Wednesday, February 15, 2012

कहाँ से पैदा होते है विचार ?

जानवर की सोच में पेट भरना मन चाहे स्थान पर विचरण करना अपने निवास की सीमा को सुरक्षित रखने के लिए चौकन्ना रहना केवल उन्ही जानवरों के लिए माना जाता है जो मांसाहारी होते है.शाकाहारी जानवर अपनी सीमा में नहीं बंधे होते है उन्हें जहां भी सर्दी गर्मी से बचाव मिलता है,कामवासना की पूर्ती होती है और बच्चे छोटे होने तक वे अपने बच्चो का ख्याल रखते है बाकी वे झुड बनाकर रहते है.किसी भी आफत के समय उन्हें केवल भागना आता है बाकी खुद की जाती या खुद के परिवेश में रहने वाले जानवरों का एक दूसरे के प्रति द्वेष भाव तभी तक रहता है जब तक की वे किसी प्रकार से मैथुन समय में बल को नहीं परख लेते है.

मनुष्य के अन्दर इन दोनों सोच में अंतर मिलता है,वे शुरू में जब तक असहाय होते है तब तक संगठन में रहना चाहते है जब आफत आती है तो भी संगठन को देखते है,संगठन में नहीं होने पर वे अपनी ताकत को बढाने के लिए खुद की योजनाओं को प्रयोग में लाते है.जब खुद की योजनाये सफल नहीं होती है तो वे अपने को गलत रास्तो पर ले जाकर उन कामो को करने लगते है जो काम उन्हें नहीं करने चाहिए.यह सभी प्रभाव रहन सहन आपसी स्वार्थ आदि के रूप में देखा जाता है,लेकिन सोच बदलने पर कोइ भी आदमी राक्षस बन सकता है और कोइ भी कठोर आदमी धार्मिक बन सकता है.हर किसी को महान बनाने की लालसा गलत काम भी करवा देती है और लालसा ही गलत काम करने वालो से दूरिया बनाकर जंगल पहाड़ और एकांत वाश की रूचि भी पैदा कर देती है.जो लोग खुद के परिवार के लिए जीते है यह भाव या तो खुद की भावना में अपनत्व माना जाता है या खुद के लिए अपने कर्तव्य का मार्ग शुरू से ही पता होना माना जाता है.

एक समय यह भी था की व्यक्तिको आत्म निर्भर बनाने के लिए कोइ साधन नहीं मिलता था आज एक साधारण सा आदमी भी अगर उसके मन से डर निकल गया है तो वह आगे बढ़ता चला जाएगा और अगर डर भरा है तो वह एक निश्चित सीमा में अटक कर रह जाएगा.अगर व्यक्ति पहले से समाज में रहता है तो समाज का डर अगर क़ानून के दायरे में रहता है तो क़ानून का डर और मर्यादा में रहता है तो मर्यादा का डर धर्म में रहता है तो धर्म का डर उसे बना रहता है इस डर के कारण कई प्रकार के लोग अपने को आगे नहीं निकाल पाते है,उनकी सोच होती है की अगर अपने माहौल से बाहर निकले तो उन्हें किसी न किसी प्रकार का भारी घाटा हो जायगा या कोइ बड़ी आफत आने पर कोइ उसका बचाव नहीं कर पायेगा.सीमित संख्या में एक ही संभाग में रहने पर यह बात अधिक देखी जाती है लेकिन जैसे ही व्यक्ति महानगर में जाकर बस जाता है उसकी सोच भी बदल जाती है.वह अपने को अन्य लोगो की भाँती ढालने लगता है और जैसा लोग करते जाते है वह भी वैसा ही करता जाता है,कुछ समय बाद इतनी भावना बन जाती है की पडौस में मातम होता है तो घर में शहनाई भी बजती रहती है.

एक महीने के अन्दर चन्द्रमा सवा बारह दिन राहू के घेरे में रहता है और इसी बीच में मनुष्य के हाव भाव चिंता आदि अपनी अपनी राशि के अनुसार बनते रहते है,राहू जिस भाव में होता है उसी प्रकार की चिंता बनी रहती है और जिसके जिस भाव में चन्द्रमा राहू से ग्रसित होता है उसी भाव की चिंता बनाना एक आम बात मानी जाती है.जैसे राहू वर्त्तमान में वृश्चिक राशि का है इस राशि का भाव या तो अस्पताल होगा या मौत वाले कारण होंगे या इन्फेक्सन होगा या राख से साख निकालने वाली बात होगी किसी प्रकार की खोजबीन में अंदरूनी जानकारी करने वाली बात मानी जायेगी,यह भाव मेष राशि वालो के लिए जब चन्द्रमा राहू के साथ अष्टम में होगा तभी मानी जायेगी,जैसे ही वृष राशि की बात आयेगी उस राशि का चन्द्रमा राहू के साथ सप्तम में होगा और सप्तम के अनुसार नौकरी करना नौकरी से मिलाने वाला लाभ जीवन साथी के मामले में चिंता करना जो भी सलाह देने वाला है उसकी बात का विशवास नहीं करना यहाँ तक की आगे जाने वाले रास्ते में भी कनफ्यूजन को देखना माना जाएगा,कहाँ से कैसे गुप्त धन मिले कैसे गुपचुप रूप से कोइ सम्बन्ध बने आदि की चिंता लगी रहेगी,इसी प्रकार से जैसे ही मिथुन राशि का चन्द्रमा छठे भाव में वृश्चिक के राहू के साथ आयेगा जो भी रोग होंगे वे गुप्त रोगोके साथ इन्फेक्सन वाले रोग होंगे पानी का इन्फेक्सन होगा कर्जा जहां से लिया होगा वह लेने वाला नहीं ले पायेगा जो कर्जा दिया होगा वह भी राख का ढेर दिखेगा जहां नौकरी आदि की जायेगी वह भी गंदा स्थान होगा या कोइ फरेब का कारण होगा नहीं तो किसी कबाड़ के स्टोर वाला ही काम होगा इसके बाद कई प्रकार की अन्य तकलीफे भी देखने को मिलेगी जैसे आपरेशन आदि होना कारण वृश्चिक का राहू इन्फेक्सन भी देता है तो डाक्टरी हथियारों को चलाने का कारण भी पैदा करता है.दुश्मनी भी होगी तो एक दूसरे को समाप्त करने वाली होगी कानूनी लड़ाई भी होगी तो वह राहू के छठे भाव में रहने तक कमजोर ही होगी इसी प्रकार से अन्य कारणों को भी समझा जा सकता है,वही चन्द्रमा जब मेष राशि का कार्य भाव में आयेगा तो भी राहू की नजर में आयेगा वह कार्य भी करने के लिए वही कार्य अधिकतर करेगा की या तो वह बीमार हो जाए या किसी प्रकार की जोखिम के डर से कार्य ही नहीं करे और करे भी तो उसे कोइ न कोइ इस बात का डर बना रहे की कार्य तो किया है लेकिन कार्य फल किस प्रकार का मिलेगा,वही चन्द्रमा जब बारहवे भाव में आयेगा तो भी राहू के घेरे में होगा और उस विचार से यात्रा आदि में किसी प्रकार के जोखिम वाले काम में या किसी प्रकार की नौकरी आदि की योजना में लोन लेने में कर्जा चुकाने में किसी बड़े संस्थान को देखने में वह अपनी गति को प्रदान करेगा उसी प्रकार से जब चन्द्रमा मेष राशि का ही दूसरे भाव में आयेगा तो नगद धन के लिए एक ही चिंता दिमाग में रहेगी की किस प्रकार से मुफ्त का माल मिल जाए या किस प्रकार से जादू यंत्र मन्त्र तंत्र से धन की प्राप्ति हो जाए कोइ ऐसा काम किया जाए जो आगे जाकर लाभ भी दे और मेहनत भी नहीं लगे या धन कमा भी लिया गया है तो राहू की गुप्त नजर से या तो वह चोरी हो जाए या किसी फरेब के शिकार में फंस जाए,वही चन्द्रमा जब चौथे भाव में जाएगा तो मन के अन्दर ज़रा भी जल्दी से कोइ काम करने के लिए दिक्कत का कारण ही जाना जाएगा जो भी पहले से वीरान स्थान है या जो भी पिता माता से समबन्धित स्थान है वे जाकर अपनी युति से बनाए भी जायेंगे और रहने के काम में भी नहीं आयेंगे,इसी प्रकार से माता का स्वास्थ जो पेट वाली बीमारियों से भी जुडा हो सकता है माता के अन्दर पाचन क्रिया का होना भी हो सकता है आदि कारणों के लिए देखा जाएगा अक्सर इस युति में यह भी देखा जाता है की या तो यात्रा के लिए फ्री के साधन मिल जाते है या कबाड़ से जुगाड़ बनाकर यात्रा करनी पड़ती है.

1 comment:

  1. bohat accha article hai..likhte rahiye..
    mere 5 ghar me rahu vrish rashi me hai..7th house me moon hai kark rashi me ...iska kya kya mean hai???
    kripya karke bataiye..bohat chinta me reehta hun..

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