अक्सर छोटे सिक्को में एक रूप आपने देखा होगा की एक तरफ पहिचान होती है और दूसरी तरफ कीमत होती है यानी सम्बन्ध के रूप में सिक्के की पहिचान होती है की वह किस देश का है कितनी सीमा तक चल सकता है उसका कैसा रूप है वह कहाँ रखा जा सकता है उसकी गणना कैसे की जायेगी वह बचत करने के बाद कहाँ रखा जाएगा,लेकिन जैसे ही वह व्यवहार के रूप में आयेगा उसका दूसरा पहलू अपनी रूप रेखा को उजागर कर देगा की उस सिक्के का मूल्य कितना है वह खरा है या खोता है उसका क्षेत्र किस सीमा तक है वह किस कार्य के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है उसे प्रयोग में लाने पर वह लाभ देगा या हानि देगा तथा उसे प्रयोग करने के बाद शारीरिक या मानसिक कितनी शान्ति मिलेगी.
अक्सर सम्बन्ध और व्यवहार की गणना करने वाले सिक्को की कीमत कम ही होती है लेकिन जो मुद्रा बहुमूल्य हो जाती है उसके अन्दर एक ही तरफ सम्बन्ध और व्यवहार का रूप देखा जा सकता है यानी उस सिक्के की पहिचान भी और उसका मूल्य भी सिक्के के एक तरफ ही प्रदर्शित होगा.चाहे वह कितनी बड़ी रूप रेखा का हो उसकी जो भी पहिचान होगी वह एक प्रकार से सामने ही प्रदर्शित हो जायेगी.लेकिन एक बात का ख्याल और रखकर इन कारणों को सोचना पडेगा की कोइ भी व्यक्ति अपने सम्बन्ध को पहले प्रदर्शित करने की कोशिश करता है और बाद में व्यवहार को सामने लाता है तो वह एक खरे सिक्के के रूप में देखा जाता है और जिस व्यक्ति के अन्दर पहले व्यवहार यानी उसकी कीमत आगे राखी जाती है और बाद में पहिचान को प्रदर्शित किया जाता है उसकी स्वार्थ वाली भावना को समझा जा सकता है यानी वह व्यक्ति तब तक संबंधो को रखेगा जब तक उसकी स्वार्थ वाली नीति पूरी नहीं हो जाती है जैसे ही स्वार्थ का रूप ख़त्म हो जाएगा वह संबंधो को समाप्त कर देगा.
इस प्रकार का रूप अक्सर भारत से बाहर के लोगो के अन्दर देखी जा सकती है उन्हें मूल्य से मतलब होता है सम्बन्ध से कोइ मतलब नहीं होता है तथा राजनीति के क्षेत्र में अपना नाम रखने वाले लोग भी अपने व्यवहार को केवल कीमत तक ही सीमित रखते है जैसे ही व्यवहार समाप्त हो जाता है उनकी कीमत भी समाप्त हो जाती है और वे फिर किसी भी पहलू से नहीं देखे जा सकते हैयही बात किसी भी क्षेत्र में सामान्य रूप से देखी जा सकती है जब कुंडली को देखते है तो इस बात का बहुत ही ख्याल रखना पड़ता है की जो भी भाव का प्रधान ग्रह है वह अगर भाव से छठे भाव तक है तो उसका कथन केवल भाव के प्रति ही श्रद्धा को बखान करता रहेगा जैसे ही वह भाव से सप्तम की तरफ अपना रुख ले लेगा वह भाव की श्रद्धा को समाप्त करने के बाद मूल्य के क्षेत्र में प्रवेश कर जाएगा.मान लीजिये की दूसरे भाव का स्वामी अष्टम में विराजमान है तो धन का क्षेत्र मूल्य में प्रवेश कर जाता है और मूल्य की सीमा सम्बन्ध से दूर हो जाती है यानी धन का रूप रिस्क में चला जाता है वह आ भी सकता है और हमेशा के लिए समाप्त भी हो सकता है उसी प्रकार से अगर अष्टम का स्वामी दूसरे भाव में आकर विराजमान हो गया है तो मूल्य की सीमा का अतिक्रमण हो जाने के कारण जो सीमा थी वह समाप्त हो चुकी है वह या तो एंटिक रूप में करोडो की कीमत रख सकता है या राख की कीमत का भी हो सकता है.उसी प्रकार से जब तीसरे भाव का स्वामी जब तक अष्टम में है तब तक वह अपनी पहिचान को मर्यादा में ही रखेगा जैसे ही वह नवे भाव में प्रवेश करता है उसकी मर्यादा व्यवहार में जुड़ जायेगी यानी वह अपने रूप और पहिचान को बदल सकता है.यह पहिचान और रूप दोनों ही व्यावहारिक हो जायेंगे अक्सर इस बात को उन लोगो के अन्दर देखा जा सकता है जो पैदा भारत में होकर विदेश में जाकर रहने लगे है वहां के कल्चर के हिसाब से अपने पहिनावे को बदल लेते है और उस बदलाव का रूप व्यवहारिक हो जाता है इस प्रकार से जो पहिनावे की सीमा थी वह समाप्त हो गयी..
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