प्रस्तुत कुंडली एक सज्जन की है वह अपनी विवाहित पत्नी से अपनी परेशानी को बताकर किसी अन्य स्त्री से अपनी गृहस्थी बसाने के लिये लालियत है.धनु लगन की कुंडली है और चन्द्र राशि वृष है.लगनेश गुरु केतु बुध सूर्य के साथ बारहवे भाव मे विराजमान है.जन्म से ही गुरु जीवन साथी के भाव को अपमान जोखिम और बदनाम करने वाली नीति से देख रहा है,जीवन साथी का कारक बुध भी गुरु के साथ गुप्त रूप से अपनी संगति गुरु के साथ बनाकर चल रहा है.बुध सप्तमेश भी है तो कार्येश भी है.यानी जीवन साथी पत्नी का रूप भी अदा कर रहा है और कार्य भी कर रहा है,बारहवे भाव मे बैठने के कारण कार्यों को करने के बाद भी जेल जैसी जिन्दगी को भी जी रहा है.गुरु जो लगनेश है वह घुमक्कड जाति में जन्म लेकर एक स्थान पर स्थापित नही हो पाया है.अक्सर कुंडली के विश्लेषण के लिये सबसे पहले जातक के स्वभाव और खून के बारे मे सोचना जरूरी होता है कि जातक का पालन पोषण किस माहौल मे हुआ है और वह अपने जीवन मे किन किन कारणो से दुखी है तथा जातक के लिये प्राप्त क्या करना है और किस कारण को प्राप्त करने के बाद उसे शांति मिलेगी,जीवन का भटकाव समझने के लिये तथा भटकने का कारण समझने के लिये कुंडली का चौथा आठवा और बारहवा भाव समझना जरूरी होता है.
गुरु का बारहवे स्थान मे बैठना अपनी नजर से सबसे पहले दूसरे भाव को देखना,चौथे भाव पर नजर रखना तथा छठे भाव से लगातार अपनी युति को रखना और अपनी नवी द्रिष्टि से अष्टम भाव को देखना गुरु का शमशानी राशि में स्थापित होना और सप्तमेश कार्येश बुध के साथ साथ भाग्येश सूर्य और नकारात्मक भाव प्रदान करने वाले केतु का साथ होना जातक के लिये राहु के गोचर के समय में आगे की जिन्दगी के लिये खतरनाक स्थिति को समझा जा सकता है.बारहवा भाव जेल और अस्पताल का है,बारहवे भाव से तंत्र और मंत्र की स्थिति को भी देखा जा सकता है,बारहवे भाव से पिता के घर को और माता के भाग्य को धर्म को और समाज मे अपनी स्थिति को दर्शाने के लिये भी माना जा सकता है.
कुंडली की शुरुआत राहु यानी दादा से शुरु की जाती है,राहु धन खानपान श्रंगार बोली जाने वाली वाणी और अपनी संख्या को बताने वाली राशि वृष मे विराजमान है,लेकिन वृष राशि भचक्र की छठी राशि कन्या राशि मे अपनी स्थिति को बनाये है.इस राशि का स्वभाव रोजाना के कार्य चोरी नौकरी माता के पराक्रम पिता के कार्य और रोग आदि के लिये जाना जाता है.जातक के दादा की संख्या पुरुष वर्ग मे देखने के लिये राहु के साथ चन्द्रमा के होने से दो भाइयों के रूप मे देखी जा सकती है,दादा की पत्नी का मालिक मंगल शुक्र के साथ कन्या राशि मे दसवे भाव मे होने से तथा पंचम द्रिष्टि से राहु के द्वारा देखे जाने से दादा के पुत्र संतान का कारक बुध होने से और बुध का अस्पताली राशि मे होने से दादा का सम्बन्ध अपनी पुत्र वधू से गुप्त रूप से होना मिलता है,उस पुत्र वधू से गुरु के रूप मे जातक के पिता के पिता की उत्पत्ति मिलती है,पिता जो सूर्य के रूप मे है वह भी वृष राशि में राहु शुक्र के सप्तम मे होने से मानसिक रूप से कई स्त्रियों के साथ सम्पर्क मे रहा है,जिसमे उसके बडे भाई की स्त्री (सूर्य से ग्यारहवें भाव से पिता का बडा भाई और सूर्य से पंचम में बडे भाई की पत्नी भाभी) से अनैतिक सम्बन्धो के लिये भी स्थिति को माना जा सकता है,पिता के सामने राहु चन्द्र होने से तथ राहु का सम्बन्ध शुक्र मंगल से होने से पिता का अनैतिक रिस्ता नाचने वाली स्त्री के साथ भी होना माना जा सकता है और उसी स्त्री से जातक का जन्म होना भी माना जाता है (शुक्र मंगल से दूसरा शनि,लगनेश से चौथे भाव का मालिक),इस प्रकार से जातक के अन्दर जो खून और स्वभाव मिलता है तथा जो रहन सहन का परिवेश मिलता है उसके द्वारा जातक के अन्दर यह बात प्रकृति से उत्पन्न मानी जा सकती है कि वह अपनी शिक्षा आदि से अपनी वास्तविक सामाजिक स्थिति से तो ऊपर आ चुका है लेकिन जो खून उसके अन्दर है उसका असर राहु के गुरु के साथ गोचर करने से अक्समात ही प्रभाव देना शुरु करेगा.
ग्यारहवे भाव मे तुला राशि का शनि है,इस शनि का गोचर पिछले समय में जन्म के शुक्र मंगल पर रहा है इसका परिणाम जातक के द्वारा यह हुआ है कि सामाजिक स्थिति से जातक ने शादी कर ली है,लेकिन इस शादी के समय राहु का गोचर लगन पर था,और केतु का गोचर सप्तम मे था,केतु के प्रभाव से जातक को यह पता था कि जातक जिससे शादी कर रहा है उसके परिवार मे कोई नही है और उसकी चल अचल सम्पत्ति को वह प्राप्त कर लेगा तथा अपने पिछले समय में जब राहु धन भाव मे गोचर कर रहा था तथा जातक ने अपने ऐश आराम के लिये जो धन कर्ज आदि से लिया था वह चुका देगा,इसके साथ ही राहु का गोचर शुक्र मंगल और जन्म के राहु चन्द्र के साथ होने से उसे यह भी पता था कि जातक जिससे शादी कर रहा है वह पत्नी पढी लिखी भी है और वह आजीवन कमाकर उसे अपने ऐशो आराम के लिये साधन देती रहेगी.शादी के बाद जब जातक की पत्नी ने गर्भ ग्रहण किया तो राहु के बदलाव के बाद राहु का असर नवम और पंचम के साथ सप्तम के केतु पर भी हुआ,जातक ने जो सम्पत्ति धन आदि अपनी इकलौती पत्नी के परिवार से प्राप्त किया था वह जल्दी से धन कमाने के साधनो से यानी शेयर बाजार सट्टा आदि मे समाप्त कर लिया था (गुरु केतु बुध सूर्य से दूसरा राहु) अब उसके पास जो कमाई करने वाली स्त्री थी उसके गर्भ ग्रहण करने कारण बन्द हो गयी उसकी तबियत खराब रहने लगी,वह अस्पताली कारणो से जूझने लगी,तो बजाय कमाई आने के खर्च होने लगी,जातक ने अपनी पत्नी को सलाह दी कि वह अपने गर्भ को साफ़ करवा दे,(राहु का असर पंचम पर),जातक की पत्नी ने अपने गर्भ को जातक के कहने से साफ़ करवा दिया,लेकिन गर्भपात के बाद जातक की पत्नी की सेहत और गिरने लगी,परिणाम मे वह कार्य करने के लिये भी नही जा पायी और घर मे रहने के लिये भोजन आदि के लिये भी दिक्कत का सामना करना पडा,जातक के एक विदेशी दोस्त ने जातक को धन की सहायता दी.इसी बीच मे जातक की मुलाकात एक कालगर्ल से हुयी (राहु का गोचर गुरु केतु बुध सूर्य के साथ) उससे मुलाकात करने के बाद आपसी सम्पर्क बढने लगे.जातक की पत्नी घर में इन्फ़ेक्सन जैसे रोग तथा सांस की बीमारी से जूझने लगी,(गुरु के साथ केतु बुध और सूर्य पर राहु का भ्रमण),इस कारण से जातक के दिमाग मे यह चिन्ता सताने लगी कि कैसे भी इस पत्नी से छुटकारा प्राप्त किया जाये और जो पत्नी के नाम से बीमा आदि है उसका भुगतान लेकर अपनी जिन्दगी को आराम से बिताया जाये (वृश्चिक का गुरु बीमा और पुरानी बचत के लिये),लेकिन जातक के पास रहने के लिये केवल एक ही जगह है जो जातक की पत्नी के नाम से है,कारण जब जातक ने शादी की थी तो मकान जातक की पत्नी के नाम से ही रह गया था,बाकी की चल सम्पत्ति तो जातक ने खर्च कर ली लेकिन मकान पत्नी के नाम से होने के कारण वह उसे नही बेच पाया,उसे बेचने और उसे गिरवी रखने के लिये जातक ने पत्नी के साथ कई बार कोशिश भी की लेकिन जातक की पत्नी ने किसी भी प्रकार से मकान को किसी भी प्रकार से गिरवी या बेचने के लिये अपनी सहमति नही दी। (शनि का गोचर मंगल और शुक्र के साथ).जब जातक को यह महसूस होने लगा कि वह अपनी पत्नी के मकान को नही बेच पायेगा या गिरवी रख पायेगा तो उसने अपनी पत्नी से दूरिया बनाना शुरु कर दिया। पत्नी एक चाचा जो (शुक्र से दूसरा शनि) पत्नी के पास ही अपने व्यापारिक कार्यों को करते थे,तथा चाची (शुक्र के साथ मंगल) पत्नी की जाने अन्जाने मे सहायता करती थी ने भी अपना आना जाना पत्नी के पास कर लिया।
राहु का गोचर जन्म के गुरु के साथ शुरु हो गया है,और कहावतो के अनुसार करनी का फ़ल तो मिलना ही है,जातक को अनैतिक रिस्ता रखने के कारण पत्नी को अपने रास्ते से हटाने के लिये हत्या जैसे अपराध को करने का समय आ गया है,जनवरी दो हजार तेरह तक जातक अपनी अपनी पत्नी की हत्या के लिये प्रयास करेगा,और शनि उसकी पत्नी क बचाकर जातक को कारावास जैसी सजा से पूरित करेगा.
गुरु का बारहवे स्थान मे बैठना अपनी नजर से सबसे पहले दूसरे भाव को देखना,चौथे भाव पर नजर रखना तथा छठे भाव से लगातार अपनी युति को रखना और अपनी नवी द्रिष्टि से अष्टम भाव को देखना गुरु का शमशानी राशि में स्थापित होना और सप्तमेश कार्येश बुध के साथ साथ भाग्येश सूर्य और नकारात्मक भाव प्रदान करने वाले केतु का साथ होना जातक के लिये राहु के गोचर के समय में आगे की जिन्दगी के लिये खतरनाक स्थिति को समझा जा सकता है.बारहवा भाव जेल और अस्पताल का है,बारहवे भाव से तंत्र और मंत्र की स्थिति को भी देखा जा सकता है,बारहवे भाव से पिता के घर को और माता के भाग्य को धर्म को और समाज मे अपनी स्थिति को दर्शाने के लिये भी माना जा सकता है.
कुंडली की शुरुआत राहु यानी दादा से शुरु की जाती है,राहु धन खानपान श्रंगार बोली जाने वाली वाणी और अपनी संख्या को बताने वाली राशि वृष मे विराजमान है,लेकिन वृष राशि भचक्र की छठी राशि कन्या राशि मे अपनी स्थिति को बनाये है.इस राशि का स्वभाव रोजाना के कार्य चोरी नौकरी माता के पराक्रम पिता के कार्य और रोग आदि के लिये जाना जाता है.जातक के दादा की संख्या पुरुष वर्ग मे देखने के लिये राहु के साथ चन्द्रमा के होने से दो भाइयों के रूप मे देखी जा सकती है,दादा की पत्नी का मालिक मंगल शुक्र के साथ कन्या राशि मे दसवे भाव मे होने से तथा पंचम द्रिष्टि से राहु के द्वारा देखे जाने से दादा के पुत्र संतान का कारक बुध होने से और बुध का अस्पताली राशि मे होने से दादा का सम्बन्ध अपनी पुत्र वधू से गुप्त रूप से होना मिलता है,उस पुत्र वधू से गुरु के रूप मे जातक के पिता के पिता की उत्पत्ति मिलती है,पिता जो सूर्य के रूप मे है वह भी वृष राशि में राहु शुक्र के सप्तम मे होने से मानसिक रूप से कई स्त्रियों के साथ सम्पर्क मे रहा है,जिसमे उसके बडे भाई की स्त्री (सूर्य से ग्यारहवें भाव से पिता का बडा भाई और सूर्य से पंचम में बडे भाई की पत्नी भाभी) से अनैतिक सम्बन्धो के लिये भी स्थिति को माना जा सकता है,पिता के सामने राहु चन्द्र होने से तथ राहु का सम्बन्ध शुक्र मंगल से होने से पिता का अनैतिक रिस्ता नाचने वाली स्त्री के साथ भी होना माना जा सकता है और उसी स्त्री से जातक का जन्म होना भी माना जाता है (शुक्र मंगल से दूसरा शनि,लगनेश से चौथे भाव का मालिक),इस प्रकार से जातक के अन्दर जो खून और स्वभाव मिलता है तथा जो रहन सहन का परिवेश मिलता है उसके द्वारा जातक के अन्दर यह बात प्रकृति से उत्पन्न मानी जा सकती है कि वह अपनी शिक्षा आदि से अपनी वास्तविक सामाजिक स्थिति से तो ऊपर आ चुका है लेकिन जो खून उसके अन्दर है उसका असर राहु के गुरु के साथ गोचर करने से अक्समात ही प्रभाव देना शुरु करेगा.
ग्यारहवे भाव मे तुला राशि का शनि है,इस शनि का गोचर पिछले समय में जन्म के शुक्र मंगल पर रहा है इसका परिणाम जातक के द्वारा यह हुआ है कि सामाजिक स्थिति से जातक ने शादी कर ली है,लेकिन इस शादी के समय राहु का गोचर लगन पर था,और केतु का गोचर सप्तम मे था,केतु के प्रभाव से जातक को यह पता था कि जातक जिससे शादी कर रहा है उसके परिवार मे कोई नही है और उसकी चल अचल सम्पत्ति को वह प्राप्त कर लेगा तथा अपने पिछले समय में जब राहु धन भाव मे गोचर कर रहा था तथा जातक ने अपने ऐश आराम के लिये जो धन कर्ज आदि से लिया था वह चुका देगा,इसके साथ ही राहु का गोचर शुक्र मंगल और जन्म के राहु चन्द्र के साथ होने से उसे यह भी पता था कि जातक जिससे शादी कर रहा है वह पत्नी पढी लिखी भी है और वह आजीवन कमाकर उसे अपने ऐशो आराम के लिये साधन देती रहेगी.शादी के बाद जब जातक की पत्नी ने गर्भ ग्रहण किया तो राहु के बदलाव के बाद राहु का असर नवम और पंचम के साथ सप्तम के केतु पर भी हुआ,जातक ने जो सम्पत्ति धन आदि अपनी इकलौती पत्नी के परिवार से प्राप्त किया था वह जल्दी से धन कमाने के साधनो से यानी शेयर बाजार सट्टा आदि मे समाप्त कर लिया था (गुरु केतु बुध सूर्य से दूसरा राहु) अब उसके पास जो कमाई करने वाली स्त्री थी उसके गर्भ ग्रहण करने कारण बन्द हो गयी उसकी तबियत खराब रहने लगी,वह अस्पताली कारणो से जूझने लगी,तो बजाय कमाई आने के खर्च होने लगी,जातक ने अपनी पत्नी को सलाह दी कि वह अपने गर्भ को साफ़ करवा दे,(राहु का असर पंचम पर),जातक की पत्नी ने अपने गर्भ को जातक के कहने से साफ़ करवा दिया,लेकिन गर्भपात के बाद जातक की पत्नी की सेहत और गिरने लगी,परिणाम मे वह कार्य करने के लिये भी नही जा पायी और घर मे रहने के लिये भोजन आदि के लिये भी दिक्कत का सामना करना पडा,जातक के एक विदेशी दोस्त ने जातक को धन की सहायता दी.इसी बीच मे जातक की मुलाकात एक कालगर्ल से हुयी (राहु का गोचर गुरु केतु बुध सूर्य के साथ) उससे मुलाकात करने के बाद आपसी सम्पर्क बढने लगे.जातक की पत्नी घर में इन्फ़ेक्सन जैसे रोग तथा सांस की बीमारी से जूझने लगी,(गुरु के साथ केतु बुध और सूर्य पर राहु का भ्रमण),इस कारण से जातक के दिमाग मे यह चिन्ता सताने लगी कि कैसे भी इस पत्नी से छुटकारा प्राप्त किया जाये और जो पत्नी के नाम से बीमा आदि है उसका भुगतान लेकर अपनी जिन्दगी को आराम से बिताया जाये (वृश्चिक का गुरु बीमा और पुरानी बचत के लिये),लेकिन जातक के पास रहने के लिये केवल एक ही जगह है जो जातक की पत्नी के नाम से है,कारण जब जातक ने शादी की थी तो मकान जातक की पत्नी के नाम से ही रह गया था,बाकी की चल सम्पत्ति तो जातक ने खर्च कर ली लेकिन मकान पत्नी के नाम से होने के कारण वह उसे नही बेच पाया,उसे बेचने और उसे गिरवी रखने के लिये जातक ने पत्नी के साथ कई बार कोशिश भी की लेकिन जातक की पत्नी ने किसी भी प्रकार से मकान को किसी भी प्रकार से गिरवी या बेचने के लिये अपनी सहमति नही दी। (शनि का गोचर मंगल और शुक्र के साथ).जब जातक को यह महसूस होने लगा कि वह अपनी पत्नी के मकान को नही बेच पायेगा या गिरवी रख पायेगा तो उसने अपनी पत्नी से दूरिया बनाना शुरु कर दिया। पत्नी एक चाचा जो (शुक्र से दूसरा शनि) पत्नी के पास ही अपने व्यापारिक कार्यों को करते थे,तथा चाची (शुक्र के साथ मंगल) पत्नी की जाने अन्जाने मे सहायता करती थी ने भी अपना आना जाना पत्नी के पास कर लिया।
राहु का गोचर जन्म के गुरु के साथ शुरु हो गया है,और कहावतो के अनुसार करनी का फ़ल तो मिलना ही है,जातक को अनैतिक रिस्ता रखने के कारण पत्नी को अपने रास्ते से हटाने के लिये हत्या जैसे अपराध को करने का समय आ गया है,जनवरी दो हजार तेरह तक जातक अपनी अपनी पत्नी की हत्या के लिये प्रयास करेगा,और शनि उसकी पत्नी क बचाकर जातक को कारावास जैसी सजा से पूरित करेगा.
No comments:
Post a Comment