प्रस्तुत कुंडली कुचामन राजस्थान के एक इक्कीस वर्षीय युवक की है वह जानना चाहता है कि अपने माता पिता के लिये कब धन कमाना शुरु कर देगा। जीवन की लम्बी चाल के लिये मुख्य चार ग्रह माने गये है सबसे पहले शनि फ़िर राहु केतु और गुरु बाकी के ग्रह समय का सहारा देने वाले माने जाते है। धन देने के लिये तीन भाग मुख्य माने जाते है एक शरीर के द्वारा धन को प्राप्त करना दूसरा बुद्धि के द्वारा धन को प्राप्त करना तीसरा पूर्वजो के धन से प्राप्त धन को प्राप्त करने के बाद उसे घटाना बढाना। इस कुंडली में शरीर से धन कमाने का दूसरा भाव है और उस भाव का स्वामी जीवन साथी के भाव मे विराजमान है,इसका मतलब है कि शरीर से धन कमाने के लिये जीवन साथी को आगे आना पडेगा,शुक्र इस भाव का स्वामी है तो शुक्र से चौथे भाव मे शनि वक्री विराजमान है यानी शरीर से धन कमाने के लिये पत्नी शिक्षा और विद्या स्थान में बुद्धि से कार्य करेगी,कारण सप्तम से पंचम का स्थान बुद्धि के क्षेत्र का कारक है और शनि वक्री मेहनत वाले कार्यों से दूर रखकर बुद्धि वाले काम ही करवाता है। दूसरा प्रकार धन कमाने के लिये बुद्धि का माना जाता है इसलिये जातक के पंचम भाव मे सिंह राशि है,इस राशि से धन वाले क्षेत्र में जो छठा भाव कहलाता है गुरु सूर्य और बुध विराजमान है,यानी जातक ने जो भी विद्या प्राप्त की है वह धन से सम्बन्धित है और सरकारी क्षेत्र के लिये अपनी विद्या को प्रयोग करने की तैयारी कर रहा है। तीसरा प्रकार पूर्वजो से प्राप्त धन का है इस कुंडली मे नवे भाव मे राहु विराजमान है जातक के पिता का स्वभाव बुद्धि मे तो तेज था लेकिन स्थान परिवर्तन के बाद जातक के पिता का क्षेत्र अपनी माता के खानदान मे किसी का नही होना और मृत्यु के बाद की जायदाद को भी सम्भालना और अपने स्थान के कार्यों को भी देखना यह दोनो बाते होने से जातक के पिता के पास कोई संचित धन नही हो पाया इसलिये राहु से दसवे भाव मे गुरु सूर्य बुध यानी अपनी तीन सन्तानो की परवरिश में जातक के पिता लगे रहे और हमेशा ही किसी भी बडे काम में धन को उधार लेकर ही प्रयोग मे लाते रहे और समय समय पर कठिन मेहनत करने के बाद उस उधारी को चुकाते रहे। वर्तमान मे जब शनि जो जातक की कुंडली मे वक्री है अपने पिता के लिये धन कमाने की चाहत रखता है वह शुक्र के साथ गोचर करने से और राहु पर अपनी तीसरी द्रिष्टि से देखने के कारण जात को चाहत है कि वह अपने माता पिता को कब धन कमाकर देना शुरु कर देगा। गुरु जो जातक के भाग्य का मालिक है और साथ ही वह जो भी अपने फ़लो को देगा वह नौकरी आदि के फ़ल ही देगा,जातक सत्रह जून दो हजार बारह के बाद अपने को किसी बैंक बीमा या फ़ायनेन्श से जुडे क्षेत्र मे जाकर धन कमाने की शुरुआत करेगा और धीरे धीरे धन कमाकर अपने पिता माता को धन की सहायता करने लगेगा। राहु का स्थान अष्टम मे होने के कारण चन्द्रमा जो जातक की माता के रूप मे है और घर मे बडी है की बीमारी का कारण भी देखा जा सकता है इसलिये जातक आने वाले जनवरी दो हजार तेरह तक अपनी माता के स्वास्थ सम्बन्धी चिन्ता से भी ग्रसित रहेगा।
Guruji , aap pls meri patrika dhekhiye na pls, muje guide kijiye, fees bhi boliye pls, mera date - 23 november 1984, pune me rat ko 8:10 baje , muje bhi margdarshan karo gurudev
ReplyDeleteकेदार जी बुध प्रधान व्यक्ति होने के कारण आपकी स्थिति धन कमाने केलिये उन्ही कारको पर निर्भर करती है इसलिये अपने व्यवहार बोलचाल की भाषा पर कन्ट्रोल करनेके बाद अपने आसपास और कार्य क्षेत्र के प्रति सामजस्य बैठाये रखो धन की कमी अपने आप पूरी होने लगेगी.
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