Saturday, February 4, 2012

कैसे होगी मौत !

जिसने जन्म लिया है उसकी मौत निश्चित होनी है,यह अटल सत्य है। ज्योतिष मे मौत का विचार अष्टम भाव से और अष्टम किसी ग्रह के होने से या खाली अष्टम भाव से माना जाता है। अष्टम को जो ग्रह देख रहे होते है वे मौत के कारक माने जाते है। मौत का कारण धातु यानी कटने गिरने एक्सीडेन्ट होने आपरेशन आदि के बाद मौत का होना माना जाता है। शरीर के अन्दर शुक्र की अधिकता से जब शुक्र परेशान करने वाला होता है तो शनि के साथ मिलकर कफ़ की उत्पत्ति अधिक करता है और मौत का कारण बलगम माना जाता है,सूर्य और मंगल की अधिक उपस्थिति साथ ही राहु का उद्वेग सामने हो तो पित्त जनित रोगों से जैसे हैजा अतिशार आदि से मौत का होना माना जाता है,गुरु का शनि के साथ होना और चन्द्रमा अपने अनुसार खराब फ़ल देने के कारण मौत का होना वायु सम्बन्धी रोगो से होता है। वैसे सूर्य को पित्त का ग्रह,चन्द्रमा को वात और कफ़ का ग्रह,मंगल को पित्त का ग्रह बुध को कफ़ वात और पित्त तीनो का कारक अपने अपने स्थान से माना जाता है गुरु कफ़ का कारक है और वात का भी कारक है,शनि वात जनित रोग और सर्दी वाले कारणो को देने वाला माना जाता है।

कालपुरुष के अनुसार अष्टम स्थान है वह वृश्चिक राशि के अन्तर्गत आता है,तथा कालपुरुष के अनुसार जो अंग विभाजन किया गया है उसके अनुसार भी चोट लगने आदि के कारणो से उसी अंग का क्षत विक्षत होना माना जाता है। अष्टम सूर्य के सानिध्य से आग जैसे कारणो से चन्द्रमा से जल आदि के कारणो से मंगल से अस्त्र शस्त्र से बुध हो तो वात पित्त कर आदि से उत्पन्न बुखार आदि से गुरु से रोग के बारे मे पता ही नही चलता है कि जातक की मृत्यु तो हो गयी लेकिन मौत के कारण यानी रोग का पता ही नही चला,शुक्र के कारण भूख और प्यास के कारणो से मरना,शनि के द्वारा सभी कुछ होने के बाद भी हठ करने से अथवा खुद ही उपवास आदि करने से मौत का होना माना जाता है। राहु के होने से अक्समात ही मौत का कारण राहु जिस ग्रह या जिस राशि मे है उसी के प्रभाव से मौत का देने वाला माना जाता है,केतु से किसी पूंछ वाले जानवर या किसी मशीन आदि अथवा किसी सहायक के द्वारा ही मौत का देना माना जाता है।

मृत्यु कहां होगी इस बात की जानकारी के लिये अगर आठवे भाव मे चर राशि है तो अपने जन्म स्थान से दूर जाकर मौत होगी,स्थिर राशि के होने से अपने जन्म स्थान मे ही मौत होगी,द्विस्वभाव राशि होने से यात्रा या घर से बाहर जाकर मौत होगी,सबके साथ नवांश को भी देखना जरूरी होता है। अगर नवांश मे चर राशि और लगन कुंडली से द्विस्वभाव राशि है तो नवांस को ही पक्का माना जायेगा। 

दसवां या चौथा मंगल शनि का साथ होता है तो मौत का कारण पत्थर लगना होता है चाहे वह खुद के घर के गिरने से हो या खुद के वाहन का किसी पत्थर से टकराकर शरीर का छिटक कर पत्थरो से टकराकर मौत का कारण बनता हो। अगर राहु का संयोग साथ मे है तो किसी भीड मे पत्थर आदि लगने से भी मौत का आना माना जाता है। चौथे मे शनि सप्तम मे चन्द्रमा और दसवे भाव मे मंगल के होने से किसी गहरे स्थान मे गिर कर मौत का होना होता है। पाप ग्रह से युक्त सूर्य और चन्द्रमा अगर कन्या राशि मे है तो जातक के अपने ही रिस्तेदार मौत का कारण बनते है,मीन राशि के सूर्य और चन्द्रमा के होने से पानी में डूबने से मौत होती है,बारहवे भाव में कर्क का केतु होने से भी जीवन साथी की पानी मे डूबने से मौत होगी है। 

कर्क का शनि और मकर का चन्द्रमा जलोदर रोग को देने वाला होता है इस रोग मे पेट मे पानी भर जाता है और जातक की मौत हो जाती है मेष या वृश्चिक राशि मे चन्द्रमा हो और दो पाप ग्रह के बीच हो तो हथियार या अग्नि से जातक की मौत होती है। अगर कन्या राशि का चन्द्रमा है और दो पाप ग्रहों के बीच मे है तो खून की बीमारी अथवा किसी प्रकार की सूजन आदि आजाने से मौत होती है। दो पाप ग्रहों के बीच मे मकर या कुम्भ राशि का चन्द्रमा है तो व्यक्ति खुद ही फ़ांसी लगाकर मर जाता है या आग लगाकर मर जाता है अथवा उसे फ़ांसी की सजा दे दी जाती है। इसी ग्रह युति मे पहाड या वायुयान से गिर कर भी मौत होनी मानी जाती है।

पांचवे और नवे भाव में दो पापग्रहो के होने से और शुभ ग्रहों से जेल या किसी के बन्धन मे रहकर मौत होती है,इसी के साथ साथ अगर अष्टम भाव में फ़ंदे सांप और जंगली जानवर के रूप का द्रेष्काण होने पर भी जातक की बन्धन से ही मौत होती है।

एक कारण कन्या के चन्द्रमा का सप्तम मे होना और पाप ग्रह से युक्त शुक्र का मेष रासि मे होना सूर्य का लगन मे बैठना स्त्री को स्त्री वाले कारण ही अपने ही घर मे मौत देने के कारक माने जाते है। जैसे दहेज हत्या गलत सम्बन्ध प्रेम विवाह के बाद परिवार की अपघात अनैतिक सम्बन्धो के चलते आदि कारण माने जाते है।

 

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