जीवन मे धन का रूप गौढ है बिना धन के जीवन की उन्नति होना मुश्किल है.धन के लिये ज्योतिष अपने अनुसार रास्ता बताती है जो समझ जाता है वह अपनी रास्ता को अपना कर आने वाले अच्छे और बुरे समय का ख्याल करने के बाद अपने धन को कमाने जमा करने खर्च करने और धन के सदुपयोग दुरुपयोग के प्रति सावधान रहता है। जीवन मे जो ग्रह सबसे अधिक प्रभाव देने वाले होते है उन्ही के द्वारा धन के प्रति आकलन किया जाता है वैसे तो धन का क्षेत्र दूसरा भाव जो नकद धन जो पास है के प्रति अपनी धारणा को व्यक्त करता है तथा किये जाने वाले कार्य से होने वाले लाभ और हानि का रूप कुंडली का ग्यारहवा भाव प्रकट करता है। लेकिन लाभ को देने वाला लाभेश के रूप मे किस भाव मे और किस राशि का फ़ल दे रहा है,साथ ही नकद धन को देने वाला भी द्वितीयेश के रूप मे ग्रह किस भाव और किस राशि से अपना सम्बन्ध स्थापित करने के बाद अपना फ़ल प्रदान कर रहा है। इस बात की जानकारी ज्योतिष से ही मिलती है।
जन्म कुंडली के अनुसार तीन लगने मुख्य रूप से देखी जाती है पहली लगन कुंडली होती है दूसरी चन्द्र कुंडली और तीसरी सूर्य कुंडली। लगन कुंडली शरीर के द्वारा चन्द्र कुंडली मन के द्वारा और सूर्य कुंडली द्रश्य भाव को प्रकट करने वाली होती है इसलिये तीनो लगनो का रूप प्रकाशित करने के बाद ही धन की स्थिति का कारण पता किया जा सकता है। प्रस्तुत कुंडली सिंह लगन की है तथा लगनेश सूर्य बारहवे भाव मे गुरु के साथ है.चन्द्रमा के अनुसार वृश्चिक राशि का फ़ल चन्द्रमा चौथे भाव से दे रहा है,सूर्य कर्क राशि का फ़ल देने के लिये अपनी स्थिति को बता रहा है.लगन पर असर देने वाले ग्रह लगन सूर्य से लगन मे शनि होने से लगन को शनि का असर भी मिला हुआ है,लगन मे बुध के वक्री होने से बुध का असर भी लगन को मिला हुआ है.इस प्रकार से लगन को असर देने वाले ग्रह :-
- सूर्य लगन का मालिक होने से
- शनि लगन मे स्थापित होने से
- बुध (वक्री) लगन मे स्थापित होने से.
- मंगल चन्द्रमा के स्थान से
- गुरु द्रिष्टि से
- राहु द्रिष्टि से
- केतु द्रिष्टि से
- चन्द्रमा कर्क राशि से
- गुरु साथ मे होने से
- चन्द्रमा नवम पन्चम का योग होने से
- केतु द्रिष्टि से
केतु को बल जिन ग्रहो से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मिल रहा है उसमे अष्टम का प्रभाव अप्रत्यक्ष रूप से मंगल का प्रत्यक्ष रूप से राशि से गुरु का नवम पंचम से मंगल का वृश्चिक राशि से चन्द्रमा का स्थापित होने से कर्क राशि का चन्द्रमा के स्थापित होने से देखा जा सकता है। बुध का असर सप्तम से दूसरे भाव से अष्टम का पूरा प्रभाव मिलने से दूसरे भाव के राहु का शुक्र का दूसरे भाव मे स्थापित होने से मंगल का भी दूसरे भाव मे स्थापित होने से तथा कर्क के गुरु का भी प्रभाव बारहवे भाव का राहु शुक्र और मंगल के द्वारा भी मिल रहा है साथ ही गुरु की नवी द्रिष्टि से भी केतु को सूर्य के सहयोग का बल मिल रहा है इसलिये केतु को सबल माना जा सकता है.
गुरु को मिलने वाला अप्रत्यक्ष रूप से गुरु का ही कालपुरुष की मीन राशि का तथा कर्क राशि का बारहवे भाव मे कर्क राशि के स्थापित होने से सूर्य का साथ मे होने से केतु का पहले तो मंगल का अप्रत्यक्ष रूप से केतु के स्थापित होने के स्थान से मीन राशि से गुरु का प्रभाव मिल रहा है तथा केतु मंगल का ही प्रभाव चन्द्रमा के नवम पंचम योग से वृश्चिक राशि मे स्थापित होने से चन्द्रमा का अप्रत्यक्ष रूप से कालापुरुष के चौथे भाव से कर्क राशि से तथा गुरु का सीधा असर गुरु की पंचम द्रिष्टि से सूर्य का असर लेकर मिल रहा है,बुध राहु शुक्र और मंगल का सीधा प्रभाव लेकर केतु अष्टम से अपने प्रभाव को अपनी पंचम द्रिष्टि से गुरु को दे रहा है।
उपरोक्त प्रभाव से केतु को जो बल मिला है उसके द्वारा वृश्चिक राशि से तकनीक का चन्द्रमा से पानी चावल आदि का प्रभाव कर्क राशि से पानी वाले स्थान मे कुये खराब पानी वाहन मकान आदि का प्रभाव वृश्चिक राशि के चौथे भाव से तथा चन्द्रमा पर प्रभाव देने वाले धन आदि के क्षेत्र से राहु का मंगल शुक्र जो कन्या राशि के है का प्रभाव भी मिल रहा है,गुरु जो हवा का कारक है और कर्क राशि मे विद्यमान है तथा सूर्य के साथ स्थापित है का प्रभाव भी मिल रहा है।
केतु अष्टम स्थान मे होने से तथा मीन राशि मे होने से ब्रोकर वाला कार्य भी कर सकता है,जो कार्य हवाई यात्रा से सम्बन्धित हो,तकनीकी क्षेत्र मे कमन्यूकेशन कम्पनियों के लिये भी कर सकता है जो सरकारी क्षेत्र से जुडी हो,केतु के द्वारा जनता के लिये पेट्रोल गैस एजेन्सी क्रूड आयल के काम भी कर सकता है। केतु राहु शुक्र मंगल के असर से जल्दी से धन कमाने वाले क्षेत्र जैसे कमोडिटी मारकेट से भी धन प्राप्त कर सकता है। सरकारी क्षेत्र और जनता से जुडी वायुयान कम्पनियों के लिये भी अपनी सेवाये दे सकता है।
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