Monday, February 13, 2012

ग्रह और उनके रूप

कई प्रकार के रत्न आभूषण धातु तंत्र मंत्र यंत्र जब कोई काम नही कर रहे हो तो अपने निवास मे उस ग्रह के लिये एक सटीक उपाय और भी है जो अंजवाया हुआ है और काम भी सही करता है।यह उपाय किसी भी जाति धर्म या संस्कार वाला कर सकता है तथा किसी प्रकार की बन्दिस इस उपाय मे नही है। लाल किताब के अनुसार ग्रहों के अलग अलग देवता होते है,जैसे सूर्य के देवता विष्णु होते है चन्द्रमा के देवता शिवाजी होते है,मंगल के दो प्रकार के देवता होते है एक मंगल नेक के देवता हनुमान जी को माना गया है और मंगल बाद के देवता भूत प्रेत पिशाच माने जाते है बुध की देवी दुर्गा होती है गुरु के ब्रह्मा जी माने जाते है शुक्र की लक्ष्मी और शनि के देवता भी शिवजी माने जाते है लेकिन वे शासमशानी देवता भैरो के रूप में जाने जाते है राहू के देवता सर्प होते है केतु के देवता गणेश जी को भी माना गया है और जो भी देवताओं के वाहन होते है उन्हें भी केतु का देवता माना जाता है.उसी प्रकार से मिश्रित गढ़ों के देवताओं का रूप भी अलग अलग बन जाता है जैसे सूर्य और चन्द्र के देवता मिलकर पार्वती का रूप बन जाता है सूर्य और मंगल के देवता के रूप में भगवान राम को माना जाता है सूर्य और बुध के रूप में इंद्र को माना जाता है सूर्य और गुरु के बीच में विश्वामित्र को माना जाता है सूर्य और शुक्र के लिए विष्णु लक्ष्मी को माना जाता है सूर्य और शनि के लिए गायत्री को माना जाता है सूर्य और राहू के लिए राजा बलि को माना जाता है सूर्य और केतु के लिए अश्विनी कुमार को माना जाता है.इसी प्रकार से चन्द्र मंगल के लिए दक्षिण मुखी शिवजी को माना जाता है माता भद्रकाली को भी पूजा जाता है,चन्द्र और बुध के लिए सरस्वती को माना जाता है चन्द्र और गुरु के लिए पवन देवता को माना जाता है चन्द्र और शुक्र के लिए गाय को देवता के लिए माना जाता है चन्द्र और शनि के लिए अर्धनारीश्वर को माना जाता है चन्द्र और राहू के लिए स्थान देवता को तथा चन्द्र और केतु के लिए पार्वती सहित गणेश जी को माना जाता है,मंगल और बुध के लिए गरुण पर सवार विष्णु को माना जाता है मंगल और गुरु के लिए माता तारा को पूजा जाता है मंगल और शुक्र के लिए गरुण पर सवार गायत्री को माना जाता है मंगल और शनि के लिए ज्वालामुखी देवी को पूजा जाता है मंगल और राहू के लिए प्रेतात्मक शक्तियों को माना जाता है मंगल केतु के लिए काली और शाकिनी आदि की पूजा की जाती है,बुध और गुरु के लिए वैदिक पूजा को माना जाता है बुध और शुक्र के लिए कुलदेवी की पूजा की जाती है बुध और शनि के लिए कार्तिकेय को पूजा जाता है बुध और राहू के लिए सरस्वती का रूप माना जाता है बुध और केतु के लिए कार्तिकेय को पूजा जाता है.गुरु और शुक्र के लिए इन्द्रानी की पूजा की जाती है गुरु और शनि के लिए अमरनाथ को पूजा जाता है गुरु और राहू के लिए केदार नाथ का पूजन किया जाता है गुरु केतु के लिए बद्रीनाथ को पूजा जाता है.शुक्र और शनि के लिए भोमिया जी की पूजा की जाती है शुक्र और राहू के लिए गज लक्ष्मी को पूजा जाता है शुक्र और केतु के लिए गणेश जी के साथ लक्ष्मी को पूजा जाता है,शनि राहू के लिए भैरो को पूजा जाता है शनि केतु के लिए रूद्र की पूजा की जाती है.
इसी प्रकार से जो कष्ट मिलते है उनके लिए मिश्रित ग्रहों के प्रभाव को देखना चाहिए जैसे सूर्य और गुरु इकट्ठे हो और आर्थिक कष्ट हो रहा हो तो गुरु से सम्बंधित उपाय करने जरूरी होती है,जैसे पीली वस्तुओ का सेवन करना और सोने के आभूषण धारण करना या सोने के पात्रो में भोजन करना,सूर्य और शनि के इकट्ठे होने पर पुत्र की पैदाइस के बाद स्त्री का स्वास्थ्य खराब हो गया हो तो स्त्री के वजन के बराबर हरी वस्तुओ का दान करना चाहिए,जैसे वजन के बराबर का चारा गायो को खिलाना.इसी प्रकार से सूर्य और शनि के इकट्ठे होने पर अगर राज्य की तरफ से कोइ हानि मिल रही है या कार्य बंद हो रहा हो तो फ़ौरन सूर्य से सम्बंधित वस्तुओ को दान करना चाहिए जैसे गेंहू आदि इसी प्रकार से शनि के कारण अगर इज्जत में दिक्कत आ रही हो तो फ़ौरन लोहा तेल बादाम आदि दान करने चाहिए.
 चन्द्रमा और राहू अगर कुंडली में इकट्ठे है और माता या मन या मकान पर कोइ संकट आ रहा है वाहन के बार बार एक्सीडेंट आदि हो रहे है हो तो फ़ौरन राहू से सम्बन्धित चीजे पानी में बहानी चाहिए जैसे कोयला सरसों राख आदि,इसी प्रकार से शनि चन्द्र के इकट्ठे होने से अगर चलता हुआ व्यापार रुक रहा है तो शनि से सम्बंधित धुप व्यापार स्थान में रोजाना जलाने से ग्राहकी चलने लगती है यह धुप खुद भी बनायी जा सकती हैजैसे एक पाव काली मिर्च एक पाव लाख जिसकी चूड़ी आदि बनायी जाती है एक पाव गुग्गुल को लेकर बारीक पीस कर सभी को मिलाकर शाम के समय व्यापार स्थान में आग बनाकर धुप की तरह जलाकर रखना चाहिए.(सभी ग्रहों की धुप आप ईमेल astrobhadauria@gmail.com पर लिख कर मंगा भी सकते है).

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