ज्योतिष का रूप सामने आता है तो पंचांग का रूप भी सामने आता है,एक किताब के रूप में या किसी साईट पर पंचांग को देख लिया जाता है जैसे आज क्या दिन है क्या तिथि है क्या नक्षत्र है कौन सा योग है कौन सा करण है आदि बाते देखकर किताब या साईट को बंद कर दिया जाता है.जो पंचांग का गूढ़ है शायद सौ लोगो में से एक को ही पता होगा,पंचांग के प्रति कितनी जानकारी और पंचांग का क्या महत्व है इस बात का जानना बेहद जरूरी है.
- ज्योतिष में पांच बाते जानना बहुत जरूरी है,पहली बात तिथि को जानना,दूसरी बात वार को जानना तीसरी बात नक्षत्र को जानना चौथी बात करण को जानना पांचवी बात योग को जानना,इन पांच बातो को जान लेने के बाद किसी भी कुंडली की गति विधि और किसी भी व्यक्ति के शुरू किये गए काम को बनाना या बिगड़ना देखा जा सकता है.पंचांग में मुख्य कारक पांच तत्व है,वार अग्नि तत्व है,तिथि जल तत्व है,नक्षत्र वायु तत्व है,करण पृथ्वी तत्व है और योग आकाश तत्व है.इन पांचो तत्वों के कारको को ही मुख्य रूप से पंचाग में जोड़ा गया है और इन्ही की गति विधि को समझाने के लिए ही पंचांग का निर्माण किया जाता है.कुंडली को बनाकर वारेश यानी दिन के स्वामी किस पोजीसन में है से अग्नि तत्व का रूप समझा जा सकता है,किसी भी व्यक्ति कार्य और स्थान के लिए वारेश का जानना बहुत जरूरी होता है,अगर उदित कुंडली में वारेश त्रिक भाव में है या किसी शत्रु ग्रह के संरक्षण में है तो निश्चित ही उस दिन की गतिविधिया ठंडी रहेंगी.कारण हिम्मत और प्रयास के लिए अग्नि तत्व बहुत जरूरी है,जब तक कार्य या कारक के प्रति उत्तेजना नहीं होगी कार्य पूर्ण नहीं होगा.आग के भी दो रूप है एक सकारात्मक और एक नकारात्मक सकारात्मक आग को जलता हुआ और प्रकाश से युक्त देखा जाता है,जबकि नकारात्मक आग को सुलगता हुआ और अन्दर ही अन्दर दहकता हुआ देखा जा सकता है,लेकिन बिना सकारात्मक के नकारात्मक का रूप भी नहीं मिलता है,उसी प्रकार से जल तत्व भी दो प्रकार का होता है एक सकारात्मक और एक नकारात्मक बहता हुआ जल बरसता हुआ जल किसी स्थान पर भरा हुआ जल सकारात्मक रूप से माना जाता है लेकिन जो जल वाष्पीकरण होकर हवा में उपस्थित होता है जो जल मिट्टी लकड़ी आदि में छुपा होता है शरीर के अन्दर विद्यमान होता है वह नकारात्मक जल के रूप में माना जाता है ज्योतिष में द्रश्य और अद्रश्य रूप में भी जल की विवेचना की जाती है जैसे कुए के अन्दर का जल नकारात्मक जल और बारिस का पानी सकारात्मक जल के रूप में देखा जाता है उसी प्रकार से वायु तत्व और आकाश तत्वों के साथ पृथ्वी तत्व को भी जाना जा सकता है.
- वारेश से अग्नि तत्व की पूर्णता और अपूर्णता को समझा जाता है.
- नक्षत्र के मालिक से वायु तत्व को पूर्ण या अपूर्ण समझा जाना ठीक है.
- करण के मालिक से भूमि तत्व की द्रश्य या अद्रश्य रूप को समझा जा सकता है.
- योग के मालिक से आकाश तत्व की पूर्णता को और अपूर्णता को समझा जा सकता है.
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