Wednesday, February 29, 2012

शमशान से साक्षात्कार

शमशान या कब्रिस्तान भूतों की जगह कही गयी है,अगर भूतो से मिलना है तो शमशान या कब्रिस्तान मे जाना जरूरी होता है। बिना शमशान मे जाये भूतो की कल्पना करना बेकार की बात है,अगर बन्द कमरे मे बैठ कर भूतो की कल्पना की जाये तो हो सकता है कमरे मे पिछले समय मे मरे किसी चूहे काकरोच चीटी चीटे झींगुर के भूतो से साक्षात्कार हो जाये तो अलग बात है। आदमी के भूत से मिलना है तो जरूरी है कि शमशान या कब्रिस्तान की शरण मे जाना। पहली बार बचपन मे शमशान गया था,एक अजीब सा डर दिमाग मे भरा था,लोगो के द्वारा बताये जाने से एक मानसिक चित्रण दिमाग मे बना हुआ था,कि शमशान मे भूत होते है। जिस जगह पर मुर्दा शरीर को जलाया जाता है उस स्थान पर उसी आदमी का भूत होता है जिसे जलाया गया है,लेकिन जिस स्थान पर हजारो लाखो मुर्दे जला दिये जाते है वहां एकता मे अनेकता का रूप जरूर देखने को मिलता है,लोग भूल भी जाते है कि जिस स्थान पर उन्ही के पूर्वज जले थे उसी स्थान पर उनके शत्रुओं को भी जलाया गया था,जब एक जगह पर जलाया गया है तो शत्रुता तो पूर्वजों की खत्म ही हो गयी,कारण उनके पूर्वजों का भूत और शत्रु का भूत एक साथ मिल गया,भूत मिलने से उनकी आपसी शत्रुता भी खत्म हो गयी। एक सज्जन मिले उन्होने भूतो पर काफ़ी कुछ शोध किया है जैसे भूत कहां रहते है कहां कहां तक आ जा सकते है,क्या खाते है क्या करते है सभी कुछ उन्होने अपने अनुभव से सीखा था। धर्म ग्रंथो मे भी पढा था कि आदमी मरने के बाद स्वर्ग भी जाता है नरक मे भी जाता है,जब उन्हे कहीं जगह नही मिलती है तो वह मरने के बाद वापस अपने परिवार मे ही आकर जन्म ले लेता है उसे पुनर्जन्म के सिद्धान्त के रूप मे जाना जाता है। स्वर्ग और नरक को तो देखा नही है लेकिन पुनर्जन्म के सिद्धान्त को समझ कर जरूर कुछ लोगों में मरे हुये व्यक्ति की बाते हाव भाव गुण धर्म आदि देखे है,कई लोगो को मरने के बाद जिन्दा होता हुआ भी देखा है और जो बाते उन्होने बताई उससे विश्वास भी बढा कि मरने के बाद भी कोई दुनिया है,जहां जैसे जिन्दा रहने के बाद अनुभव मिलता है उसी प्रकार से मरने के बाद भी अनुभव किया जा सकता है। वैज्ञानिक कहते है कि जिन्दा रहकर ही अनुभव किया जा सकता है,इसका कारण है कि द्रश्य सुख श्रवण सुख स्पर्श सुख गंध सुख स्वाद सुख केवल केवल आंख कान त्वचा नाक और जीभ के द्वारा ही  हो सकता है यह तो मरने के बाद जला दिये जाते है या दफ़न कर दिये जाते है फ़िर भूत के अन्दर यह पांचो इन्द्रियां कहां से आजाती है। इस बात का भी जबाब है लेकिन यह बात वैज्ञानिकों को हजम भी नही होती है कारण विज्ञान कारक को द्रश्य रूप मे देखना चाहता है,श्रवण करने से अनुभव करने से और अनुमान लगाने से विज्ञान दूर ही रहता है। विज्ञान को विस्वास तभी हो पाता है जब बिजली के पंखे की तरह से वह बिजली के द्वारा चलने लगता है,जब तक वह चालू नही होता है तब तक विज्ञान विस्वास नही करेगा कि वह पंखा चलता भी है और हवा भी देता है। इसी बात के जबाब को देने के लिये यह भी कह दिया जाये कि क्या पंखा के अन्दर आयी हुई बिजली को उन्होंने देखा है,अगर नासमझी से नंगे तार को छू लिया जाये तो उन्हे विश्वास होता है कि उसके अन्दर बिजली है और बिजली झटका भी मार सकती है और चिपका कर मार भी सकती है जब चिपका हुआ छटपटाता हुआ देखा जाता है तो समझ लिया जाता है कि बिजली मार भी सकती है। बिजली कणों के रूप मे चलती है,उसे चलने के लिये धातु या सुचालक कारक की जरूरत होती है,जब तक उसे सुचालक कारक नही मिलेगा वह इंच भी आगे नही बढ सकती है,जैसे बटन के अन्दर बिजली के पथ को जोडने और अलग करने के लिये धातु का प्रयोग किया जाता है और बटन के बाहरी हिस्से को कुचालक के रूप मे बनाया जाता है।

शरीर स्वाद लेना जानता है शरीर खुशबू बदबू का पता कर सकता है,शरीर ही स्पर्श सुख को समझता है शरीर ही आवाजो को पहिचानने की बात को समझता है.शरीर ही चित्र और उपस्थिति को देख सकता है तो एक बात समझना कि आत्मा जो पंचतत्व से विहीन हो चुकी है वह किस प्रकार से शरीर के बिना अपना काम कर सकती है। आत्मा का प्रभाव आभाषित हो सकता है आत्मा अपने प्रकार को जलवायु के अनुरूप प्रकाशित कर सकती है लेकिन आत्मा स्वयं कुछ भी कर पाने मे असमर्थ है। आत्मा को एक कारक की जरूरत पडती है वह अपने कार्य को करने के लिये किसी भी कारक को पकडती है वह अपने शत्रु को अगर प्रताणित करना चाहती है तो वह हमेशा शत्रु के साथ रहती है,कई स्थानो पर वह शत्रु के हौसले को बढाने के लिये उसकी सहायता भी करती है,लेकिन जैसे ही वह शत्रु को मृत्यु की सीमा मे देखती है वह उसके ही शरीर मे उद्वेग के रूप मे प्रवेश करने के बाद उसका काम तमाम कर देती है। इस बात के कई उदाहरण देखे गये है कि एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति का कोई लेना देना नही है,लेकिन एक दूसरे के जान के प्यासे बन जाते है जब एक व्यक्ति दूसरे की हत्या कर देता है और जब वह जेल की कालकोठरी मे बैठता है तो उसे यह समझ मे नही आता है कि आखिर उसने ऐसा काम कर कैसे दिया। कई बार ऐसा भी देखा जाता है कि एक निश्चित समय पर आत्मा किसी को लगातार परेशान तो करती है लेकिन मारती नही है वह दिमागी रूप से परेशान करने के लिये उस व्यक्ति की संतान पत्नी या किसी भाई आदि के साथ होती है वह उसे परेशान करने के लिये अपनी क्रियाओं को करने से नही चूकती है। हमारे एक जानकार जो बहुत अच्छी शिक्षा लेकर कलकत्ता से जयपुर मे दवाइयों का कार्य कर रहे है उन्होने बताया कि वे एक बार ट्रेन मे जा रहे थे,उन्हे दो योगी मिले जो किसी धर्म स्थान के लिये जा रहे थे,उन्हे देखकर एक योगी ने कहना शुरु कर दिया कि उनकी भाभी की बदौलत उनका परिवार परेशान है,और भी बाते उसके घर परिवार के बारे मे बताई और सभी बाते सही थी उन सज्जन को पहले तो भरोसा इसलिये नही हुआ कि उन्होने पहले कभी ऐसे व्यक्तियों को देखा नही था,लेकिन जो बाते उनके बारे मे बता रहे थे जैसे पिता के देहान्त के बारे मे घर की स्थिति के बारे मे बच्चे के बारे मे खुद के काम धन्धे के बारे मे तो उन्हे विश्वास करना पडा,उन सज्जन जो उस योगी ने बताया कि उनकी भाभी जो परेशान कर रही है हकीकत मे वे कुछ नही कर रही है,शादी के बहत्तर घंटे पहले उनकी भाभी किसी विवाह के धार्मिक कार्य के लिये बाहर गयी थी और उन्हे सजी धजी देखकर एक अतृप्त आत्मा उनके साथ हो गयी,उस आत्मा के साथ होने के बाद उनकी भाभी को बुखार आ गया और शादी भी दवाइयों के लेने के बाद हुयी,वह आत्मा उनकी भाभी को अपने साथ ले जाना चाहती है और उन्हे ले जाने के लिये वह पहले ससुराल के परिवार वालो को परेशान कर रही है उसके बाद वह जब अपने माता पिता के पास अकेली रहने लग जायेंगी तब किसी भी परिवेश मे उन्हे समाप्त करने के बाद वह आत्मा उन्हे ले जायेगी। अभी तक की स्थिति तो यह है कि उनकी भाभी अपने माता पिता के साथ ही रह रही है और वे अजीब अजीब से कारण पैदा करती है देखा जाये तो उनकी भाभी के माता पिता भी परेशान है। इस तरह के कारणो के अलावा जब किसी व्यक्ति को अर्धविक्षिप्त अवस्था मे देखा जाता है और उससे पहले वह बहुत ही सज्जन और नेक स्वभाव का होता है तो लोग कहने लगते है कि किसी गलत संगति मे पड गया होगा इसलिये वह पागल सा हो रहा है,लेकिन जब व्यक्ति साधारण अवस्था मे होता है तो वह अपने पिछले अनुभवो को बताता है कि वह क्या कर रहा है उसे कोई पता नही है।

अभी कुछ दिन पहले एक प्रकरण मेरे सामने आया था मैने उसकी आडियो रिकार्डिंग भी आप सभी के सामने डाली थी। इसके अलावा भी खुद के अनुभव भी हमने देखे,लोगों के भी सुने,लेकिन भूत देखने का और भूत के द्वारा खुद कार्य करने का कारण मैने कभी नही देखा कि भूत आकर खुद अपना काम करने लगे। वह लोगो के साथ होकर किसी के सिर पर सवार होकर कोई भी काम कर सकता है लेकिन कोई आत्मा स्वयं आकर कोई काम नही कर सकती है। योगी लोग जो शमशान साधना मे रहते है उन्हे अपनी अन्तर्द्रिष्टि से यह तो पता हो जाता है कि यह तृप्त आत्मा है और यह अतृप्त आतमा है। अक्सर कब्रिस्तानो मे शमशानो मे जो नदियों के किनारे होते है वे इसी बात का पता करने के लिये विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान किया करते है। उन अनुष्ठानो से उन्हे यह पता लग जाता है कि कौन सी आत्मा उनके लिये सहायक हो सकती है और कौन सी आत्मा उनके साथ सहयोग नही कर पायेगी। जो लोग सफ़ल व्यक्ति हुये है उनके साथ कोई न कोई आत्मा अपना साथ जरूर देती रही है,और उन लोगो की पहिचान होती है कि उनकी हथेली मे जीवन रेखा के ऊपर शुक्र पर्वत पर एक सहायक रेखा जरूर जा रही होती है,जीवन के एक आयाम तक साथ देती है और उसके बाद दूर हो जाती है।

3 comments:

  1. v nice plz post more on this topic nd related topics thanks a lot

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  2. ek nazar yeh bhi dekh liya jaaye to koi haani nahin hogi
    http://www.brianweiss.com/
    iss articvle ko padhne se pahle aur padhne ke baad main sirf ek antim baat kehna chahunga
    मैं मृत्यु सीखता हूँ. ओशो

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  3. bahut badhia jankari hai ye blog check kare nanuachaprasi.com

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