आपने वक्री ग्रहो के बारे मे कई ब्लाग मे पढा होगा और उनकी विवेचना भी पढी होगी,ग्रह समीकरण कभी कभी इतना जटिल हो जाता है कि आम आदमी अपनी बुद्धि को प्रयोग करता भी रहे तो वह समझ से बाहर की बात हो जाती है। गुरु का वक्री होना आम आदमी के लिये तथा भारतीय सभ्यता के लिये सही नही माना जाता है उसका कारण है कि गुरु जो धर्म का मालिक है गुरु जो सम्बन्धो का मालिक है और गुरु जो पूर्वजो की मर्यादा को कायम रखना जानता है वह वक्री होने पर अपनी गति विदेशी रूप से प्रकाशित करने लगता है अक्सर यह भी देखने मे आया है कि एक आम आदमी जिसका गुरु मार्गी हो वह अपने वीजा आदि के लिये महिनो वीजा आफ़िस के चक्कर लगाता रहे और वह अपने लिये विदेश जाने का वीजा नही बनवा पाता है लेकिन गुरु वक्री जिसकी कुंडली मे चौथे आठवे या बारहवे भाव मे होता है वह बटन दबाकर ही अपने वीजा को प्राप्त कर लेता है। इसके अलावा भे अक्सर रहन सहन पहनने ओढने और बात चीत का जो रूप होता है वह भी गुरु वक्री के अनुसार बदला हुआ होता है जातक अपने अनुसार जो भी करता है उसके लिये लोग अपनी अपनी बाते करना शुरु कर देते है। गुरु वक्री जल्दबाजी का कारक भी होता है जब भी आदमी को कोई काम करना होता है तो वह जल्दी से करने की सोचता है और जल्दी से फ़ल को लेने की भी कोशिश करता है अक्सर गुरु वक्री वाले किये जाने वाले काम का देर से भुगतान लेने से बचते है और वही काम करने की कोशिश करते है जिससे काम के तुरत बाद ही भुगतान मिल जाये। वक्री गुरु जब तुला राशि का हो जाता है तो जातक मे अपने अनुसार बाहरी बेलेन्स बनाने की कला का उदय होना माना जाता है वह किसी भी सम्बन्ध को कार्य को और मानसिक रूप से चलने वाले विचारो को बहुत जल्दी ही बेलेन्स मे ले आता है,वह बहुत जल्दी अपने विचारो को प्रकट भी कर देता है और जब उसे अपने विचार प्रकट करने का अवसर नही मिलता है तो वह जहां विचार प्रकट करने होते है वहां से दूर होने की कोशिश करता है।उपरोक्त कुंडली मे गुरु के साथ चन्द्रमा भी है और प्लूटो भी है,चन्द्र सोचता है गुरु उस सोच को बेलेन्स करता है और प्लूटो जो मशीन है वह अपने अनुसार उस सोच को प्रस्तुत करने का काम करता है। इस प्रकार से जातक के लिये सोची हुयी भावना को मशीन यानी कम्पयूटर आदि से प्रस्तुत करने का अच्छा ज्ञान प्राप्त है वह किसी भी भावना को द्रश्य करने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर कर सकता है। गुरु चन्द्र के योगात्मक रूप को और अधिक जानने के लिये यह भी जरूरी है कि जातक पर जो भी प्रभाव होते है वह माता के अनुसार होते है माता का धार्मिक होना यह बात जब गुरु मार्गी होता है तभी माना जाता है लेकिन गुरु के वक्री होने के समय माता केवल उन्ही धर्मो की तरफ़ अग्रसर होती है जिनके द्वारा परिवार समाज स्वार्थ रिस्तेदारी मे समयानुसार हो हमेशा किसी प्रकार से धर्म मे ही अपने को लगाये रहने से माता दूर रहती है,अक्सर इस प्रकार के लोगो मे केवल अगरबत्ती वाली पूजा को करना ही माना जाता है,गुरु के साथ चन्द्रमा के होने से अक्सर जातक जब पैदा होता है तो वह बीमार अधिक रहता है साथ ही जल्दी से अस्पताली कारण बनते भी है लेकिन जल्दी ही दूर भी हो जाते है,चन्द्रमा से अगर यात्रा को जोड कर देखा जाये तो जातक अपने जन्म स्थान से दूर भी जाता है और कभी कभी वापस आकर अपने परिवार को देखता है फ़िर दूर चलाता है,जातक के जीवन साथी से जातक की माता से नही बनती है अक्सर सास बहू के झगडे इस युति मे अधिक देखे जाते है इसी कारण से गुरु जो तुला राशि का वक्री है और चन्द्रमा के साथ वक्री है जातक को दो शादी करने का योग भी मिलता है। अक्सर किसी किसी बात से जातक की माता और जातक का जीवन साथी अपने विचारो को इकट्ठा नही रखपाते है कभी बहुत अधिक प्रेम भी हो जाता है और कभी नफ़रत इतनी हो जाती है कि एक दूसरे का चेहरा देखना भी दिक्कत देने वाला हो जाता है। वैसे तुला का चन्द्रमा दोहरी साल के लिये भी अपनी युति को देता है और इस युति से यह भी माना जाता है कि जातक की माता भी दो हो सकती है और जातक के जीवन साथी की माता भी दो हो सकती है। वह सम्बन्ध भले ही जगत व्यवहार का हो लेकिन सम्बन्ध दो ही गिने जाते है। गुरु हवा का कारक है और चन्द्रमा पानी का कारक है हवा और पानी की युति से अक्सर जातक को कफ़ की बीमारी जल्दी होती है फ़ेफ़डो मे कफ़ जमने की बीमारी को भी माना जा सकता है,मधुमेह भी गुरु चन्द्रमा की युति मे देखा जाता है।
जातक की कुंडली मे शनि और मंगल भी वक्री है इस कारण से जातक को वही काम पसन्द आते है जहां पर मेहनत करने वाले यानी शरीर को कम चलाने वाले काम मिलते हो और फ़ायदा अच्छा होता है जातक उन्ही कामो को करने का आदी होता है। जातक के दो मित्र होते है जो जातक को आगे बढाने के लिये अपनी शक्ति को वक्त वेवक्त देते रहते है। शनि और मंगल दोनो कन्या राशि के है इसलिये जातक को कभी नौकरी करने मे और कभी अपने काम करने का प्रयास भी करना पडता है। शनि और बुध का परिवर्तन योग भी है इस कारण से जातक समय पर नौकरी और समय पर अपना काम भी कर सकता है। शनि की वक्री द्रिष्टि कार्य भाव की तरफ़ है जो सिंह राशि है इस राशि पर वक्री गुरु के साथ साथ शनि वक्री की द्रिष्टि भी हैइसलिये जातक को कार्यों के लिये और किये जाने वाले जगत व्यवहार के लिये भी कभी कभी बहुत अधिक सोचना जरूरी हो जाता है। मंगल शनि का आपसी प्रभाव जब गोचर से इकट्ठा होता है तो कार्यों के अन्दर बेरुखी भी देखी जाती है कभी कभी लगता है कि जो काम किये जा रहे है उनके अन्दर कोई न कोई आक्षेप आदि मिलते है और नौकरी आदि के करने पर अधिकारी अधिकतर अपने अनुसार काम को नही देख पाते है और आपसी विचारो मे जातक के साथ तालमेल नही बैठ पाता है जातक अपने काम को या तो छोड कर बैठ जाता है या जातक के अन्दर एक प्रकार से क्लेश का कारण भी बन जाता है। लाभ भाव मे शनि मंगल के वक्री होने के कारण और कन्या राशि मे होने के कारण जब भी कोई बडा काम सामने आता है तो धन आदि के लिये अक्सर दूसरो पर ही निर्भर रहना पडता है। इस युति मे एक बात और भी देखने को मिलती है कि जातक जो भी काम करता है उसके लिये काम के पूरा होने के पहले ही एस्टीमेट बनाकर काम करता है और उस एस्टीमेट से अपने आगे के खर्चो को भी पूरा कर लेता है लेकिन कभी कभी ऐसा भी होता है कि काम पूरा नही हो पाता है और एस्टीमेट गडबडा जाता है। शनि मंगल जब तक मार्गी होते है जातक को कार्य आदि की परेशानी नही होती है लेकिन जैसे ही शनि मंगल गोचर से वक्री होते है जातक को परेशानी आने लगती है जैसे किये जाने वाले कार्यो मे तकनीकी परेशानी का होना,समय एक साथ ही संघर्षमय हो जाना अगर भाई है तो अक्समात ही उसे परेशानी का पैदा हो जाना जब तक जवानी है यानी मंगल की उम्र है तब तक कठिनाई होती रहना और कार्यों परिवर्तन होता रहना आदि बाते मानी जाती है। मंगल से आगे चन्द्रमा के होने से जातक को गुस्सा भी जल्दी आती है लेकिन वह गुस्सा अधिक देर नही रहती है थोडी ही देर मे सामान्य होना आम बात मानी जाती है।
बुध गुरु की आपसी युति होने से जातक को बुद्धिमानी और ज्योतिष आदि मे रुचि होती है लेकिन यह रुचि केवल स्वार्थी भावना से ही होती है वह अपने को अधिक देर तक या किसी के लिये फ़ालतू समय नही दे पाता है स्त्री जातको से अधिक प्रेम होता है इस प्रकार से जातक के एक से अधिक रिस्ते होते है जातक के जन्म स्थान मे खेती या बागवानी के काम भी होते है या जातक का जन्म स्थान हरे भरे क्षेत्र से होता है जातक के पिता के पास खुद की जमीन भी होती है जातक सत्य बोलने वाला भी होता है जातक की बुद्धि बहुत ही तेज होती है वह जो कार्य आम आदमी एक साल मे सीखे वह दो महिने मे ही सीख जाता है। चन्द्र बुध का सम्बन्ध भी दो सम्बन्धो के लिये अपनी युति को देते है। लेकिन हमेसा ही दूसरे सम्बन्धो से निरासा ही मिलती है चन्द्रमा कला व्यापार और पूंजी का कारक है बुध के साथ होने से जातक को कला और व्यापार को अपने अनुसा प्रस्तुत करने का पूरा अनुभव होता है। अपने कार्य के लिये जातक को मानसिक यात्रा भी खूब करनी पडती है वह विदेशी लोगो से सम्पर्क भी रखता है और अक्सर हर काम मे कोई न कोई स्त्री ही सहायक होती है लेकिन वह स्त्री भी अपने सम्बन्धो को स्वार्थ की भावना से ही लगाती है,चन्द्रमा दिमाग का कारक गुरु से सम्बन्ध रखने के कारण बन जाता है और बुध का साथ मिलने से बुद्धि मे बहुत तेज गति बन जाती है मेमोरी पावर बहुत ही अच्छा बन जाता है। बडी बहिन इसी प्रकार से अपनी बुद्धि को प्रसारित करती है माता की बडी बहिन भी जातक को अपने पुत्र जैसा स्थान देती है। जातक की माता की बडी बहिन के नाम भी जमीन आदि होती है जातक को बुध चन्द्र गुरु की युति से किसी भी कठिन समय का पहले से ही आभास होना भी माना जा सकता है। लेकिन जातक की बातो से आम आदमी जातक को पागल जैसी उपाधि देने लगते है लेकिन समय पर घटना के पूरा होने पर आश्चर्य भी मानने लगते है।
गुरु चन्द्र सूर्य बुध का असर जातक के अष्टम का राहु अपनी गति से सम्भालने का काम कर रहा है। राहु अपने अनुसार जातक को कम्पयूटर आदि का ज्ञान बहुत ही तीव्र गति से प्रदान करता है,जातक किसी भी सोफ़्टवेयर आदि से अपने को बहुत जल्दी ही योग्य बना लेता है,जातक कम्पयूटर मीडिया आदि के मामले मे वही बाते प्रसारित करने लगता है जो उसके लिये गुप्त रूप से जानने की योग्यता को रखने मे सहायक होते है। जातक अपनी तर्क शक्ति और अपने छुपे ज्ञान की बजह से अपने को बहुत आगे निकालने के लिये भी माना जा सकता है। इस युति मे जातक नेटवर्किंग मे भी बहुत उच्चतम तकनीक को अपनाने मे माहिर होता है। अपने हाथ से काम करने मे कम और दूसरो से काम करवाने मे अपनी योग्यता को जाहिर करने का कारण जातक के अन्दर बहुत अच्छा होता है।
आने वाले समय मे जातक के एक सम्बन्ध बनने का समय शुरु हो चुका है। यह सम्बन्ध धन को अधिक खर्च करवायेगा,आने वाले समय मे कोई विदेशी कम्पनी ही जातक को अधिक धन का कार्य देने के लिये भी मानी जा सकती है। जातक के राहु का अष्टम मे होना और वर्तमान मे केतु का सप्तम मे होने का अर्थ भी यही माना जा सकता है कि जातक अपने साथ काम करने वाले लोगो से अपने किये जाने वाले कार्यों से गुप्त रखता है तो ठीक है अन्यथा जातक के किये जाने वाले कामो आने वाले जनवरी दो हजार तेरह के शुरु से ही एक व्यक्ति अपने काम को उसी प्रकार से करना शुरु कर देगा जैसे कि जातक कर रहा है इस प्रकार से अपने ही आदमी के द्वारा काटा जाना माना जा सकता है। एक बडे व्यापार की तरफ़ भी जाने का अवसर सामने है लेकिन जातक की खुद की बुद्धि वर्तमान मे केवल अपने लिये वही काम करने का तर्क मन मे रख रहीहै जो उसे नीचा दिखाने के लिये मानेजाते है विदेश मे जाने और बसने के लिये परिवार को अधिक बढाने के लिये तथा माता पिता आदि के लिये अपनी व्यवहारिक सहायता देने के लिये माना जा सकता है।
वक्री गुरु के लिये जातक को सफ़ेद रंग का पुखराज या डोरिया पुखराज ही सही काम करने वाला है। वैसे तो गुरु मारकेश है लेकिन वक्री हो जाने के कारण वक्री शनि तथा केतु के बीच मे होने से गुरु कोई गलत फ़ल नही देने वाला है कभी कभी अक्समात ही धन हानि का योग तो बन सकता है लेकिन शरीर की हानि का कोई प्रभाव यह गुरु नही दे पायेगा.
जातक की कुंडली मे शनि और मंगल भी वक्री है इस कारण से जातक को वही काम पसन्द आते है जहां पर मेहनत करने वाले यानी शरीर को कम चलाने वाले काम मिलते हो और फ़ायदा अच्छा होता है जातक उन्ही कामो को करने का आदी होता है। जातक के दो मित्र होते है जो जातक को आगे बढाने के लिये अपनी शक्ति को वक्त वेवक्त देते रहते है। शनि और मंगल दोनो कन्या राशि के है इसलिये जातक को कभी नौकरी करने मे और कभी अपने काम करने का प्रयास भी करना पडता है। शनि और बुध का परिवर्तन योग भी है इस कारण से जातक समय पर नौकरी और समय पर अपना काम भी कर सकता है। शनि की वक्री द्रिष्टि कार्य भाव की तरफ़ है जो सिंह राशि है इस राशि पर वक्री गुरु के साथ साथ शनि वक्री की द्रिष्टि भी हैइसलिये जातक को कार्यों के लिये और किये जाने वाले जगत व्यवहार के लिये भी कभी कभी बहुत अधिक सोचना जरूरी हो जाता है। मंगल शनि का आपसी प्रभाव जब गोचर से इकट्ठा होता है तो कार्यों के अन्दर बेरुखी भी देखी जाती है कभी कभी लगता है कि जो काम किये जा रहे है उनके अन्दर कोई न कोई आक्षेप आदि मिलते है और नौकरी आदि के करने पर अधिकारी अधिकतर अपने अनुसार काम को नही देख पाते है और आपसी विचारो मे जातक के साथ तालमेल नही बैठ पाता है जातक अपने काम को या तो छोड कर बैठ जाता है या जातक के अन्दर एक प्रकार से क्लेश का कारण भी बन जाता है। लाभ भाव मे शनि मंगल के वक्री होने के कारण और कन्या राशि मे होने के कारण जब भी कोई बडा काम सामने आता है तो धन आदि के लिये अक्सर दूसरो पर ही निर्भर रहना पडता है। इस युति मे एक बात और भी देखने को मिलती है कि जातक जो भी काम करता है उसके लिये काम के पूरा होने के पहले ही एस्टीमेट बनाकर काम करता है और उस एस्टीमेट से अपने आगे के खर्चो को भी पूरा कर लेता है लेकिन कभी कभी ऐसा भी होता है कि काम पूरा नही हो पाता है और एस्टीमेट गडबडा जाता है। शनि मंगल जब तक मार्गी होते है जातक को कार्य आदि की परेशानी नही होती है लेकिन जैसे ही शनि मंगल गोचर से वक्री होते है जातक को परेशानी आने लगती है जैसे किये जाने वाले कार्यो मे तकनीकी परेशानी का होना,समय एक साथ ही संघर्षमय हो जाना अगर भाई है तो अक्समात ही उसे परेशानी का पैदा हो जाना जब तक जवानी है यानी मंगल की उम्र है तब तक कठिनाई होती रहना और कार्यों परिवर्तन होता रहना आदि बाते मानी जाती है। मंगल से आगे चन्द्रमा के होने से जातक को गुस्सा भी जल्दी आती है लेकिन वह गुस्सा अधिक देर नही रहती है थोडी ही देर मे सामान्य होना आम बात मानी जाती है।
बुध गुरु की आपसी युति होने से जातक को बुद्धिमानी और ज्योतिष आदि मे रुचि होती है लेकिन यह रुचि केवल स्वार्थी भावना से ही होती है वह अपने को अधिक देर तक या किसी के लिये फ़ालतू समय नही दे पाता है स्त्री जातको से अधिक प्रेम होता है इस प्रकार से जातक के एक से अधिक रिस्ते होते है जातक के जन्म स्थान मे खेती या बागवानी के काम भी होते है या जातक का जन्म स्थान हरे भरे क्षेत्र से होता है जातक के पिता के पास खुद की जमीन भी होती है जातक सत्य बोलने वाला भी होता है जातक की बुद्धि बहुत ही तेज होती है वह जो कार्य आम आदमी एक साल मे सीखे वह दो महिने मे ही सीख जाता है। चन्द्र बुध का सम्बन्ध भी दो सम्बन्धो के लिये अपनी युति को देते है। लेकिन हमेसा ही दूसरे सम्बन्धो से निरासा ही मिलती है चन्द्रमा कला व्यापार और पूंजी का कारक है बुध के साथ होने से जातक को कला और व्यापार को अपने अनुसा प्रस्तुत करने का पूरा अनुभव होता है। अपने कार्य के लिये जातक को मानसिक यात्रा भी खूब करनी पडती है वह विदेशी लोगो से सम्पर्क भी रखता है और अक्सर हर काम मे कोई न कोई स्त्री ही सहायक होती है लेकिन वह स्त्री भी अपने सम्बन्धो को स्वार्थ की भावना से ही लगाती है,चन्द्रमा दिमाग का कारक गुरु से सम्बन्ध रखने के कारण बन जाता है और बुध का साथ मिलने से बुद्धि मे बहुत तेज गति बन जाती है मेमोरी पावर बहुत ही अच्छा बन जाता है। बडी बहिन इसी प्रकार से अपनी बुद्धि को प्रसारित करती है माता की बडी बहिन भी जातक को अपने पुत्र जैसा स्थान देती है। जातक की माता की बडी बहिन के नाम भी जमीन आदि होती है जातक को बुध चन्द्र गुरु की युति से किसी भी कठिन समय का पहले से ही आभास होना भी माना जा सकता है। लेकिन जातक की बातो से आम आदमी जातक को पागल जैसी उपाधि देने लगते है लेकिन समय पर घटना के पूरा होने पर आश्चर्य भी मानने लगते है।
गुरु चन्द्र सूर्य बुध का असर जातक के अष्टम का राहु अपनी गति से सम्भालने का काम कर रहा है। राहु अपने अनुसार जातक को कम्पयूटर आदि का ज्ञान बहुत ही तीव्र गति से प्रदान करता है,जातक किसी भी सोफ़्टवेयर आदि से अपने को बहुत जल्दी ही योग्य बना लेता है,जातक कम्पयूटर मीडिया आदि के मामले मे वही बाते प्रसारित करने लगता है जो उसके लिये गुप्त रूप से जानने की योग्यता को रखने मे सहायक होते है। जातक अपनी तर्क शक्ति और अपने छुपे ज्ञान की बजह से अपने को बहुत आगे निकालने के लिये भी माना जा सकता है। इस युति मे जातक नेटवर्किंग मे भी बहुत उच्चतम तकनीक को अपनाने मे माहिर होता है। अपने हाथ से काम करने मे कम और दूसरो से काम करवाने मे अपनी योग्यता को जाहिर करने का कारण जातक के अन्दर बहुत अच्छा होता है।
आने वाले समय मे जातक के एक सम्बन्ध बनने का समय शुरु हो चुका है। यह सम्बन्ध धन को अधिक खर्च करवायेगा,आने वाले समय मे कोई विदेशी कम्पनी ही जातक को अधिक धन का कार्य देने के लिये भी मानी जा सकती है। जातक के राहु का अष्टम मे होना और वर्तमान मे केतु का सप्तम मे होने का अर्थ भी यही माना जा सकता है कि जातक अपने साथ काम करने वाले लोगो से अपने किये जाने वाले कार्यों से गुप्त रखता है तो ठीक है अन्यथा जातक के किये जाने वाले कामो आने वाले जनवरी दो हजार तेरह के शुरु से ही एक व्यक्ति अपने काम को उसी प्रकार से करना शुरु कर देगा जैसे कि जातक कर रहा है इस प्रकार से अपने ही आदमी के द्वारा काटा जाना माना जा सकता है। एक बडे व्यापार की तरफ़ भी जाने का अवसर सामने है लेकिन जातक की खुद की बुद्धि वर्तमान मे केवल अपने लिये वही काम करने का तर्क मन मे रख रहीहै जो उसे नीचा दिखाने के लिये मानेजाते है विदेश मे जाने और बसने के लिये परिवार को अधिक बढाने के लिये तथा माता पिता आदि के लिये अपनी व्यवहारिक सहायता देने के लिये माना जा सकता है।
वक्री गुरु के लिये जातक को सफ़ेद रंग का पुखराज या डोरिया पुखराज ही सही काम करने वाला है। वैसे तो गुरु मारकेश है लेकिन वक्री हो जाने के कारण वक्री शनि तथा केतु के बीच मे होने से गुरु कोई गलत फ़ल नही देने वाला है कभी कभी अक्समात ही धन हानि का योग तो बन सकता है लेकिन शरीर की हानि का कोई प्रभाव यह गुरु नही दे पायेगा.
Bhahut Accha Guruji
ReplyDeleteBahut Sundar Acharya ji,
ReplyDeleteMeri patni ki 2 mata rahi hai.. ye baat satya hai. Mere khas mitro ka balance 2 hi rehta hai.. ye bhi satya hai. Aapne bahut hi accurate vivechan kiya hai.
Charan Sparsh
Bahut Sundar Acharya ji,
ReplyDeletePatni ki 2 mata hai ye satya hai.. 2 Khaas mitra hai ye bhi satya hai.. Aapne baaki baaton ka bhi bahut sateek vivechan kiya hai.
Sadar Charan Sparsh
प्रिय रवि और रजनीश,सभी कुछ जन्म समय और पूंछे जाने वाले प्रश्नों के आधार पर ही लिखा जाता है,ज्योतिषी कोई भगवान नही है,यह केवल समझने का प्रभाव है खुश रहो मजे करो,और रजनीश तथा रवि हो सके तो चीनी खाना बन्द कर दो,यह गुरु चन्द्र की युति सबसे बडा कारण केवल मधुमेह की बीमारी मे खर्चा करवाने वाला और दिमाग को चिढचिढा बनाने के लिये माना जाता है.
ReplyDeleteAcharya ji,
ReplyDeleteKahin Padha hai ki lord of 2nd house, 5th house aur 9th house ka sambandh Dhana yog banata hai, Per agar se sambandh 12 house mein ho to tab bhi Dhana Yog banayega?
Is kundali mein yahi sambandh hai, Kripya shanka ka samadhan krein.
Sadar Charan Sparsh