कुंडली का चौथा आठवा और बारहवां भाव व्यापार का भाव होता है.व्यापार के भावो को चलाने के लिये उनके चौथे भाव का सशक्त होना जरूरी होता है.जैसे खुद के व्यापार के लिये चौथे भाव से चौथा भाव यानी सातवा भाव और ब्रोकर वाला कार्य करने के लिये ग्यारहवा भाव विदेशी कारको का व्यापार करने के लिये तीसरा भाव सशक्त होना जरूरी होता है.व्यापार का प्रकार हमेशा चौथे आठवे और बारहवे भाव के स्वामी के अनुसार ही मना जाता है.जितने शक्तिशाली इनके भावेश होते है उतनी ही अच्छी तरह से व्यापार का कारण बनता है और व्यापार के भाव से ग्यारहवे यानी दूसरे छठे और दसवे भाव के अनुसर ही कार्य करने पर व्यापार का फ़ल प्राप्त होता है अगर व्यापार का भाव किसी प्रकार से इन भावो के स्वामियों की कमजोरी या किसी विरोधी ग्रह के कारण दिक्कत मे होता है तो व्यापार का कारण अक्सर बरबाद होता ही देखा जाता है.प्रस्तुत कुंडली सिंह लगन की है और स्वामी सूर्य का स्थान छठे भाव मे है,जातक धन के मामले मे अच्छा जानकार है बैंकिंग बचत कर्जा देना कर्जा लेना कर्ज से ब्याज कमाना आदि कारण जातक को बहुत अच्छी तरह से आते है.लगनेश से ग्यारहवे भाव मे व्यापार का चौथा भाव है जातक व्यापार करने के लिये केतु का सहारा लेता है,यानी वह अपनी लगन से मृत्यु के बाद की सम्पत्ति को प्रयोग करने अपने द्वारा जो भी कार्य किये जाते है उनके अन्दर सरकारी धन को लेने के बाद अपने अनुसार धन को देने के लिये बुद्धि को रखता है यह एक प्रकार से सरकारी धन बैंक आदि के लिये दलाली या ब्रोकर वाला कार्य जाना जाता है.इस कुंडली मे धन का स्वामी बुध है और लाभ का स्वामी भी बुध है बुध के साथ पंचमेश और अष्टमेश गुरु बारहवे भाव के स्वामी चन्द्रमा तीसरे और दसवे भाव के स्वामी शुक्र भी अपनी शक्ति को प्रदान कर रहे है। शनि जो छठे और सातवे भाव के स्वामी है भाग्येश और सुखेश मंगल के साथ विराजमान है.चन्द्र राशि धनु है तथा कारकांश मेष का है।
सूर्य राजनीति का कारक भी है और लगनेश भी है सूर्य से बारहवे भाव मे गुरु शुक्र चन्द्र और बुध के होने से जातक का लगाव राजनीतिक व्यक्तियों से भी है और यही कारण जातक को व्यापार मे बल देने के लिये भी माना जा सकता है। कार्य भाव मे राहु है और राहु सूर्य से युति लेकर विराजमान है सूर्य राहु के लिये अपनी सहायता को प्रदान कर रहा है और इसी राहु के कारण जातक का अपने को धन के लिये विस्तार मे लाने के लिये भी अपनी शक्ति को दे रहा है। जब केतु वृश्चिक राशि का होता है और चौथे भाव मे बैठ जाता है तो जातक जनता के साथ धन और बैंकिग वाले कार्यों को करने लगता है,इस भाव के ग्यारहवे भाव का स्वामी बुध है और बुध अक्सर दूसरे भाव से प्राइवेट बैंकिन्ग को तभी प्रसारित करता है जब वह इस भाव के दूसरे यानी पंचम भाव के मालिक से अपनी युति को प्राप्त करता है। गुरु कानून भी है बुध जानकारी के लिये फ़ाइनेन्स वाले कानूनो को भी जानता है पिता या परिवार का कोई सदस्य कानून का अच्छा जानकार हुआ करता है इस कारण से जातक को कानूनी प्रक्रिया मे दिक्कत नही आती है। लेकिन जातक का भाग्य हर अठारह महिने मे बदलते रहने के लिये राहु अपनी युति को प्रदान करता रहता है। तथा अपनी गति से जातक के लिये हर ग्यारह साल मे एक प्रकार का उल्टा प्रभाव देने के लिये भी अपनी गति को प्रदान करता है। जातक की स्थिति इस प्रकार से पहले तो बढती है और धीरे धीरे बढने के बाद घटनी शुरु हो जाती है। एक बार जातक के प्रयासो से स्थिति बनती है और बाद मे साझेदारो या साथ मे काम करने वाले लोगो की जल्दबाजी से घटनी शुरु हो जाती है। यह राहु के कारण ही होता है। इसके साथ ही जातक को समाप्त करने के लिये जल्दी से धन कमाने वाली स्थिति से भी उल्टा प्रभाव शुरु हो जाता है जातक अपने सहायक लोगो के साथ जल्दी से धन कमाने वाले कारणो मे शुरु हो जाता है और जैसे ही वह इस प्रकार के कार्यों मे अपने को ले जाता है यह राहु सभी प्रकार के जल्दी से कमाने वाले साधनो को बरबाद करने के लिये अपनी गति को प्रदान करने लगता है.
No comments:
Post a Comment