विवाह के दिन से सोलह दिन के भीतर नौवे सातवे पांचवे दिन मे वधू प्रवेश घर मे शुभ है,यदि किसी कारण से सोलह दिन के भीतर वधू का प्रवेश नही हो पाये तो विषम मास विषम दिन और विषम वर्ष में वधू प्रवेश घर मे करवाना चाहिये। तीनो उत्तरा रोहिणी अश्विनी पुष्य हस्त चित्रा अनुराधा रेवती मृगशिरा श्रवण मूल मघा और स्वाति नक्षत्र मे रिक्ता तिथि यानी चौथ नौवीं और चतुर्दशी को छोड कर तथा रविवार मंगलवार बुधवार को त्याग कर वधू को घर मे प्रवेश करवाना चाहिये.
द्विरगमन का मुहूर्त भी कल्प ज्योतिष के अनुसार ही बनाया गया था,इसके द्वारा वर और वधू की सीमा परीक्षा यानी एक दूसरे के प्रति चाहत को जाग्रत करना,किसी भी प्रकार से चौथी की विदा करवाने (वधू के प्रथम गृह प्रवेश के चौथे दिन वापस विदा करना) के बाद पहली तीसरी पांचवी और सातवीं साल मे वर वधू को आपस मे नही मिलने देना तथा उनके प्रति आश्वस्त हो जाने की दशा मे ही द्विरागमन की विदा का रूप बताया जाता है। जब मेष वृश्चिक कुम्भ राशियों मे सूर्य हो,गुरुवार शुक्रवार सोमवार का दिन हो,मिथुन मीन कन्या तुला वृष यह लगने हों अश्विनी पुष्य हस्त उत्तराषाढा उत्तराफ़ाल्गुनी उत्तराभाद्रपद रोहिणी श्रवण धनिष्ठा शतभिषा पुनर्वसु स्वाति मूल मृगशिरा रेवती चित्रा अनुराधा यह नक्षत्र हो,चौथ नौवी और चतुर्दशी तिथि मे त्याज्य बाकी की तिथिया हो तभी विदा करना ठीक रहता है. किसी बात की शंका के लिये लिखे.
द्विरगमन का मुहूर्त भी कल्प ज्योतिष के अनुसार ही बनाया गया था,इसके द्वारा वर और वधू की सीमा परीक्षा यानी एक दूसरे के प्रति चाहत को जाग्रत करना,किसी भी प्रकार से चौथी की विदा करवाने (वधू के प्रथम गृह प्रवेश के चौथे दिन वापस विदा करना) के बाद पहली तीसरी पांचवी और सातवीं साल मे वर वधू को आपस मे नही मिलने देना तथा उनके प्रति आश्वस्त हो जाने की दशा मे ही द्विरागमन की विदा का रूप बताया जाता है। जब मेष वृश्चिक कुम्भ राशियों मे सूर्य हो,गुरुवार शुक्रवार सोमवार का दिन हो,मिथुन मीन कन्या तुला वृष यह लगने हों अश्विनी पुष्य हस्त उत्तराषाढा उत्तराफ़ाल्गुनी उत्तराभाद्रपद रोहिणी श्रवण धनिष्ठा शतभिषा पुनर्वसु स्वाति मूल मृगशिरा रेवती चित्रा अनुराधा यह नक्षत्र हो,चौथ नौवी और चतुर्दशी तिथि मे त्याज्य बाकी की तिथिया हो तभी विदा करना ठीक रहता है. किसी बात की शंका के लिये लिखे.
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