कई वैवाहिक सेवा देने वाली साइट अपने अनुसार विवाह मिलान मे पाप और पुण्य का लेखा जोखा और बताने लगी है। प्राचीन समय में केवल नाम से गुण दोष बताकर इतिश्री कर ली जाती थी और विवाह होने के बाद भी मर्यादा से तथा सामाजिकता से वैवाहिक जीवन चला करते थे। लोगों ने अपनी अपनी ढपली और अपने अपने राग अलापने शुरु किये जब से वैवाहिक जीवन को एक खेल की तरह से माना जाने लगा है। पति पत्नी के रिस्तो मे जरा सी अनबन हुयी कि दोनो सीधे पारिवारिक न्यायालय जा पहुंचते है,या किसी प्रकार की सामाजिक खुंस को निकालने के लिये वधू पक्ष सीधा सा वर पक्ष पर दहेज प्रताणना का आरोप मढ देता है इस प्रकार से चलते हुये वैवाहिक सुख मे अहम के कारण दिक्कत आनी शुरु हो जाती है। इसके अलावा भी वर वधू का मिलान अगर आज के सोफ़्टवेयर से करना शुरु कर दिया जाये तो बिना ग्रह की वक्री नीच अस्त आदि की स्थिति को समझे सोफ़्टवेयर सीधा ही अपने मिलान करके बता देता है और लोग आये हुये अच्छे रिस्ते को अपने अनुसार विफ़ल कर देते है। ईश्वर मनुष्य को उसके अनुरूप ही जीवन साथी को देता है इस कथन को सभी प्राचीन ऋषि और सन्तो ने बताया है। जिस प्रकृति का मनुष्य है उसे उसके विपरीत प्रकृति का ही जीवन साथी मिलता है और यह कारण जीवन भर चलता रहता है। अर्थ के मामले मे चाहे विपरीत अवस्था भले ही आजाये लेकिन काम और धर्म के कारणो में यह कारण जरूर चला करता है। अगर व्यक्ति को भूख नही लगेगी तो वह प्रयास भी नही करेगा,अगर किसी को बिना प्रयास किये ही खाना दिया जाता रहे तो कुछ समय बाद भूख की महत्ता ही समाप्त हो जायेगी और वह व्यक्ति यह नही समझ पायेगा कि भूख क्या होती है। इस बात को भी समझने के लिये प्रयास को बहुत ही महत्व दिया जाता है। कारण ईश्वर बनाकर भेजता है और इस कारण को गुरु कुंडली मे अपनी स्थिति से बताता है कि शादी का समय कब और किस दिशा से आयेगा। गुरु की अनुपस्थिति मे रिस्ता नही बनता है। बिना गुरु की स्थिति के अगर रिस्ता बनाया जाता है या राहु के किसी भी प्रकार के असर को शामिल किया जाता है तो रिस्ता किसी न किसी कारण से चल नही पाता है और वही कारण अगर निवारण के रूप मे स्वीकार कर लिया जाये और निवारण के द्वारा उस दोष को समाप्त कर दिया जाये तो रिस्ता कुछ समय की अवरोधता को त्याग कर चलना शुरु हो जाता है।
गुरु भाव अनुसार अपने पाप और पुण्य को प्रदर्शित करता है। गुरु अगर खुद की राशि में भी है तो भी पाप और पुण्य को प्रदर्शित करने के लिये अपनी सीमा को बतायेगा। जैसे गुरु अगर मीन राशि का है और वह आखिरी द्रिष्काण मे है तो भी गुरु का मायना एक प्रकार के स्वार्थ के अन्दर देखा जायेगा,लेकिन इसके विपरीत अगर कोई सम्बन्ध कन्या राशि का सामने आता है तो उस सम्बन्ध से कोई हानि इसलिये नही मानी जायेगी क्योंकि उस सम्बन्ध का अर्थ सीधे से परस्वार्थ की भावना से बनना पाया जायेगा। अगर वही सम्बन्ध किसी भी प्रकार से योग्य बनाकर सिंह राशि से या तुला राशि से किया जायेगा तो सम्बन्धो मे कोई न कोई भेद पैदा हो जायेगा,लेकिन भेद को भी समझ कर अगर सही रूप से प्रयोग मे लाया जाये तो सम्बन्ध चलेगा भी और जातक के इन भावो की रक्षा भी होती रहेगी अथवा उन भावो के अनुसार उसे फ़ायदा भी होने लगेगा। पुराने जमाने मे जब पंडित किसी की जन्म पत्री को मिलाया करते थे तो देखा करते थे कि वर पक्ष की मजबूती है और वधू पक्ष का कमजोरी का हाल है तो वे त्रिक भावो की विशेषता को समझते हुये वधू पक्ष को वर पक्ष से मजबूती के लिये रिस्ता बना दिया करते थे,इस प्रकार से जब सम्बन्ध बन जाया करता था तो वर और वधू एक दूसरे के हितो को भी देख कर चला करते थे और अगर वर पक्ष के द्वारा वधू पक्ष की सहायता की जरूरत होती थी तो वह अपने आप ही सम्बन्धो के द्वारा सहायता भी हो जाती थी और वर पक्ष के लिये कन्या पक्ष सतत प्रयत्न मे रहता था कि उसके सम्बन्धी की कोई हानि नही हो पाये।
इसके अलावा भी अगर वर पक्ष के लिये कोई त्रिक भाव के अनुसार कोई बीमारी और कर्जा वाली स्थिति के अनुसार भी दोष मिलता था तो भी कन्या पक्ष को उसी भाव से जोड कर छठे भाव के अनुसार ही शादी की जाती थी जिससे जैसे ही वर पक्ष को इन बातो की जरूरत पडे कन्या पक्ष या कन्या खुद ही उन्हे दूर करने की योग्यता को रखने के बाद उन समस्याओं को दूर कर दे। आज के युग मे जिसे देखो वही भौतिक सुख की कल्पना मे अपनी शादी और विवाह के रिस्ते को देखता है लेकिन भौतिक सुख की भी एक सीमा होती है अगर फ़ाइव स्टार मे भोजन रोजाना किया जायेगा तो घर के भोजन की सीमा समाप्त हो जायेगी और एक वक्त ऐसा आयेगा जब जातक या उसके परिवार वाले किसी साधारण भोजन को कोई तबुज्जय नही देंगे और परिवार का बिखराव शुरु हो जायेगा। कन्या पक्ष की एक सोच और भी देखी जाती है कि वर कितना कमाता है कैसे रहता है,और किस प्रकार का चाल चलन है। इन बातो मे सबसे अधिक महत्व वर के कमाने से लिया जाता है अगर वर सरकारी नौकरी मे है तो उसे पहले ही महत्व दे दिया जाता है और उस कारण से भी वर पक्ष के सामने खुद ही एक चुनौती आजाती है कि अधिक से अधिक कैसे शादी मे धन को प्राप्त किया जाये,इस बात के लिये भी यह सोचना जरूरी होता है कि वर अगर सरकारी नौकरी मे है तो यह जरूरी नही है कि वह सरकारी नौकरी को करता ही रहेगा या सरकारी नौकरी से उसकी जिन्दगी मे कोई दुख नही आयेगा,जबकि सरकारी नौकरी के अन्दर ही अधिक से अधिक भ्रष्टाचार का पनपना देखा जाता है,जब व्यक्ति के अन्दर सरकारी नौकरी को करने के बाद भ्रष्टाचार का बोलबाला अधिक हो जायेगा तो वह जरूर ही अपनी चलती हुयी प्रकृति के अनुसार मानसिक कारण जीवन साथी के लिये प्रयोग मे लाना शुरु कर देगा। अथवा अपने अहम के कारण जीवन साथी के परिवार से किसी प्रकार का अनबन वाला भाव पैदा कर लेगा।
कितना ही समर्थ सोफ़्टवेयर चाहे क्यों न प्रयोग मे लिया जाये लेकिन प्रकृति के एक सेकेण्ड के बदलाव को कथन मे लाना वश की बात नही है,यह मेरा खुद का अनुभव भी है केवल कल्पना की जा सकती है और कथन को हाँक कर कह दिया जाता है। कर्ता के आगे सभी प्रकार की ज्योतिष फ़ेल ही मानी जा सकती है। एक कहावत भी भगवान राम के बारे मे कही गया है-"कर्म गति टारे नाहिं टरी,मुनि वशिष्ठ से पंडित ज्ञानी,शोधि के लगन धरी,सीता हरण मरण दसरथ को वन मे विपति परी,कर्म गति टारे नाहिं टरी"।
गुरु भाव अनुसार अपने पाप और पुण्य को प्रदर्शित करता है। गुरु अगर खुद की राशि में भी है तो भी पाप और पुण्य को प्रदर्शित करने के लिये अपनी सीमा को बतायेगा। जैसे गुरु अगर मीन राशि का है और वह आखिरी द्रिष्काण मे है तो भी गुरु का मायना एक प्रकार के स्वार्थ के अन्दर देखा जायेगा,लेकिन इसके विपरीत अगर कोई सम्बन्ध कन्या राशि का सामने आता है तो उस सम्बन्ध से कोई हानि इसलिये नही मानी जायेगी क्योंकि उस सम्बन्ध का अर्थ सीधे से परस्वार्थ की भावना से बनना पाया जायेगा। अगर वही सम्बन्ध किसी भी प्रकार से योग्य बनाकर सिंह राशि से या तुला राशि से किया जायेगा तो सम्बन्धो मे कोई न कोई भेद पैदा हो जायेगा,लेकिन भेद को भी समझ कर अगर सही रूप से प्रयोग मे लाया जाये तो सम्बन्ध चलेगा भी और जातक के इन भावो की रक्षा भी होती रहेगी अथवा उन भावो के अनुसार उसे फ़ायदा भी होने लगेगा। पुराने जमाने मे जब पंडित किसी की जन्म पत्री को मिलाया करते थे तो देखा करते थे कि वर पक्ष की मजबूती है और वधू पक्ष का कमजोरी का हाल है तो वे त्रिक भावो की विशेषता को समझते हुये वधू पक्ष को वर पक्ष से मजबूती के लिये रिस्ता बना दिया करते थे,इस प्रकार से जब सम्बन्ध बन जाया करता था तो वर और वधू एक दूसरे के हितो को भी देख कर चला करते थे और अगर वर पक्ष के द्वारा वधू पक्ष की सहायता की जरूरत होती थी तो वह अपने आप ही सम्बन्धो के द्वारा सहायता भी हो जाती थी और वर पक्ष के लिये कन्या पक्ष सतत प्रयत्न मे रहता था कि उसके सम्बन्धी की कोई हानि नही हो पाये।
इसके अलावा भी अगर वर पक्ष के लिये कोई त्रिक भाव के अनुसार कोई बीमारी और कर्जा वाली स्थिति के अनुसार भी दोष मिलता था तो भी कन्या पक्ष को उसी भाव से जोड कर छठे भाव के अनुसार ही शादी की जाती थी जिससे जैसे ही वर पक्ष को इन बातो की जरूरत पडे कन्या पक्ष या कन्या खुद ही उन्हे दूर करने की योग्यता को रखने के बाद उन समस्याओं को दूर कर दे। आज के युग मे जिसे देखो वही भौतिक सुख की कल्पना मे अपनी शादी और विवाह के रिस्ते को देखता है लेकिन भौतिक सुख की भी एक सीमा होती है अगर फ़ाइव स्टार मे भोजन रोजाना किया जायेगा तो घर के भोजन की सीमा समाप्त हो जायेगी और एक वक्त ऐसा आयेगा जब जातक या उसके परिवार वाले किसी साधारण भोजन को कोई तबुज्जय नही देंगे और परिवार का बिखराव शुरु हो जायेगा। कन्या पक्ष की एक सोच और भी देखी जाती है कि वर कितना कमाता है कैसे रहता है,और किस प्रकार का चाल चलन है। इन बातो मे सबसे अधिक महत्व वर के कमाने से लिया जाता है अगर वर सरकारी नौकरी मे है तो उसे पहले ही महत्व दे दिया जाता है और उस कारण से भी वर पक्ष के सामने खुद ही एक चुनौती आजाती है कि अधिक से अधिक कैसे शादी मे धन को प्राप्त किया जाये,इस बात के लिये भी यह सोचना जरूरी होता है कि वर अगर सरकारी नौकरी मे है तो यह जरूरी नही है कि वह सरकारी नौकरी को करता ही रहेगा या सरकारी नौकरी से उसकी जिन्दगी मे कोई दुख नही आयेगा,जबकि सरकारी नौकरी के अन्दर ही अधिक से अधिक भ्रष्टाचार का पनपना देखा जाता है,जब व्यक्ति के अन्दर सरकारी नौकरी को करने के बाद भ्रष्टाचार का बोलबाला अधिक हो जायेगा तो वह जरूर ही अपनी चलती हुयी प्रकृति के अनुसार मानसिक कारण जीवन साथी के लिये प्रयोग मे लाना शुरु कर देगा। अथवा अपने अहम के कारण जीवन साथी के परिवार से किसी प्रकार का अनबन वाला भाव पैदा कर लेगा।
कितना ही समर्थ सोफ़्टवेयर चाहे क्यों न प्रयोग मे लिया जाये लेकिन प्रकृति के एक सेकेण्ड के बदलाव को कथन मे लाना वश की बात नही है,यह मेरा खुद का अनुभव भी है केवल कल्पना की जा सकती है और कथन को हाँक कर कह दिया जाता है। कर्ता के आगे सभी प्रकार की ज्योतिष फ़ेल ही मानी जा सकती है। एक कहावत भी भगवान राम के बारे मे कही गया है-"कर्म गति टारे नाहिं टरी,मुनि वशिष्ठ से पंडित ज्ञानी,शोधि के लगन धरी,सीता हरण मरण दसरथ को वन मे विपति परी,कर्म गति टारे नाहिं टरी"।
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