कठिन समय से भी भलाई |
जातिका की योग्यता आदि के लिये इन दशो प्रभावों को समझने के लिये इस प्रकार से समझा जायेगा:-
- चौथा भाव माता मन मकान का कारक है,मंगल जब इस भाव मे होता है तो साधारण रूप से मानसिक क्लेश का कारक कहा जाता है.घर मे होने वाले क्लेश को समझने के लिये मंगल जो भाई का कारक भी है और शुक्र के साथ होने से भाई की पत्नी के लिये भी माना जाता है इसलिये भाई की पत्नी के द्वारा घर मे क्लेश पैदा किया जाना जरूरी है.घर मे किसी न किसी प्रकार से धन की जद्दोजहद का रहना भी माना जाता है यानी प्रोग्रेस के समय मे भोजन की भी कमी का होना देखा जा सकता है.फ़ेफ़डे का कारक होने के कारण तथा ह्रदय पर असर देने के कारण जुकाम वाली बीमारिया और अधिक सर्दी जुकाम रहने से सिर मे चक्कर आना तथा जुकाम के कारण ही आंखो पर असर देने के लिये भी माना जा सकता है,अक्सर यह प्रभाव बायीं आंख पर अधिक होता है जैसे आंख से पानी का बहते रहना आदि.माता के साथ जब सप्तमेश साथ मे है तो शुक्र नानी का कारक भी हो जाता है यानी चौथे से चौथा भाव नानी का भी माना जाता है,नानी के घर मे भी इसी प्रकार का क्लेश माना जा सकता है नानी की बीमारियां भी इसी प्रकार की मानी जाती है,सप्तम दूसरे नम्बर के भाई बहिन के लिये भी माना जाता है सप्तम का मालिक शुक्र लगनेश के साथ होने से दूसरे नम्बर की बहिन के साथ भी इसी प्रकार का क्लेश देखा जा सकता है,मंगल को स्त्री की कुंडली मे पति के रूप मे भी देखा जा सकता है,इसी प्रकार के कारण पति के लिये भी माने जा सकते है और यही कारण पति की माँ यानी जातिका की सास के लिये भी माना जा सकता है.लेकिन इस भाव के मंगल के लिये यह भी माना जाता है कि जातिका भले ही छोटी हो लेकिन अपनी उम्र के अट्ठाइस साल के बाद उसे अपने घर के लिये बडप्पन की बाते ही करने को मिलेंगी,कारण इस उम्र तक उसने सभी प्रकार के कष्ट सहन कर लिये होते है और अनुभव के आधार पर वह किसी प्रकार के घर के झगडे निपटाने की कला का ज्ञाता हो जाता है.यही बात पति के लिये भी होगी नानी के लिये भी होगी और भाई के लिये भी होगी.अगर जातक किसी प्रकार से अपने घर से दूर चला जाता है यानी किसी प्रकार से शादी के बाद पति के साथ दूर चला जाता है तो बडा भाई घर मे औलाद या सेहत के मामले मे दुखी ही रहना माना जाता है। माता के भाव से ग्यारहवे भाव का मालिक गुरु होने के कारण बडे मामा को भी दुखी माना जा सकता है.जातिक की कुंडली से अष्टम भाव मे गुरु होने के कारण जातिका का ताऊ भी इसी प्रकार से दुखी माना जा सकता है और इस भाव से नवे भाव मे चन्द्रमा होने से जातिका की दादी के लिये भी यही बात जानी जा सकती है.शरीर मे गले के बाद वाले भाव मे मंगल के होने से जातिका को गर्दन की बीमारियां भी होती है जो शुक्र के साथ रहने से थाइराइड जैसी बीमारियों के बारे मे भी सूचित करता है। मंगल केन्द्र मे स्थापित है और लगन का मालिक होने से चौथे मे बैठने से तथा सप्तमेश के साथ होने से दसवे भाव में सप्तमेश और लगनेश मंगल की द्रिष्टि होने से मंगल का केन्द्र मे कब्जा है यह मंगल शुक्र के साथ होने से शरीर के केन्द्र को भी आहत करता है यानी नाभि वाली बीमारियां भी होती है.
- इस भाव का मंगल खून के अन्दर पतलापन पैदा करता है यानी पानी के भाव मे होने से और शनि की राशि मे होने से दिमाग मे शक की बीमारी को भी पैदा करता है,जो लोग जान पहिचान वाले होते उनके अन्दर भी जातिका के प्रति शक की बीमारी को पैदा करने के लिये माना जाता है.भाग्य के भाव को अपनी छठी नजर से देखने के कारण भाग्य भी काम नही करता है केतु की अष्टम द्रिष्टि होने के कारण वह उम्र की पच्चीसवी साल तक किसी न किसी प्रकार से कालेज के किसी व्यक्ति के साथ गलत सम्बन्धो के लिये भी जोडा जा सकता है,जैसे केतु की अष्टम नजर लगनेश पर पडने के कारण भी जाना जा सकता है.इस कारण से इस भाव के मंगल मे एक प्रकार से एक दूसरे से बदला लेने की भावना भी पैदा हो जाती है और इस भावना से मंगल जो भाई का कारक है और मंगल जो पति का कारक है बदला लेने के कारण जेल जाने के कारणो को भी बना सकता है.जेल जैसे स्थान मे रहना भी एक प्रकार से इस मंगल के कारण ही देखे जाते जब सूर्य से गयरहवा शनि राहु हो यानी एक ऐसी सरकारी संस्था जहां पिता काम करता हो और वह जेल जैसी संस्था को संभालने का काम करता हो तो भी जेल जैसी स्थिति को ही माना जा सकता है.
- चौथे भाव को आठवा भाव नवे भाव से और छठा भाव ग्यारहवे भाव से अपनी नजर को रखता है,यानी ताऊ अपनी नजर से अपनी मालिकियत को मानता है और छठा भाव अपने लाभ का साधन मानता है इसलिये जातक को जब भी परेशानी होती है तो अपने ताऊ चाचा आदि से होती है और घर मे बंटवारे आदि जैसे कारण अधिकतर इन्ही लोगो के कारण चलते रहते है.अष्टम मे गुरु के होने से और छठे भाव मे बुध के होने से यह लोग जो भी अपनी कानूनी प्रक्रिया को करते है वह गुप्त रूप से करते है,एक तरफ़ तो वे अपने को इस प्रकार से जाहिर करते रहते है कि वे ही सच्चे हितैषी है लेकिन पीठ पीछे अपनी ही चलाने की बात करते है और गुरु के आगे केतु होने से जातिका के ताऊ आदि अपने चार प्रकार साधनो से अदालती कार्य आदि करते रहते है इस कारण से जातिका के घर मे भी तनाव रहता है.
- सूर्य का शिक्षा स्थान मे होना और शनि राहु की सम्मिलित नजर सूर्य पर होने के कारण जातिका के पिता किसी बडे संस्थान को संभालने के लिये माने जा सकते है जो शिक्षा या राज्य के प्रति जाना जाता हो और सचिव जैसी हैसियत को रखता हो.
- वर्तमान मे जातिका की दशा शनि की चल रही है और यह दशा जातिका को किये जाने वाले कार्यों से दिक्कत को देने के लिये मानी जाती है लेकिन इस मंगल की युति के कारण जातिका जितना कष्ट भोगेगी उतना ही उसे अपने पतले खून को मजबूत बनाने के लिये जाना जायेगा.
- चन्द्रमा का मंगल के साथ योगात्मक प्रभाव होने के कारण जातिका की बुरे वक्त मे कोई न कोई अद्रश्य शक्ति सहायता के लिये आजायेगी.लेकिन जातिका जब मेहनत वाले काम करेगी तो ही यह सम्भव है हरामखोरी मे यह शक्ति खुद ही जातिका को परेशान करने से नही चूकेगी.
- अप्रैल दो हजार पन्द्रह तक जातिका को बहुत मेहनत करने की जरूरत है इसके बाद जातिका को अक्समात ही प्रोग्रेस के रास्ते गुरु की सहायता से खुलने लगेंगे.
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