Friday, February 3, 2012

पुनर्जन्म

एक जातक के प्रश्न निम्नानुसार है:-
(१)मेरा जन्म मेरे दादाजीके मृत्यू पच्शात ३ साल हुवा है. 
(२) दादाजीके गुण सूत्र के अनुसार अगर मेरा व्यक्तित्व दिखाई दे तो आम बात है. लेकीन मेरा दाहीना कान्धा भी उनके जैसा थोडा झुका हुवा है. 
(३)वो एक भक्तिपूर्ण व्यक्ती थे. 
(४)उनकी दो पत्नीया गुजर जाने के बाद भी वो अकेले राहे तो वो भगवान की उपासना करने लागे थे. 
(५)उनको दिव्य आश्र्वाद प्राप्त था. वाग्देवता या फिर मरिअम्मा उनको प्रसन्न थी. 
(६)तिसरी पत्नी द्वारा हुवे उनकी छ: संतानो मे से कोई भी भगवान की पूजा मे उनके जितना विश्वास नही करता था.
(७) पिछाले साल मेरी पत्नी गुजर गयी. जो रहस्यमय घटना थी. जीससे मै आज भी परेशान हू. 
(८)मेरा भगवान की पूजा करने का मन होने लागा और मै दिन मे दो बार नाहा कर पूजा करता हू. 
(९)क्या मै उनका पुनर्जन्म हू? 
(१०)क्या मेरे साथ वैसेही जीवन का भविष्य है. कृपया मार्गदर्शन करे.

उपरोक्त प्रश्न और बताये गये समयानुसार जो बाते मिलती है वे इस प्रकार से है:-
  • कुंडली मे पिता का कारक गुरु है.और गुरु का स्थान जातक के चौथे भाव मे है,शमशानी राशि वृश्चिक मे है,केतु की पूर्ण द्रिष्टि गुरु पर है,गुरु की तीसरी द्रिष्टि राहु मंगल पर और पंचम द्रिष्टि मृत्यु के भाव पर सप्तम द्रिष्टि वक्री शनि पर दसवे भाव मे नवी द्रिष्टि केतु पर बारहवे भाव मे है.
  • कुंडली मे राहु दादा का कारक है जो मंगल के साथ छठे भाव मे है,गुरु के द्वारा द्रिष्ट है,केतु के द्वारा मंगल भी द्रिष्टि मे है.
  • दादी का कारक केतु है जो बारहवे भाव में है और गुरु राहु मंगल तथा वक्री शनि के द्वारा द्रिष्टि मे है.
  • जातक के चाचा आदि का कारक शनि है जो वक्री है और शनि की द्रिष्टि केतु चन्द्र सूर्य मंगल गुरु पर है,जो संख्या मे कुल छ: मिलते है.
  • राहु की द्रिष्टि भी केतु पर है और केतु की पूर्ण द्रिष्टि चन्द्र सूर्य गुरु पर होने के साथ साथ राहु और मंगल पर भी है.जो दादियों की संख्या को सूचित करती है.
  • किसी भी ग्रह से तीसरा और ग्यारहवा भाव कंधो को सूचित करता है गुरु वृश्चिक राशि का है और राहु के  तीसरे भाव मे मीन राशि जो अधिक लम्बाई और राहु से ग्यारहवे भाव मे वृश्चिक राशि जो छोटी होने का संकेत है इस प्रकार से दादा का एक कंधा छोटा और एक बडा होने का संकेत देते है.
  • राहु के साथ मे धर्म और भाग्य भाव का मालिक मंगल है इसलिये दादा का धार्मिक होना और पूजा पाठी होना सही माना जा सकता है.
  • राहु के साथ मंगल होने और अक्समात बोली जाने वाली बात का सही होना भी माना जा सकता है.
  • पहली शादी का कारक सप्तम भाव दूसरी शादी का कारक अष्टम और द्वितीय तीसरी शादी का कारक नवा भाव कहा जाता है.राहु से सप्तम मे केतु,राहु के अष्टम का कारक सूर्य राहु से नवे भाव का कारक बुध शुक्र तुला राशि का होकर राहु से दसवे भाव मे विराजमान है.
  • राहु के पंचम में शनि (वक्री) जो स्त्री ग्रह होने और स्त्री राशि मे होने के बावजूद भी वक्री होकर पुरुषत्व का बखान करता है,शनि से तीसरे भाव मे केतु जो दूसरी सन्तान का कारक है,शनि से पंचम भाव मे चन्द्र सूर्य जो जातक के पिता और उसकी एक बहिन के लिये अपनी योग्यता को प्रदान करते है और शनि से सप्तम मे गुरु होने से कुल छ: सन्तान होने की बात करते है.
  • चन्द्रमा से सप्तम का कारक भी गुरु है और गुरु का स्थान भी मृत्यु की राशि मे है पिछली साल यानी दो हजार ग्यारह मे गुरु का गोचर मृत्यु भाव मे रहा है तथा जन्म के गुरु और केतु से अपनी त्रिकोणात्मक युति बनायी थी इसलिये जातक की पत्नी का स्वर्गवास हो गया है.
  • वर्तमान मे गुरु का निवास नवम भाव मे है और गुरु अपनी सप्तम की द्रिष्टि से शुक्र और बुध को भी देख रहा है इसलिये जातक की एक शादी सत्रह जून तक होनी मानी जा सकती है.
  • राहु का गोचर जन्म के गुरु के साथ हो रहा है इसलिये जातक का दिमाग अधिक पूजा पाठ और इसी प्रकार के कारणो मे जा रहा है,पानी की राशि मे केतु के साथ राहु की युति होने से जातक को नहाने और पूजा पाठ करने की अधिक लालसा का रहना भी माना जाता है.
  • उपरोक्त बातो के अनुसार जातक का पुनर्जन्म अपने दादा के रूप मे हुआ है.
क्यों हुआ है पुनर्जन्म ?
राहु का रूप छठे भाव मे प्रकाशित है और गुरु का रूप चौथे भाव मे है साथ ही राहु और गुरु की सम्मिलित द्रिष्टि के साथ साथ वक्री शनि की द्रिष्टि भी केतु पर है.केतु मोक्ष का कारक है जो शान्ति को प्रदान करने वाला है और आवागमन से मुक्त करने वाला है.यहाँ राहु का प्रभाव उच्च का माना जाता है तथा केतु को भी उच्च का माना जाता है.राहु मंगल को तपती हुई राख के रूप मे भी देखा जाता है तथा डाक्टरी भाव मे होने से अस्पताली दवाइयों का कारक भी कहा जा सकता है तथा गुरु के अष्टम मे होने के कारण तथा राहु पर असर डालने के कारण राहु की इच्छा जो राहु से बारहवे यानी धनु राशि चौथे भाव मे मेष राशि तथा अष्टम मे सिंह राशि विद्यमान है.राहु की इन इच्छाओं को पूरा करने के लिये जातक का जन्म हुआ है,जैसे ही राहु की इच्छा जो अस्पताल को बनवाना,लोगो की सुविधा के लिये इन्तजाम करना,किसी नदी या पानी वाले किनारे पर किसी धर्म स्थान या धर्मशाला को बनवाना आदि पूरा होगा राहु को मोक्ष मिल जायेगा.

3 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  2. गुरुजी प्रणाम,
    मेरे जीवन मे अभीतक अनिश्चितता कायम है...मै परेशान हु की जिनसे लगाव हो जाता है वो खुद अलग हो जाते है.

    ReplyDelete
  3. आने वाले जनवरी के महिने तक ही यह कारण बनेगा इसके बाद ठीक होता चला जायेगा वर्तमान मे अपनी रहन सहन की प्रक्रिया परिवार के प्रति सोच सामने के साधनो और पूर्वजो के विश्वास को बनाये रखो.यह परीक्षा का समय है.

    ReplyDelete