जब कोई गल्ती की नही गयी हो और उस गल्ती का आक्षेप अगर लगाया जाये तो मन मे बहुत बडी टीस उठती है कि यह गल्ती की ही नही गयी है तो दिये जाने वाले आक्षेप का मतलब क्या हुआ ? अक्सर आक्षेप मिलने का एक समय होता है और उस समय मे बिना किसी कारण के ब्लेम मिलने लगते है। मन दुखी होता है और आगे से या तो काम करने के स्थान को ही छोडना पडता है या जो बार बार ब्लेम दे रहा है उसकी संगति ही त्यागनी पडती है.प्रस्तुत कुंडली मे केतु को सूर्य वक्री बुध और मंगल का बल मिला है,लगन का शनि अपनी दसम द्रिष्टि से केतु को देख रहा है राहु और गुरु की संगति चौथे भाव मे है जो बारहवे चन्द्र शुक्र की शक्ति को ग्रहण करने के बाद केतु को बल दे रहे है। इस प्रकार से यह कुंडली केतु पर निर्भर रहने वाली कुंडली है.हमेशा ध्यान रखने वाली बात है कि जब अधिक से अधिक ग्रह किसी एक ग्रह को निशाना बना रहे तो जीवन मे वही ग्रह अपनी प्रभुता को दिखाने वाला माना जायेगा.जैसे केतु पर लगभग सभी ग्रहो ने अपना असर दिया है लेकिन केतु के द्वारा एक ग्रह को असर नही दिया जा सका है वह शनि है,कारण केतु ने तीसरी नजर से बारहवे भाव मे बैठे शुक्र चन्द्र को युति दी है,केतु ने दूसरे भाव मे बैठे सूर्य मंगल और वक्री बुध को अपनी युति दी है चौथे भाव मे बैठे राहु और गुरु को भी अपनी युति दी है,यानी जातक का कार्य भाव का केतु शनि को छोड कर सभी को अपने अपने अनुसार बल दे सकता है लेकिन शनि बचा हुया है। शतरंज की चाल को समझने वाले इस कुंडली को आराम से समझ सकते है। शनि की चाल ढाई साल की है,शतरंज मे घोडे की चाल भी ढाई घर की है,केतु के सानिध्य मे रहने वाले सभी ग्रह प्यादा बन जाते है और राहु के सानिध्य मे रहने वाले सभी उल्टे चलने लगते है.बारहवे भाव के ग्रह आखिरी मुकाम पर होते है और लगन के सभी ग्रह बिछाई गयी शतरंज की बाजी के अनुसार माने जाते है। जिस ग्रह का इशारा अन्य ग्रहों पर अधिक होता है वही ग्रह पहली चाल चलने के लिये माना जाता है,इस कुंडली मे जातक सभी को सम्भाल सकता है लेकिन शनि की चाल से हमेशा परेशान और खतरे मे समझने वाला माना जा सकता है। जब भी जातक को मात मिलेगी तो शनि की तरफ़ से ही मिलेगी वह भी मात मिलने का कारण केवल शनि के द्वारा मिलने वाले ब्लेम के कारण ही माना जायेगा। वर्तमान मे शनि का गोचर जातक के विदेश मे रहने वाले स्थान के लिये माना जा सकता है। जातक विदेश मे ही है और शनि की चाल से परेशान है,जातक को काम के प्रति काम करने वाले साथियों की तरफ़ से ब्लेम दिये जाते है और वह चाहता है कि किस प्रकार से वह ब्लेम से बचने के लिये अपने कार्य स्थान को ही त्याग दे। केतु के चौथे भाव का कारक भी शनि है और केतु अगर शनि से मुक्ति के उपाय करता है तो वह कार्य से हमेशा के लिये दूर हो जाता है और शनि को बढाने के उपाय करता है तो यह शनि जातक के मन मस्तिष्क मे एक प्रकार का डर भरे रहेगा और किसी भी प्रकार से जातक को अदालती मामले मे जाना भी पड सकता है.
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