Tuesday, October 11, 2011

Vakri Grah aur unakaa Phaladesh

पृथ्वी अपनी धुरी पर गति करती हुयी भगवान सूर्य देव की परिक्रमा करती है यह परिक्रमा का मार्ग ३६५ दिन और ६ घंटे में पूरा होता है धरती अपनी धुरी पर भी घूमती है जिसे वह अपनी दिशा को २४ घंटे में पूरा कर लेती है,इस घूमने की गति के कारण दिन और रात बनते है और सूर्य भगवान की परिक्रमा में ऋतुएं बदलती रहती है.जैसे पृथ्वी सूर्य देव की परिक्रमा कर रहे है वैसे ही अन्य ग्रह जैसे मंगल बुध गुरु शुक्र शनि ग्रह भी सूर्य की परिक्रमा कर रहे है,राहू और केतु छाया ग्रह है और वे चंद्रमा के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के रूप में गति की उल्टी दिशा में अपना भ्रमण करते है,चन्द्रमा के उत्तरी ध्रुव को राहू की उपाधि दी गयी है और दक्षिणी ध्रुव को केतु की उपाधि दी गयी है,इन दोनों ग्रहों को छाया ग्रह की उपाधि इसलिए दी गयी है की यह दोनों ही अपनी अपनी दृष्टि को मन के अनुसार देने वाले होते है.मन में सकारात्मक विचार देने के लिए राहू और नकारात्मक विचार देने के लिए केतु को माना जाता है.सूर्य चन्द्र के अलावा सभी गृह वक्री होते है राहू केतु हमेशा वक्री रहते है जब ग्रह वक्री होते है तो उनका विशेष प्रभाव होता है.सूर्य से बुध कभी भी २८ अंश से दूर नहीं रहता है,जैसे ही यह दूरी बनती है बुध वक्री हो जाता है,इसी प्रकार शनि मंगल गुरु जब सूर्य से नजदीक पहुँच जाते है तो वक्री हो जाते है,वक्री होने पर ग्रह की गति एक दिन से पांच दिन तक स्थिर रहती है,उसके बाद वह अपने फलो को देने लगता है,वक्री ग्रह जब नीच भाव में या राशि में होते है तो वे उच्चता का फल देने लगते है,शुभ ग्रह जब वक्री होते है तो अशुभ फल और अशुभ ग्रह जब वक्री हो तो शुभ फल देने लगते है.अगर जीवन में ग्रह वक्री नहीं हो तो जातक के जीवन में परेशानिया अधिक हो जाती है.मंगल अगर शुभ भाव में वक्री हो जाए तो हिम्मत में कमी देने लगता है,बुध अगर वक्री हो जाए तो मिलाने वाले ज्ञान में कमी हो जाती है,लेकिन वही मंगल और बुध जब नीच घरो में या राशियों में वक्री हो जाए तो वह बहुत अच्छा फल देने लगते है.इसी प्रकार से जब संतान का कारक गुरु वक्री होता है तो संतान में बाधा देने लगता है,और जो संतान है भी उसे कष्ट पहुँचना चालू हो जाता है.शुक्र वक्री हो जाए तो काम वासना अधिक हो जाती है और जातक का शरीर दुर्बल होता जाता है या पत्नी या पति की सेहत कभी ठीक ही नहीं रहती है,शनि जब वक्री होता है तो ज्ञान को या कर्म को करने के बाद उसके अन्दर जल्दबाजी हो जाती है और इस कारण से लोग उसे किये गए कारणों का फल नहीं दे पाते है.

प्रस्तुत कुंडली में मंगल नीच राशि में नीच भाव में वक्री है,मंगल जातक के बारहवे भाव का मालिक है,इसी के साथ पंचम भाव का भी मालिक है.जातक का बारहवा भाव वृश्चिक राशि है,यह भाव मंगल की ही राशि है जो भौतिक रूप से द्रश्य रूप में मानी जाती है,इस मंगल के प्रभाव से जातक को तांत्रिक विद्याओं के कारण शक्ति का साक्षात अनुभव होना माना जाता है,इस अनुभव में शुक्र के रूप में काली माँ का साक्षात अनुभव माना जा सकता है,लेकिन बुध के वक्री होने के कारण जातक के द्वारा कही गयी बाते सत्य होती है अगर यह बुध मार्गी होता तो माता सरस्वती के प्रभाव से करके दिखाने की हिम्मत रखता.बुध के वक्री होने के कारण जातक को मृत्यु के बाद के जीवन आने वाली घटनाओं का कथन करना लोगो के दुखो को दूर करने के उपाय देना आदि सही रूप में माना जा सकता है.

बुध के वक्री रूप को समझने के बाद शनि के वक्री रूप को भी जानना आवश्यक है शनि का साथ वक्री मंगल से है मैंने पहले भी कहा है कि वक्री शनि कर्क राशि अगर वक्री मंगल के साथ है तो जातक को मार्गी होने के समय वह केवल रक्षा सेवा में भेज सकता था या किसी बड़ी घटना के कारण जेल आदि के लिए अपना प्रभाव दे सकता था और जातक को अपने बुढापे में कष्टों को प्राप्त करने के बाद ही जीवन की गति को प्राप्त करना माना जा सकता था,लेकिन शनि के वक्री होने के कारण और कर्क राशि के वक्री मंगल के साथ होने से उसकी शक्ति को पाप्त करने के कारण जाता के अन्दर एक स्थान पर रुकना भी नहीं माना जा सकता है यह अपने वक्री समय में जातक को अधिक से अधिक यात्रा करने और किराए के स्थान में रुकने के अलावा जगह जगह की अनुभव वाली बातो को प्राप्त करने के कारणों में जाना जाएगा,इस शनि का धन के रूप में भी अधिकार को देखा जा सकता है,कहा जाता है कि जातक के लाभ का कारण ग्यारहवा भाव होता है और लाभ को रखने का भाव दूसरा होता है यानी जो भी कर्म फल मिलता है वह ग्यारहवे भाव के अनुसार मिलता है लेकिन उस कर्म फल को रखने का स्थान दूसरा भाव होता है,दूसरे भाव में वही कारक मिलते है जो ग्यारहवे भाव से मिलते है और ग्यारहवे भाव को भी जो मिलता है वह अष्टम भाव यानी रिस्क लेने के बाद या अपने शरीर बुद्धि का गूढ़ प्रयोग करने के बाद ही ग्यारहवे भाव को प्राप्त होता मंगल और शनि की वक्री स्थिति ने जातक को अष्टम भाव से देने के लिए जो प्रदान किया है वह बहुत बड़ी बड़ी शक्तियों के रूप में जाना जा सकता है लेकिन बीच में दसवे भाव के अन्दर विराजमान नीच के गुरु ने कन्या राशि का प्रभाव देकर किसी भी प्राप्ति को ग्यारहवे भाव तक पहुँचने ही नहीं दिया तथा वह जो कुछ प्राप्त हुया वह गुरु ने अपनी नीचता से खुद के लिए तो बहुत कुछ प्राप्त कर लिया लेकिन जातक के पास जो उसने जोखिम रिस्क साधना या प्रयोग किये वह गुरु की अपनी सिफत से गुप्त रूप से मीठा बोल कर और अपने नाम अपने सम्मान का बल देकर जातक से प्राप्त कर लिया.इस प्रकार से गुरु के अष्टम में केवल चन्द्रमा का होना यानी जो लोग जातक से जातक की प्राप्ति को प्राप्त करने वाले थे उन लोगों ने जातक को भावुकता से या सम्मान की दृष्टि से प्राप्त करने के बाद अपने ग्यारहवे घर को तो भर लिया लेकिन जातक के ग्यारहवे घर में कुछ भी नहीं जाने दिया.

जातक के द्वारा प्राप्ति जो दसवे भाव के गुरु ने की वह खुद भी अपने पास नहीं रख पाए,उसे भी कर्जा दुश्मनी बीमारी अपमान और मृत्यु जैसे कारणों से ग्रस्त जनता को जो विदेशो में रहती है उसे बाँट दिया,यह कारण गुरु से अष्टम चन्द्र के द्वारा देखी जा सकती है.गुरु ने उस की जाने वाली सहायता और कारणों से अपने नाम अपने स्थान अपने लिए प्रसिद्धि के कारण सरकारी और बड़े बड़े नेताओं से अपनी साख बनाली तथा किसी भी कारक को करने के लिए जब इस गुरु को जरूरत पड़ती तो जातक को अपने अनुसार स्थान विशेष पर बुलाकर अपने कार्यों को करवा लेते बदले में जातक को थोड़ी सी वाहवाही और खुद के द्वारा सम्मान देकर विदा करने के कारण भी गुरु से चौथे भाव सूर्य केतु के द्वारा माना जाता है,सूर्य जो धनु राशि का केतु के साथ है वह बड़े बड़े नेताओं और सरकारी महकमो में अपनी साख रखने वाले लोगो के लिए जाना जाता है.इस सूर्य केतु के पंचम में चन्द्रमा के होने से गुरु ने अपने क्षेत्र की जनता को प्रयोग में लिया,सूर्य केतु से पंचम में चन्द्रमा का होना राज्य से सम्बंधित लोगो के लिए बल देने वाले लोग होते है.इस सूर्य केतु ने उत्तर दिशा में जन्म लेने के बाद अपने निवास से पूर्व दिशा के जनता को अपने कब्जे में लेकर अपने राज्य को बढाया.सूर्य केतु से पंचम भाव की दिशा भी पूर्व दिशा की श्रेणी में गिनी जाती है.

इस कुंडली में एक बात और समझने योग्य है कि राहू का प्रभाव कही जाने वाली और सिद्ध की जाने वाली बातो पर मिलता है लेकिन लाभ भाव में असर जाने के बाद वह असर हिम्मत और पराक्रम के भाव में जा रहा है लेकिन धन भाव पर केवल शनि मंगल की वक्री होकर दृष्टि तो है,लेकिन गुरु की सम्मिलित दृष्टि होने के बाद धन भाव का असर समाप्त करने के लिए यह नीच का गुरु कन्या राशि का प्रभाव देकर केवल किये जाने वाले कुछ कायों की एवज में थोड़ा सा मेहनताना देने के अलावा और कुछ भी प्राप्त नहीं होने की बात को भी समझने में सहायक होता है.शनि की पूर्ण दृष्टि चन्द्रमा पर जाती है लेकिन बुद्ध में गुरु की दृष्टि आने से वह चन्द्रमा रूपी जनता सूर्य केतु के इशारे पर चलने के लिए अपनी हिम्मत को सीधे से जातक के पास आने के लिए नहीं कर पाती है.जातक को उपायों के रूप में इस गुरु को दूर करने का उपाय करना चाहिए.कन्या के गुरु को सुधारने का एक ही उपाय लालकिताब में बहुत फलीभूत होता देखा गया है कि उसे रोजाना पानी में बहा दिया जाए,जैसे छः हल्दी की गाँठ रोजाना बहते पानी में लगातार छः दिन बहा दी जाए,उसके बाद मिलाने वाले अच्छे प्रभाव को समझ कर इस गुरु के इस उपाय को लगातार करने से जीवन में जो भी कमिया इस गुरु की नीचता के कारण रह गयी है वह पूरी हो जायेंगी.

3 comments:

  1. DOB-17/12/1992 TIME-22:02... ,... 27.25N AND 75.36E sir meri kundli me govt naukari hai ya nhi. plz sir

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  2. Thanks for this information sir. In my kundali Mars is the lord of 3rd & 8th house & vakri hokar kark rashi me baitha hai. My DOB-06 /12/92 & TOB-01:00:00 in 24 format at MOHANIA BIHAR. PLEASE suggest me my carrier . I am student of b.tech final year. Civil seva karna chahta hu .please reply......

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