंगे तो उन्हे ही सीता समझ कर ग्रहण करने की कोशिश करेंगे,लेकिन हुआ उल्टा भगवान श्रीराम ने उन्हे पहिचान लिया और शिवजी के हाल चाल पूंछने लगे,शर्मिन्दा होकर सती भगवान शिव के पास गयी और शिवजी उन से जब पूंछा कि भगवान श्रीराम की परीक्षा कैसे ली तो उन्होने सीता बनकर परीक्षा लेने वाली बात को मन मे छुपा लिया और बोल दिया कि ऐसे ही परीक्षा ले ली थी,शिवजी ने ध्यान लगाकर देखा तो उन्हे समझ मे आ गया कि उन्होने जगतजननी सीता जो उनके लिये माता के समान थी का रूप धरने के बाद परीक्षा ली है,आराध्य की पत्नी के रूप मे वे सीताजी को माता के समान मानते थे,इसलिये उन्होने सती को त्याग दिया और अपने ध्यान मे रहकर अपने जीवन को बिताने लगे।

उपरोक्त भाव मे एक प्रकार का कथन कि राहु जब हावी होता है तो वह नाटक के पात्र की भांति जातक को आगे या पीछे ले जाने की अपनी योजना को सफ़ल करने की बात करता है,जैसे सती को पहले तो रूप परिवर्तन का ख्याल देना फ़िर शिवजी से ही झूठ बोलना कि ऐसे ही परीक्षा ली थी.पहले रूप परिवर्तन फ़िर झूठ बोलना यह राहु का मुख्य प्रभाव माना जाता है इसके बाद जब सती के पिता महाराज दक्ष ने यज्ञ किया और उस मे भगवान शिव को नही बुलाया लेकिन सती के अन्दर अपने पिता के प्रति मोह और यज्ञ को देखने की लालसा ने उन्हे शिवजी के मना करने पर कि जब पिता के द्वारा बुलाया नही गया है और वहां पर जाना उनके लिये दिक्कत देने वाला है और किसी भी कारण को पैदा किया जा सकता है,उनके मना करने के बाद भी वे अपने पिता की यज्ञ मे गयी और सभी को अपने अपने भाग का मिला देखना और अपने पति के भाग को नही देखने के कारण उन्होने अपने शरीर को उसी यज्ञ मे जला दिया। यह कारण भी राहु की दशा मे देखा जाता है कि व्यक्ति के अन्दर केवल अपनी सोच के अनुसार ही चलने की बात मानी जाती है व्यक्ति को अगर किसी प्रकार से मना किया जाये कि अमुक स्थान पर दिक्कत हो सकती है तो व्यक्ति के अन्दर एक ख्याल आता है कि पिछले किसी वैर भाव के कारण ही वह वहां जाने से मना कर रहा है और वह हठ से जाने की बात करता है लेकिन हठ से जाने के बाद उसे अपने जीवन से भी हाथ धोना पडता है। यह बात आगे राहु के अनुसार अपमान मौत और वैर लेने से कारण से निकलने के बाद राहु का प्रभाव आगे अपने प्रोग्रेस के जीवन के लिये अपनी शक्ति को प्रदान करता है जिसके अन्दर व्यक्ति का स्वभाव केवल प्राप्ति करने के कारको मे अपने को लगा लेता है,उस धुन के आगे उसे कोई धुन समझ मे नही आती है कोई भी कितना भी बुद्धि वाला कारण उसे बताने की कोशिश करे उसे समझ मे नही आता है और अधिक कारण पैदा करने पर तर्क कुतर्क की बात भी करता है,राहु की दशा के अन्त मे राहु मे मंगल का अन्तर आने के बाद व्यक्ति को आत्महत्या या अस्पताली कारण या किसी प्रकार के भ्रम मे रहने के कारण या नशे मे रहने के कारण कोई कृत्य हो जाने के बाद वह इन्ही कारणो मे चला जाता है.इसके बाद गुरु की दशा लगने के बाद ही व्यक्ति का जीवन सही दिशा मे चलना शुरु हो जाता है.

 

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