Tuesday, October 18, 2011

राहु मंगल के बीच शनि बनाम तीखी मिर्चे का स्वाद

मीन लगन में गुरु दूसरा वक्री तीसरे केतु वृष राशि के चन्द्रमा चौथा मिथुन राशि का पंचम में मंगल कर्क राशि का और सप्तम मे कन्या का शनि अष्टम भाव मे सूर्य शुक्र बुध नवे भाव मे राहु के समय रसोई की व्याख्या अगर की जाये तो कुछ इस प्रकार से होगी। दूसरा भाव मुख का कारक है,तीसरा भाव खाने वाली चीज की बनावट का कारक है,चौथा भाव मुंह की अवस्था का कारक है पंचम भाव स्वाद का कारक है,छठा भाव रुचि का कारक है सप्तम भाव खाने वाले भोजन के रखने का स्थान है,अष्टम भाव भोजन मे मिलाये जाने वाले मशालो का कारक है नवम भाव भोजन के बाद मिलने वाले प्रभाव का कारक माना जाता है,दसवा भाव भोजन के करने का तरीका ग्यारहवा भाव भोजन के बाद मिलने वाले फ़र्क के लिये और बारहवा भाव भोजन के बाद मिलने सन्तुष्टि असंतुष्टि का कारक है। मीन राशि आराम का स्थान है,इस स्थान को सप्तम का शनि का जो कन्या राशि का है स्टील की प्लेट का कारक है,गुरु जो वक्री होकर प्लेट मे रखे सामान का कारक है,कारण मार्गी गुरु सम्पूर्णता का कारक है यानी जो प्लेट मे होना चाहिये वह पूरी तरह से पीली सामग्री से ही बना हुया होना चाहिये,लेकिन वक्री गुरु को केवल रखे सामान में ऊपरी पर्त के मामले मे ही जाना जायेगा,तीसरे केतु को तीन की संख्या में लम्बी वस्तु के रूप मे देखा जायेगा,उस वस्तु को दूसरे भाव मे ले जाने के पहले मुख की स्थिति में चौथा चन्द्रमा अपने अनुसार खाने के पहले लार को प्रकट करने वाला है,पंचम का मंगल गर्म तासीर से और तीखा स्वाद देने वाला है,छठे भाव का कारण भूख तो लगी है और भूख मे भोजन का समय नही है यानी शाम का समय है,लेकिन भोजन के लिये खाना जरूरी है,खाने मे तीन लोग साथ साथ है,पहले दो ही थे लेकिन एक बाद मे आ गया।

1 comment:

  1. GURU ,G, KAISE AAP YE SAB PAD LETE HAI. MAIN BHUT IMPREES HU.

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