प्ल्वमानं तु तं द्रष्टा सिंहिका नाम राक्षसी,
मनसा चिन्तयामास प्रवृद्धा कामरूपिणी।
अद्य दीर्घस्य कालस्य भविष्याम्यहमाशिता,
इदं मम महासत्वं चिरस्य वशमागतम।
इति संचिन्त्य मनसा च्छायामस्य समाक्षिपत,
छायायां गृह्यमाणायां चिन्तयामास वानर:।
समाक्षिप्तोऽस्मि सहसा पंगुकृतपराक्रम:,
प्रतिलोमेन वातेन महानौरिव सागरे।
अर्थ:- हनुमानजी सीताजी की खोज मे जब सागर को पार कर लंका को जा रहे थे तो इच्छानुसार रूप धारण करने वाली विशालकाया सिंहिका नामवाली राक्षसी ने देखा,देखकर वह मन ही मन इस प्रकार विचार करने लगी,आज दीर्घकाल के बाद यह विशाल जीव मेरे वश मे आया है,इसे खा लेने पर बहुत दिनों के लिये मेरा मेट भर जायेगा,अपने ह्रदय मे ऐसा सोच कर उस राक्षसी ने हनुमान जी की छाया पकड ली। छाया पकडी जाने पर वानरवीर हनुमान जी ने सोचा,अहो ! सहसा किसने मुझे पकड लिया, इस पकड के सामने मेरा पराक्रम पंगु हो गया है,जैसे प्रतिकूल हवा चलने पर समुद्र मे जहाज की गति अवरुद्ध हो जाती है,वैसी ही दशा आज मेरी भी हो गयी है।
ज्योतिष अनुसार भावार्थ:- राहु और केतु को ज्योतिष मे छाया ग्रहो के नाम से जाना जाता है.राहु की माता का नाम सिंहिका है,इस वाक्य मे राहु से चौथे भाव का विवरण माना जाता है,राहु की तीसरी द्रिष्टि उसकी हिम्मत चौथी द्रिष्टि उसकी सोच और पंचम द्रिष्टि उसकी कला सप्तम द्रिष्टि जहां केतु स्थापित होता है राहु के द्वारा विरोधी गतिविधि और आठवी द्रिष्टि से मारक गति नवी द्रिष्टि से भूतकाल की बदले वाली नीति के कारको मे माना जाता है.हनुमान जी को कालान्तर से ही मंगल के रूप मे देखा जाता है और मंगल की सेवा के लिये ही हनुमान जी की भक्ति की जाती है.
राहु के द्वारा जब व्यक्ति पर अपना प्रभाव दिया जाता है तो वह एक तरह से अपंग सा हो जाता है,उसे राहु के अन्दर की बाते ही समझ मे आती है और केवल अपने पराक्रम विद्या वेध और भाग्य के प्रति ही उसकी सोच रह जाती है,उसी अपंगता के कारको मे जब उसे यह समझ मे आजाता है कि अमुक समस्या ने उसे जकडा हुआ है तो वह अपने हिम्मत से काम लेने की कोशिश करता है,जैसे जैसे वह समस्या को सुलझाने की कोशिश करता है वैसे वैसे सिंहिका की तरह से समस्या का रूप बडा होता जाता है.अगर व्यक्ति उस समय अपनी बुद्धि को एकत्रित करके रखता है जैसे हनुमानजी को एक ही कार्य का ध्यान था,वह ध्यान केवल सीता जी की खोज के लिये था,अगर उनके भी ध्यान मे कई कारण चल रहे होते तो वह सिंहिका का मुकाबला नही कर पाते,और सिंहिका उनके कार्य के पूरे होने के पहले ही समाप्त कर देती। सिंहिका को समाप्त करने के लिये उन्होने उसे जड से समाप्त करने की कोशिश नही की बल्कि सिंहिका के बहुत ही मुलायम अंगो पर अपना वार किया,जैसे ह्रदय को विदीर्ण करने के लिये उन्हे उसके पेट मे जाना पडा और अपने नाखूनो से उसके ह्रदय को फ़ाड कर बाहर आगये,वह सिंहिका मृत्यु को प्राप्त करने के बाद समुद्र मे गिर पडी। राहु जब किसी समस्या को देता है तो व्यक्ति अपनी बुद्धि से अगर उस समस्या का बहुत ही सूक्ष्म तरीके से निरीक्षण करने के बाद उसका समाधान करने की सोचता है तो वह समस्या से निजात उसी प्रकार से प्राप्त कर सकता है जैसे हनुमान जी ने सिंहिका का वध किया था।
मनसा चिन्तयामास प्रवृद्धा कामरूपिणी।
अद्य दीर्घस्य कालस्य भविष्याम्यहमाशिता,
इदं मम महासत्वं चिरस्य वशमागतम।
इति संचिन्त्य मनसा च्छायामस्य समाक्षिपत,
छायायां गृह्यमाणायां चिन्तयामास वानर:।
समाक्षिप्तोऽस्मि सहसा पंगुकृतपराक्रम:,
प्रतिलोमेन वातेन महानौरिव सागरे।
अर्थ:- हनुमानजी सीताजी की खोज मे जब सागर को पार कर लंका को जा रहे थे तो इच्छानुसार रूप धारण करने वाली विशालकाया सिंहिका नामवाली राक्षसी ने देखा,देखकर वह मन ही मन इस प्रकार विचार करने लगी,आज दीर्घकाल के बाद यह विशाल जीव मेरे वश मे आया है,इसे खा लेने पर बहुत दिनों के लिये मेरा मेट भर जायेगा,अपने ह्रदय मे ऐसा सोच कर उस राक्षसी ने हनुमान जी की छाया पकड ली। छाया पकडी जाने पर वानरवीर हनुमान जी ने सोचा,अहो ! सहसा किसने मुझे पकड लिया, इस पकड के सामने मेरा पराक्रम पंगु हो गया है,जैसे प्रतिकूल हवा चलने पर समुद्र मे जहाज की गति अवरुद्ध हो जाती है,वैसी ही दशा आज मेरी भी हो गयी है।
ज्योतिष अनुसार भावार्थ:- राहु और केतु को ज्योतिष मे छाया ग्रहो के नाम से जाना जाता है.राहु की माता का नाम सिंहिका है,इस वाक्य मे राहु से चौथे भाव का विवरण माना जाता है,राहु की तीसरी द्रिष्टि उसकी हिम्मत चौथी द्रिष्टि उसकी सोच और पंचम द्रिष्टि उसकी कला सप्तम द्रिष्टि जहां केतु स्थापित होता है राहु के द्वारा विरोधी गतिविधि और आठवी द्रिष्टि से मारक गति नवी द्रिष्टि से भूतकाल की बदले वाली नीति के कारको मे माना जाता है.हनुमान जी को कालान्तर से ही मंगल के रूप मे देखा जाता है और मंगल की सेवा के लिये ही हनुमान जी की भक्ति की जाती है.
राहु के द्वारा जब व्यक्ति पर अपना प्रभाव दिया जाता है तो वह एक तरह से अपंग सा हो जाता है,उसे राहु के अन्दर की बाते ही समझ मे आती है और केवल अपने पराक्रम विद्या वेध और भाग्य के प्रति ही उसकी सोच रह जाती है,उसी अपंगता के कारको मे जब उसे यह समझ मे आजाता है कि अमुक समस्या ने उसे जकडा हुआ है तो वह अपने हिम्मत से काम लेने की कोशिश करता है,जैसे जैसे वह समस्या को सुलझाने की कोशिश करता है वैसे वैसे सिंहिका की तरह से समस्या का रूप बडा होता जाता है.अगर व्यक्ति उस समय अपनी बुद्धि को एकत्रित करके रखता है जैसे हनुमानजी को एक ही कार्य का ध्यान था,वह ध्यान केवल सीता जी की खोज के लिये था,अगर उनके भी ध्यान मे कई कारण चल रहे होते तो वह सिंहिका का मुकाबला नही कर पाते,और सिंहिका उनके कार्य के पूरे होने के पहले ही समाप्त कर देती। सिंहिका को समाप्त करने के लिये उन्होने उसे जड से समाप्त करने की कोशिश नही की बल्कि सिंहिका के बहुत ही मुलायम अंगो पर अपना वार किया,जैसे ह्रदय को विदीर्ण करने के लिये उन्हे उसके पेट मे जाना पडा और अपने नाखूनो से उसके ह्रदय को फ़ाड कर बाहर आगये,वह सिंहिका मृत्यु को प्राप्त करने के बाद समुद्र मे गिर पडी। राहु जब किसी समस्या को देता है तो व्यक्ति अपनी बुद्धि से अगर उस समस्या का बहुत ही सूक्ष्म तरीके से निरीक्षण करने के बाद उसका समाधान करने की सोचता है तो वह समस्या से निजात उसी प्रकार से प्राप्त कर सकता है जैसे हनुमान जी ने सिंहिका का वध किया था।
सरजी
ReplyDeleteमेरा जन्म 25 मार्च1980 को रात के 21:30 के आस पास यूपी के hardoi में हुआ था
आप से अनुरोध कि हमारी कुंडली में कारक ग्रह कौन और किन ग्रहों के कारण सफालता आते आते चली जाती है अति कृपा होगी हमार ईमेल ram.jagran24@gmail.com
धन्यवाद