लोगो की राय होती है कि भूत को नही बनाया जा सकता है भविष्य को बनाने के लिये वर्तमान का उपयोग करना चाहिये.लेकिन वर्तमान बिना भूत के पैसा कैसे हो जायेगा ? आज का वर्तमान कल का भूत बन जायेगा.भविष्य को जानने के लिये बडे बडे ज्ञानी ध्यानी आ गये लेकिन भविष्य को नही देख पाये केवल भूत के कारको से वर्तमान को बनाते रहे। भूत बहुत बडी उपयोगिता भी है और वर्तमान का साधन भी है,बिना भूत के वर्तमान के साधन बन ही नही सकते है,यानी समय को भी देखा जाये तो श्रेणीक्रम से बिना दो हजार ग्यारह गये दो हजार बारह आ भी नही सकती है और बिना व्यक्ति के क्रम मे देखा जाये तो बिना बाप के बेटा पैदा कैसे हो सकता है।अगर भूत को बनाया जायेगा तो भविष्य जरूर बन जायेगा अगर भूत को भुला दिया गया तो भविष्य वास्तव मे ही पता नही कैसा होगा। भूत कैसे बन सकता है,वर्तमान तो बन सकता है लेकिन लेकिन भूत जो कल चला गया है कैसे बन सकता है? वास्तव मे बात तो बहुत ही कठिन है नाई ने जो बाल काट दिये है वह वापस कैसे सुधारे जा सकते है जो कल मर गये है वे वापस आज कैसे जिन्दा किये जा सकते है,कल जो मकान गिरा दिया गया था वह कैसे खडा किया जा सकता है। कल जो कहा गया था वह आज कैसे चुप मे बदला जा सकता है,पता नही इसी प्रकार के सवाल आकर सामने खडे होकर मुस्कराने लगेंगे,कहिये क्या जबाब है तुम्हारे पास,इसी प्रकार से भूत को बनाने का जिम्मा ले रहे थे ! अब बनाओ कैसे बनाते हो भूत को ? हम से बडे बडे घबडाते है,रात को कैसी भी छाया दिख भर जाये लोगो की घिग्घी बन्ध जाती है,भूत को उतारने के लिये बडे बडे पीर फ़कीरो और भगतों के पसीने आ जाते है,फ़िर भी अपनी मर्जी से उतरता हूँ,मुझे भूत कहते है? इतनी सी बात सुनकर वास्तव मे मुझे भी पसीना आ गया,यह भूत कैसे बनेगा,मरा हुआ कैसे जिन्दा होगा? अक्समात ही भगवान श्रीकृष्ण की बात याद आ जाती है,मरता तो शरीर है आत्मा तो जिन्दा ही रहती है आत्मा कभी मरती ही नही है। हाँ वह आत्मा अगर मिल जाये तो उसे नये शरीर में डाल दिया जाये,लेकिन शरीर भी तो बिना भूत के कैसे बन सकता है? फ़िर जरूरत पड गयी भूत की! भूत का मतलब अलग ही है,पंचभूत ! यह शरीर भी पंचभूत का बना है,इन भूतो के अन्दर आग भी है पानी भी है हवा भी है पृथ्वी भी है,आकाश भी है,सब कुछ पकडा जा सकता है लेकिन आकाश नही पकडा जा सकता है। जैसे ही पकडने की कोशिश की जायेगी,मुँह के बल धडाम से जमीन पर गिरना पडेगा,हो सकता है आकाश को पकडने के चक्कर मे दो चार सामने वाले और चले जायें। मजाक की बात नही है आकाश को भी पकडना पडेगा,आखिर मे आकाश है क्या ? जो इसकी गिनती भूतों मे की जाने लगी है? उछलो तो आकाश पीछे धकेल देता है,किसी ऊंचे से ऊंचे स्थान पर चले जाओ हवाई जहाज मे जाओ मगर आकाश और ऊंचा ही ऊंचा दिखाई देता है,इसकी कोई सीमा ही नही है। और अधिक आगे जाओगे तो रेलवे स्टेशन की तरह से कोई और ग्रह आजायेगा लेकिन आकाश का अन्त नही आयेगा। पीछे से आकाश की आवाज आयी,अरे हम तो पीछे खडे है,हमी तो आकाश है,जरा घूम के देखो,बहुत बडा विस्मय ! आकाश वास्तव मे पीछे से आवाज दे रहा है,मैं अन्दाज हूँ,और अन्दाज को कभी पकडा नही जा सकता है,अन्दाज का नाम ही आत्मा से दिया गया है,आत्मा को किसी ने नही देखा है,किसी ने आत्मा की फ़ोटो नही खींची है,कभी आत्मा के बारे मे कोई सकारात्मक रूप सामने नही आया है,अच्छा तो यही अन्दाज आत्मा है ! बडे ही आश्चर्य की बात है कि लोग जिसे देखते नही है पहिचानते नही है कभी दो दो हाथ नही हुये,कभी भी आत्मा के साथ बैठ कर गप्पे नही लडाई फ़िर भी अन्दाज से कहते है कि आत्मा है!
मैने तो प्यास लगने के कारण पानी को पिया था,मुझे क्या पता था कि पानी पूरे शरीर मे फ़ैल जायेगा। मैने तो भूख लगने पर खाना बनाया था,मुझे क्या पता था कि वह पूरे शरीर मे मांस मज्जा खून और हड्डी का भी निर्माण करने लगेगा। मैने तो शरीर सुख के लिये मैथुन किया था मुझे क्या पता था कि सन्तान भी सामने आजायेगी,बहुत ही विचित्र बात है,किया किसके लिये जाये और हो कुछ जाये,लेकिन अन्दाज का तो कहना ही क्या ! कहते है आत्मा ईश्वर का अंश है और हम ईश्वर को मानते है,अगर हम ईश्वर को नही मानते तो आत्मा जो ईश्वर का अंश है उसे कैसे मानेंगे,और आत्मा को नही मानेगें तो शरीर के अन्दर जो है जो चला रहा है घुमा रहा बात चीत करा रहा है,कानो से सुनने की शक्ति दे रहा है आंखों से देखने की शक्ति प्रदान कर रहा है नाक से सूंघने की शक्ति का विकास कर रहा है,तो इन सभी बातों को नकारा साबित कर देना चाहिये,नही है आत्मा वात्मा सब बेकार की बाते है किसी ने नही देखा है आत्मा को ! अक्समात ही तुलसीदासजी की रामचरित मानस की चौपाई याद आगयी-"बिनु पग चलै सुनै बिनु काना,कर बिनु कर्म करै विधि नाना",समस्या जटिल से जटिल बनती जा रही है,जो बिना पैर के चलता है,बिना कान के सुन सकता है हाथ के बिना काम भी कर सकता है वह भी एक नही कितने ही,यह बात आज के जमाने के लिये अगर रोबोट के लिये कही जाती तो उसकी भी एक सीमा है लेकिन तुलसीदास जी के जमाने मे तो रोबोट तो क्या रेडियो भी नही बना था। हां एक बात कही जा सकती है कि उस जमाने में बिना किसी साधन के लोग मंगल तक की यात्रा जरूर करके आते थे,वरना तुलसीदास जी से जब पूंछा गया कि मंगल के बारे मे उनकी क्या राय है तो उन्होने काशी के ब्राह्मणो को लिखित मे जबाब दे दिया था-"लाल देह लाली लसे और धरि लाल लंगूर,बज्र देह दानव दलन जय जय कपि शूर॥"कहा था मंगल का रूप लाल है दूर से भी लाल दिखाई देता है,कठोर भी है और मंगल के देवता हनुमान जी को ही माना है,वह ही किसी भी दैत्य को केवल नाम से दूर करने की क्षमता रखते है। भूत को बनाया जा सकता है,अगर हनुमान जी के नाम से ही भूत को भगाया जा सकता है तो भूत को बुलाया भी जा सकता है। इसके लिये हमे पीछे की बातो का ध्यान रखकर ही भूत को बनाने की कोशिश करनी चाहिये।
मैने तो प्यास लगने के कारण पानी को पिया था,मुझे क्या पता था कि पानी पूरे शरीर मे फ़ैल जायेगा। मैने तो भूख लगने पर खाना बनाया था,मुझे क्या पता था कि वह पूरे शरीर मे मांस मज्जा खून और हड्डी का भी निर्माण करने लगेगा। मैने तो शरीर सुख के लिये मैथुन किया था मुझे क्या पता था कि सन्तान भी सामने आजायेगी,बहुत ही विचित्र बात है,किया किसके लिये जाये और हो कुछ जाये,लेकिन अन्दाज का तो कहना ही क्या ! कहते है आत्मा ईश्वर का अंश है और हम ईश्वर को मानते है,अगर हम ईश्वर को नही मानते तो आत्मा जो ईश्वर का अंश है उसे कैसे मानेंगे,और आत्मा को नही मानेगें तो शरीर के अन्दर जो है जो चला रहा है घुमा रहा बात चीत करा रहा है,कानो से सुनने की शक्ति दे रहा है आंखों से देखने की शक्ति प्रदान कर रहा है नाक से सूंघने की शक्ति का विकास कर रहा है,तो इन सभी बातों को नकारा साबित कर देना चाहिये,नही है आत्मा वात्मा सब बेकार की बाते है किसी ने नही देखा है आत्मा को ! अक्समात ही तुलसीदासजी की रामचरित मानस की चौपाई याद आगयी-"बिनु पग चलै सुनै बिनु काना,कर बिनु कर्म करै विधि नाना",समस्या जटिल से जटिल बनती जा रही है,जो बिना पैर के चलता है,बिना कान के सुन सकता है हाथ के बिना काम भी कर सकता है वह भी एक नही कितने ही,यह बात आज के जमाने के लिये अगर रोबोट के लिये कही जाती तो उसकी भी एक सीमा है लेकिन तुलसीदास जी के जमाने मे तो रोबोट तो क्या रेडियो भी नही बना था। हां एक बात कही जा सकती है कि उस जमाने में बिना किसी साधन के लोग मंगल तक की यात्रा जरूर करके आते थे,वरना तुलसीदास जी से जब पूंछा गया कि मंगल के बारे मे उनकी क्या राय है तो उन्होने काशी के ब्राह्मणो को लिखित मे जबाब दे दिया था-"लाल देह लाली लसे और धरि लाल लंगूर,बज्र देह दानव दलन जय जय कपि शूर॥"कहा था मंगल का रूप लाल है दूर से भी लाल दिखाई देता है,कठोर भी है और मंगल के देवता हनुमान जी को ही माना है,वह ही किसी भी दैत्य को केवल नाम से दूर करने की क्षमता रखते है। भूत को बनाया जा सकता है,अगर हनुमान जी के नाम से ही भूत को भगाया जा सकता है तो भूत को बुलाया भी जा सकता है। इसके लिये हमे पीछे की बातो का ध्यान रखकर ही भूत को बनाने की कोशिश करनी चाहिये।
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