शादी को उसी प्रकार से माना जा सकता है जैसे किसी कारण को लंबा बनाने के
लिए मुकद्दमे का दायर करना,जिस दिन से मुकद्दमा दायर हो जाता है उस दिन से
वकील जज और भाग दौड़ के अलावा तन मन धन सभी कारण मुकद्दमे के लिए खर्च होने
लगते है.वादी जातक होता है और प्रतिवादी जातक का जीवन साथी,जीवन साथी अपनी
जीत के लिए और जातक अपनी जीत के लिए दैहिक दैविक भौतिक रूप से लड़ाई लड़ता
है,दैहिक जीत में अगर पति जीतता है तो पुत्र की प्राप्ति होती है पत्नी
जीतती है तो पुत्री की प्राप्ति होती है,शारीरिक जीत के अलावा जब दैविक जीत
के मामले में देखा जाए तो पत्नी का धर्म और भाग्य तेज है उसे अपने पूर्वजो
पर अधिक विश्वास है वह अपने माता पिता के प्रति अधिक सोचने वाली है उसके
साथ माता पिता और परिवार ने बहुत ही अच्छे तरीके से व्यवहार किया है लड़का
लड़की में कोई भेद नहीं देखा है तो वह अपने पति को भी अपने मायके के
कानूनों पर चलाने के लिए बाध्य कर देगी और अगर पति का परिवार पत्नी के
परिवार से भी बढ़ चढ़ कर लड़की और बहू में अंतर नहीं समझता है तो वह अपने
अपने परिवार को त्याग कर पति परिवार के प्रति समर्पित हो जायेगी,यह सब
शुरुआत की जिन्दगी में देखा जाता है और पति पत्नी दोनों ही धर्म कर्म को
नहीं मानने वाले है स्वेच्छारी है दोनों अपने अपने विचारों को काफी समय तक
एक दूसरे पर थोपने की कोशिश करेंगे और एक दिन अपने ही विचारों के युद्ध में
हार कर या हराकर अपनी अपनी रास्ता को बदल कर दूर हो जायेगे,इसी तरह से
भौतिक कारणों में भी देखा जाता है अगर पत्नी के पास बौद्धिक बल अधिक है
उसके पास एक से चार करने की हिम्मत है तो वह पति को हराकर अपने प्रभुत्व को
स्थापित कर लेगी साथ ही पति का अगर एक के चार करने का असर अच्छा है तो पति
के सानिध्य में पत्नी को रहने को मजबूर होना पडेगा अगर दोनों ही एक से है
तो सामजस्य और दैविक विचार धारा अगर सही है दैहिक कारण अगर एक दूसरे के
पूरक है तो वे दोनों साथ रहने में कोई भेद नहीं समझेंगे और किसी भी प्रकार
की असमानता के चलते ही दोनों अलग अलग अपना अपना संसार बसाने के लिए मजबूर
भी हो जायेंगे.
melpak ka kya role hota hai shaadi mein?
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