Monday, October 24, 2011

please tell me about my Seventh house.

सिंह लगन की कुंडली है,लगनेश सूर्य छठे भाव में है.
धनेश और लाभेश बुध सप्तम भाव में है.
सहजेश और कार्येष शुक्र भी सप्तम स्थान में है.
सुखेश और भाग्येश मंगल सुख स्थान यानी चौथे भाव में है.

पंचमेश और अष्टमेश गुरु भी सप्तम भाव में है.
शत्रु और सप्तम के मालिक शनि भी सुख भाव में है.
व्ययेश चन्द्रमा अष्टम भाव में है.
राहू नवे भाव में है और केतु तीसरे भाव में है.

जातक को अपने सप्तम स्थान के बारे में जानने की इच्छा है.
कुंडली में चार पुरुषार्थ देखे जाते है पहला धर्म का जिसके अन्दर लगन पंचम और नवं भाव आता है.इनके ग्रहों को देख कर पता किया जाता है की व्यक्ति कितना अपने समाज परिवार और धर्म भाग्य की तरफ अपना रुझान रखता है वह शिक्षा की तरफ जाता है या किसी अन्य प्रकार के और काम के अन्दर जाता है.
दूसरा पुरुषार्थ अर्थ का आता है जिससे पता किया जाता है की जातक धन अपने कुटुंब से लेता है या जातक अपनी मेहनत से धन को कमाता है या अपने पूर्वजो के कार्यों और ऊंची शिक्षा को प्राप्त करने के बाद धन को प्राप्त करता है इसमे दूसरा भाव खुद के धन से छठा भाव खुद के द्वारा किये जाने वाले शरीर की मेहनत से और दसवे भाव से ऊंची शिक्षा और पूर्वजो के प्रताप से धन का कामाया जाना जाता है.
कुंडली का तीसरा पुरुषार्थ काम नामक पुरुषार्थ से जाना जाता है जो अपने पर जिम्मेदारियों को निभाने के लिए और आगे की संतति को पैदा करने के बाद संतान के प्रति आजीविका और उनके लिए जीवन साथी आदि के लाने और जिम्मेदारियों को पूरा करने का अर्थ समझा जाता है यह प्रकार तीसरे भाव सातवे भाव और ग्यारहवे भाव से समझा जाता है.
कुंडली के अन्दर चौथा पुरुषार्थ उपरोक्त तीनो पुरुषार्थो के पूरे होने पर संतोष के प्राप्त होने का माना जाता है,यह प्रकार कुंडली में तीसरे भाव से यानी हिम्मत से दूसरा पत्नी यानी जीवन साथी के भाव से दूसरा और लाभ के भाव से यानी ग्यारहवे भाव से दूसरा भाव माना जाता है.जब हम शरीर और नाम से संतुष्ट होते है तो चौथे भाव का सुख माना जाता है,जब हम जीवन साथी और उनके द्वारा प्राप्त सेवाओं से संतुष्ट होते है तो अष्टम का सुख माना जाता है और जब लाभ आदि के साधन को खर्च करने के बाद मानसिक संतोष को प्राप्त करते है तो वह बारहवे भाव का सुख कहा जाता है,यही सुख मोक्ष को देने वाला होता है.

काम नामका पुरुषार्थ सप्तम से जुडा है अगर सप्तमेश बलवान है और किसी प्रकार से क्रूर फरेबी ग्रहों से नहीं जुड़े है तो सप्तम को पूर्ण सुख देने वाला भाव माना जाता है,अगर किसी प्रकार से सूर्य शनि मंगल राहू केतु से सप्तमेश जुड़े है तो वह दुःख देने वाला भाव कहा जाता है,लेकिन सिंह और कर्क लगन वालो के लिए सप्तम का मालिक शनि है,तुला और वृष राशि या लगन वालो के लिए मंगल ही सप्तमेश है,तो दोनों ग्रहों के प्रभाव से तो मान लेना चाहिए की तुला वृष और सिंह तथा कर्क राशि वालो का जीवन तो वास्तव में अपने जीवन साथी के द्वारा कष्ट में होना चाहिए? कारण सूर्य तो खुद ही क्रूर है और वह ठन्डे तथा अँधेरे ग्रह शनि को साथ जीवन साथी के रूप में कैसे लेकर चल सकता है,ऊपर से दोनों का अर्थ भी पिता पुत्र के रूप में है,इसके साथ ही शनि और सूर्य की युति भी सुबह शाम की होती है,कारण सूर्य का समय दिन है और शनि का समय रात है दोनों के मिलाने का समय सुबह या शाम का है,तो फिर इन दोनों राशियों की गृहस्थी सुख कैसे बन पाता होगा ? इसी प्रकार से चन्द्र की कर्क राशि और शनि की मकर राशि,शनि और चन्द्र बहुत ही दिक्कत वाला मामला माना जा सकता है,चन्द्रमा तो कोमल भावुक और ज़रा सी बात पर भावुकता में बहाने वाला,शनि ठंडा अधेरा और कठोर ग्रह दोनों के प्रकार को अगर देखा जाए तो पत्थर की चट्टान पर गिराने वाले झरने जैसा रूप ही समझ में आयेगा,या किसी कसाई के सामने दयालु व्यक्ति का होना ही माना जाएगा,यह युति मिलाने से कितनी कष्ट दाई स्थिति होती होगी यह तो उन्ही लोगो से पूँछिये जो इन लगनो में पैदा हुए और अपने अपने जीवन को निकाल रहे है,वाह वाही करने के लिए कोइ भी अपनी अपनी हांकने लगे लेकिन अगर इन लगनो के व्यक्ति अपने दिल पर हाथ रखकर कहे तो साफ़ पता लग जाएगा की कितनी महानता इन लगनो के जीवन साथियों के साथ होने से मिलाती है.इसी प्रकार से कोमल राशिया जैसे शुक्र बुध चन्द्र की राशिया,इनके अन्दर शनि मंगल सूर्य की राशियों का सम्बन्ध करवा दिया जाए तो कितनी दिक्कत आनी शुरू हो जायेगी.

हकीकत और कुछ है देखने में जो लगता है वह अन्दर से कुछ और ही होता है,जैसे सूर्य दिन भर की तपन से जब आहत होता है तो वह संध्या की गोद में जाकर विश्राम करता है शनि रूपी रजनी उसे विश्राम देती है तब ऊषा रूपी भोर उसे नया जीवन देकर फिर से चमकने का साहस देती है.यह सिंह और कुम्भ राशि का प्रभाव है,उसी प्रकार से वृश्चिक राशि कामुकता की राशी है अगर वृष राशि से इसका सम्बन्ध नहीं होता तो सांड के अन्दर कामुकता ही नहीं होती और वह वृश्चिक राशि वाला व्यक्ति अपनी कामुकता की आग में जल जाता,उसी प्रकार से अगर चन्द्रमा जो छल कपट का राजा भी कहा जाता है,जो गुरु पत्नी तारा को भी हरण करके ला सकता है,और बुध जैसे अनैतिक संतान को पैदा कर सकता है अगर उसके सामने मकर जैसा जीव नहीं दिया जाता तो वह अन्य पानी के जीवो से इतना गंदा हो जाता की वह किसी प्रकार से अपनी सफाई और उज्ज्वलता के लिए जाना ही नहीं जाता,मकर यानी मगर ही चन्द्रमा रूपी सरोवर की सफाई करने के लिए काफी होता है.इसी प्रकार से तुला राशि के सामने मंगल की मेष राशि होती है तुला राशि का कार्य होता बेलेंस करने के बाद किसी बात की पुष्टि करना लेकिन मेष राशि का कार्य होता है की वह जो कहना है उसे पूरा करना है,तुला रिश्ते के अन्दर भी बेलेंस कर सकता है,लेकिन मेष जिस रिश्ते को लेकर चलने वाला है उसी रिश्ते को लेकर चलता रहेगा चाहे उसे अपनी कुर्बानी कसाई के तुला (तराजू) में अपने गोस्त को तुलने के लिए क्यों न जाना पड़े.अगर तुला राशि को संभालने वाला मेष यानी मेढा सामने नहीं होता तो तुला राशि के व्यक्ति का जीवन कभी भी स्थिर हो ही नहीं सकता था.
बात कुछ अधिक हो गयी है जातक का प्रश्न अधूरा रह गया है बाकी का उसने खुद समझ लिया होगा की उसके सप्तम के स्वामी शनि का क्या प्रभाव है,इस कुंडली में शनि का प्रभाव चौथे भाव में मंगल के साथ है,चौथा मंगल नीच का मंगल कहलाता है नीच के मंगल को साधारण रूप में अगर वह वृश्चिक राशि का है और शनि के साथ है तथा उससे राहू का छठे भाव में है तो जमीन के अन्दर एक मिट्टी को उबालने वाला ऐसा ज्वाला मुखी कहा जाएगा जो अपने धुएं और राख को जातक के पूर्वजो तक पर डालने का काम करेगा.वह धुंआ जातक के लाभ को जातक के शरीर और नाम को जातक के पराक्रम और हिम्मत को जातक के संतान के भाव को भी ढकने और गंदा करने का काम करेगा.जो भी शिक्षा जातक ने ली होगी जो भी तकनीकी योग्यता उसके अन्दर होगी वह अपने जीवन साथी के कारणों से भूल जाएगा,जो भी जातक का भाग्य होगा पूर्वजो का नाम होगा वह जीवन साथी के कारणों से बरबाद होना शुरू हो जाएगा जातक के जीवन में ह्रदय में एक आग की तरह सुलगाने वाला राख से भरा कोयला ही इस प्रकार के शनि मंगल के प्रभाव को समझा जा सकाता है.

जातक का प्रभाव जमीनी चीजो को घर से बाहर रहकर छोटी छोटी यात्रा करने के बाद खरीदने बेचने का होगा जबकि जातक का जीवन साथी कहने को तो बहुत ही सलीके से काम करने वाला होगा लेकिन राहू के पराक्रम से अपनी हैसियत को बहुत दूर का कहने वाला कार्यों के अन्दर कसाई जैसे काम करने वाला भी माना जा सकाता है.

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