प्रस्तुत कुंडली एक कन्या की है और इस कुंडली के अनुसार वृश्चिक लगन है,चन्द्र राशि मेष है,लगनेश अष्टम मे है,भाग्येश चन्द्रमा त्रिक भाव मे छठे भाव मे है,कुंडली मे मन के भाव मे केतु विराजमान है.सम्बन्धो का कारक गुरु सूर्य और शुक्र बुध के साथ भाग्य मे विराजमान है.इस ग्रह युति के कारण जातिका अपने को बैंक बीमा फ़ायनेंस बचत किये गये धन के प्रति कमन्यूकेशन के द्वारा अपने कार्य को करने के लिये जानी जा सकती है। शनि का स्थान सूर्य की राशि मे होने के कारण तथा राहु के साथ होने से जातिका के पास कभी तो बहुत काम होते है और कभी वह बिना कार्य के परेशान होती रहती है,उसे काम करने के लिये बाहरी लोगो से मिलना बडे धन को इकट्ठा करना साथ ही मन के अन्दर अपने भावो को प्रसारित करने के कारण वह हमेशा अपने कार्यों और परिवार से अपने को दिक्कत मे रखने के लिये मानी जाती है। इसके साथ ही पिता के भाव मे शनि राहु के होने के कारण पिता का कार्य क्षेत्र और पिता के स्थिति के लिये एक प्रकार से अपनी संतान के लिये ग्रहण देने के लिये ही मानी जा सकती है।माता भाग्य की कारक मानी जा सकती है और माता के द्वारा ही इस जातिका के प्रति कोई भी धारणा बनाना भी माना जा सकता है।जीवन साथी का कारक शुक्र है शुक्र का स्थान सूर्य गुरु बुध के साथ मे है,सूर्य गुरु जीवात्मा योग का कारक है और बुध साथ होने से बहुत बडे परिवार और संस्थान के बारे मे जाना जा सकता है। जीवन साथी का कारक जन्म लेने के स्थान से दक्षिण पश्चिम दिशा मे माना जा सकता है। इस कुंडली से एक अन्य कुंडली को मिलाने पर जब सोफ़्टवेयर से कुंडली को मिलाया जाता है तो दोनो मे कुल गुण साढे बारह ही मिलते है और किसी भी प्रकार से इस कुंडली से कुंडली नही मिलती है। लेकिन जब कुंडली को सूक्ष्म रूप से मिलाया जाता है तो कुंडली मे जो धारणायें बराबर की मिलती है वे मिलाने से सभी कुंडली कृत गुण दूर होते हुये माने जा सकते है।
प्रस्तुत कुंडली से मिलान करने पर देखा जा सकता है कि चन्द्रमा जो मन का कारक है वह स्त्री कुंडली मे तो छठे भाव मे है और पुरुष की कुंडली मे नवे भाव मे है तो लेकिन वह वृश्चिक राशि का होने के कारण मंगल की ही राशि मे विराजमान है जैसे स्त्री कुंडली मे चन्द्रमा मेष राशि मे होने पर मंगल की ही राशि मे विराजमान है.मन से मन को द्रिष्टि मे रखकर अगर बात की जाती है तो यह मिलान चन्द्रमा से उत्तम माना जा सकता है। मन के बाद शादी के लिये जो महत्वपूर्ण बात होती है वह एक दूसरे की शक्ति से मानी जाती है स्त्री कुंडली मे जो मंगल अष्टम मे है और इस मंगल से पुरुष कुंडली के मंगल को अगर देखा जाये तो वह पंचम मे स्थापित है और पंचम के मंगल की पूर्ण कन्ट्रोल करने वाली नजर स्त्री के मंगल पर है पुरुष शक्ति से जब स्त्री शक्ति कन्ट्रोल करने की क्षमता होती है तो स्त्री शक्ति हमेशा कार्य के लिये मानी जा सकती है और स्त्री कभी भी गलत रास्ते की सोच को दिमाग मे नही पैदा कर सकती है। इसके अलावा शनि जो कर्म का कारक है दोनो की कुण्डली मे एक ही राशि मे यानी सिंह राशि का ही विद्यमान है स्त्री कुंडली मे शनि दसवे भाव मे है जो कार्य और पिता के सुख से दूर करने वाला तथा वैवाहिक सुख और जीवन साथी के सुख के लिये दिक्कत देने वाला माना जाता है जब कि पुरुष कुंडली मे वही शनि छठे भाव मे विराजमान है जो स्त्री कुंडली से नवम पंचम का योग कारक होने के कारण शनि से टक्कर लेने के लिये माना जा सकता है कहा भी जाता है कि लोहा लोहे से ही काटा जा सकता है दूसरे स्त्री कुंडली से अगर सप्तम के लियेदेखा जाये तो पुरुष कुंडली के अन्दर शुक्र राहु बुध सूर्य आदि ग्रह टक्कर लेने के लिये माने जाते है शनि से सूर्य की युति से धन सम्बन्धी कारणो मे सरकार और बैंक आदि के लिये अच्छा माना जा सकता है बुध से युति लेने के लिये खुद की बैंकिंग की जानकारी से आगे की बढोत्तरी की जा सकती है राहु से युति लेने से शाखायें बनाना और लोगो को रोजगार देने की बाते भी मिलती है शुक्र से युति लेने के बाद स्त्री और पुरुष दोनो ही अपनी अपनी चेष्टा से धन समाज संस्थान आदि के लिये उत्तम माने जा सकते है। गुरु जो सम्बन्धो का बनाने वाला है दोनो की कुंडली मे स्त्री कुंडली मे तो नवे भाव मे होने से गुरु का भाग्य बढाने वाला माना जा सकता है पुरुष कुंडली मे चौथा गुरु उच्च का हो जाता है और भाग्य के लिये अपनी गति को नीचता को भी उच्चता मे लाने के लिये माना जा सकता है इस प्रकार से अगर कम्पयूटर से कुंडली को मिलाया जाता है तो इतनी सभी बाते एकदम एक किनारे रखकर इस प्रकार के उपयुक्त मेल को हटा दिया जा सकता है।
प्रस्तुत कुंडली से मिलान करने पर देखा जा सकता है कि चन्द्रमा जो मन का कारक है वह स्त्री कुंडली मे तो छठे भाव मे है और पुरुष की कुंडली मे नवे भाव मे है तो लेकिन वह वृश्चिक राशि का होने के कारण मंगल की ही राशि मे विराजमान है जैसे स्त्री कुंडली मे चन्द्रमा मेष राशि मे होने पर मंगल की ही राशि मे विराजमान है.मन से मन को द्रिष्टि मे रखकर अगर बात की जाती है तो यह मिलान चन्द्रमा से उत्तम माना जा सकता है। मन के बाद शादी के लिये जो महत्वपूर्ण बात होती है वह एक दूसरे की शक्ति से मानी जाती है स्त्री कुंडली मे जो मंगल अष्टम मे है और इस मंगल से पुरुष कुंडली के मंगल को अगर देखा जाये तो वह पंचम मे स्थापित है और पंचम के मंगल की पूर्ण कन्ट्रोल करने वाली नजर स्त्री के मंगल पर है पुरुष शक्ति से जब स्त्री शक्ति कन्ट्रोल करने की क्षमता होती है तो स्त्री शक्ति हमेशा कार्य के लिये मानी जा सकती है और स्त्री कभी भी गलत रास्ते की सोच को दिमाग मे नही पैदा कर सकती है। इसके अलावा शनि जो कर्म का कारक है दोनो की कुण्डली मे एक ही राशि मे यानी सिंह राशि का ही विद्यमान है स्त्री कुंडली मे शनि दसवे भाव मे है जो कार्य और पिता के सुख से दूर करने वाला तथा वैवाहिक सुख और जीवन साथी के सुख के लिये दिक्कत देने वाला माना जाता है जब कि पुरुष कुंडली मे वही शनि छठे भाव मे विराजमान है जो स्त्री कुंडली से नवम पंचम का योग कारक होने के कारण शनि से टक्कर लेने के लिये माना जा सकता है कहा भी जाता है कि लोहा लोहे से ही काटा जा सकता है दूसरे स्त्री कुंडली से अगर सप्तम के लियेदेखा जाये तो पुरुष कुंडली के अन्दर शुक्र राहु बुध सूर्य आदि ग्रह टक्कर लेने के लिये माने जाते है शनि से सूर्य की युति से धन सम्बन्धी कारणो मे सरकार और बैंक आदि के लिये अच्छा माना जा सकता है बुध से युति लेने के लिये खुद की बैंकिंग की जानकारी से आगे की बढोत्तरी की जा सकती है राहु से युति लेने से शाखायें बनाना और लोगो को रोजगार देने की बाते भी मिलती है शुक्र से युति लेने के बाद स्त्री और पुरुष दोनो ही अपनी अपनी चेष्टा से धन समाज संस्थान आदि के लिये उत्तम माने जा सकते है। गुरु जो सम्बन्धो का बनाने वाला है दोनो की कुंडली मे स्त्री कुंडली मे तो नवे भाव मे होने से गुरु का भाग्य बढाने वाला माना जा सकता है पुरुष कुंडली मे चौथा गुरु उच्च का हो जाता है और भाग्य के लिये अपनी गति को नीचता को भी उच्चता मे लाने के लिये माना जा सकता है इस प्रकार से अगर कम्पयूटर से कुंडली को मिलाया जाता है तो इतनी सभी बाते एकदम एक किनारे रखकर इस प्रकार के उपयुक्त मेल को हटा दिया जा सकता है।
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