प्रस्तुत कुंडली विजयवाडा के एक सज्जन की है वह इस समय इक्यावन साल से ऊपर के है।इनके जन्म के त्रिकोण अगर देखे जाये तो केवल धन वाला त्रिकोण पूरा है और बाकी के त्रिकोण किसी न किसी प्रकार से अधूरे है। जीवन की इच्छाओं की पूर्ति करने वाला त्रिकोण चौथा आठवा और बारहवा भाव वाला त्रिकोण है। इस त्रिकोण मे वर्तमान मे केतु का संचरण हो रहा है और जातक की इच्छाओ मे कुछ बल मिलने की बात मिलती है। इस कुंडली मे भी केतु की प्रधानता है और केतु भी मीन राशि का होकर उच्च का है। धन और पद वाले मामले मे केतु की ताकत बहुत अच्छी है। यह केतु जातक को ऊंची पदवी भी दे रहा है और मंगल जो नीच का है और शुक्र के साथ है पर भी धन स्थान के केतु का असर है इसके साथ ही गुरु जो जीवन मे रिस्तो का कारक है नीच स्थान मे जाकर गुरु के वक्री होने से वह अपनी गति को उच्च का बना रहा है। धर्म स्थान का केतु बच्चो के मामले मे सूर्य एक पुत्र और बुध एक पुत्री के लिये अपनी गति को दे रहा है पुत्र और पुत्री डाक्टरी या इन्जीनियरिंग से अपनी ताकत को धन के क्षेत्र मे बढाने मे है,जातक का कारक केतु वक्री शनि और चन्द्रमा की ताकत से बुद्धि वाले कार्य करने मे चतुर है लेकिन मंगल और शुक्र के द्वारा पूर्वजों की स्थिति को कन्ट्रोल करने के कारण जातक अपने धन से अपनी योग्यता से जो भी करना चाहता है वह कर नही सकता है इसका कारण उसकी पत्नी ही है जो अपने शिकंजे मे पति को कसे हुये है। इस मंगल शुक्र की स्थिति को अगर सही रूप से देखा जाये तो जातक जितना अन्दरूनी मामले से कमाने की हिम्मत रखता है और किसी भी गलत कमाई को कमाने की हिम्मत को रखता है उतना ही उसकी पत्नी गुरु के वक्री होने के कारण अपने रिस्ते को साधने मे भी चतुर मानी जा सकती है वह जातक के हर कार्य पर निगाह रखती है और किसी भी गलत काम के लिये घर मे जातक का सोना खाना हराम करने के लिये अपनी शक्ति को प्रदर्शित कर रही है। जातक के काम नाम का त्रिकोण वक्री शनि और चन्द्र से पूर्ण है,जातक अपनी पत्नी से बन ठन कर और बाजारू स्त्रियों जैसी चमक दमक को देखना चाहता है लेकिन सूर्य और बुध से आगे मंगल शुक्र इस बात से बिलकुल खिलाफ़ है तथा जातक के साथ उस प्रकार के कार्यों को नही देखना चाहती है जो उसे समाज और परिवार मे बदनामी तथा बच्चो के आगे बेइज्जत होने के लिये बाध्य करे। वर्तमान मे राहु का गोचर जातक के जन्म के गुरु के साथ है और राहु का प्रभाव जातक के जन्म के केतु पर भी है जातक के शुक्र और मंगल पर भी है इसलिये जातक अपने बारे मे असमन्जस मे है कि वह क्या करे,गुरु के वक्री रहने तक जातक का बल रिस्ते को तोडने के लिये माना जा सकता है लेकिन जातक मंगल और शुक्र की पकड के आगे तोड नही सकता है। इसके बाद जातक यह राहु जातक के जीवन को भी कोई कष्ट नही दे सकता है उसका कारण भी गुरु का वक्री होना है राहु कभी वक्री ग्रह को हानि नही पहुंचाता है। राहु का असर केवल मंगल जो शुक्र के पास है अपनी इन हरकतो से अपनी पत्नी को हाई ब्लड प्रेसर जरूर दे सकता है। लेकिन वह भी कुछ समय अस्पताल आदि मे रहकर अपने को स्वस्थ बनाने के लिये सब कुछ जानती है। कुंडली के अनुसार जातक की आयु भी शनि चन्द्र की जडता से सत्तर साल की मिलती है।
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