रहीमदास जी ने एक दोहा कहा था -"रहिमन आपु ठगाइये और न ठगिये कोय,आपु ठगे सुख ऊपजे और ठगे दुख होय॥" इस दोहे का अर्थ बहुत बडा है,जो लोग दूसरे को ठगकर अपनी स्वार्थी भावना को पूरा करना चाहते है वह कभी अपनी भावना को पूर्ण नही कर सकते है और जो लोग स्वार्थी भावना से ठगे जाते है वे अपने को आगे से स्वार्थी भावना वाले लोगो से बचने के लिये अपने उपाय कर लेते है और जो उनके द्वारा ठगा गया है उसे वह अपने प्रयास से पूरा भी कर लेते है। जिसने किसी को ठगा है वह किसी न किसी कारण से बहुत गहरे रूप में ठगा जाता है,तथ वह अपनी कमी को कभी भी पूरा भी नही कर सकता है तथा हमेश ही दुखी रहते हुये माना जाता है। नीति की बात को समझने के लिये अगर इस दोहे को समझा जायेगा तो काफ़ी राहत उन लोगो को मिलेगी जो तन से धन से परिवेश से मन से सन्तान से रोजाना के कामो से जीवन साथी से जमा की पूंजी से धर्म से कार्य से मित्रता से यात्रा आदि मे ठग जाते है और बाद मे वे अपने को यह कहकर कर चुप होते देखे जाते है कि यह समय की बात थी। मनुष्य मनुष्य को कभी ठग नही सकता है यह बात भी सत्य है कारण जो शरीर बुद्धि एक व्यक्ति के पास होती है वैसी ही दूसरे के पास भी होती है एक को समय खाली करता है एक को समय भरता है,कारण कोई भी बनता है,जब कारण बनता है तो शरीर अपने ही शरीर को ठगा देता है,धन और परिवार वाले खुद को ही ठगने के लिये तैयार हो जाते है जो परिवेश आसपास का है उसी के अन्दर लोग घात लगाकर ठगने से नही चूकते है कभी कभी घर के अन्दर भी अपने ही लोग ठगने के लिये तैयार हो जाते है यहां तक कि माता पुत्र को और पुत्र माता को भी ठग सकते है। कोई नौकरी करने के बाद ठगा जाता है कोई नौकरो के द्वारा ठगा जाता है। कभी कभी देखा जाता है कि साझेदार ही ठगी करके चला जाता है कभी पति पत्नी को और पत्नी पति को ही ठगने के लिये आमने सामने खडे हो जाते है,कभी कभी नई नई स्कीम देकर और भविष्य के लिये जमा करवा कर खुद ही अपनी ठगी का शिकार होना पडता है,कोई धर्म से ठगने के लिये अपनी बुद्धि को प्रयोग मे लाने लगता है कोई न्याय से ठगने के लिये अपने कानूनो का सहारा लेने लगता है कोई अपने पूर्वजो से ही ठगा जाता है कोई कार्य करने के मामले मे ही ठग लिया जाता है कोई अपने मित्रो से ही ठगा जाता है कोई यात्रा आदि मे आते जाते ही किसी न किसी प्रकार से ठग लिया जाता है।
सम्बन्धो मे ठगी
ठगने के लिये राहु का प्रभाव सबसे पहले माना जाता है बिना राहु के कोई भी ठगा नही जा सकता है बाकी के ग्रह भी राहु के सामने अन्धे हो जाते है और राहु अपना कार्य करने के बाद निकल जाता है। जीवन मे रोजाना राहु काल का एक समय होता है इस राहु काल मे लोग इसीलिये कोई लेन देन साझेदारी व्यापार आदि की भूमिका यात्रा तथा उपरोक्त कारणो मे नही जाते है जो भी उन्हे करना होता है वह अलावा समय मे अपने कार्यों को कर लेते है लेकिन राहु काल मे किसी भी महत्व पूर्ण कार्य को नही किया जाता है। राहु व्यक्ति के जिस भाव मे गोचर कर रहा होता है उसी भाव के अनुसार अपनी ठगी को करने के लिये अपनी शक्ति को देता है। अगर वह लगन मे है तो शरीर वाले कारको को ही ठगने मे अपनी योजना को बनाकर ठगेगा,लेकिन यह बात भी जानने के लिये जरूरी है कि ठगने के लिये केवल वही व्यक्ति अपनी योजना को बनायेगा जो खुद भी राहु से ग्रसित हो। यह बात जानने के लिये अगर आप राहु वाले जानवरों को देखे तो आराम से समझ भी सकते है और देख भी सकते है कि कैसे राहु राहु को ही ठगने मे विश्वास करता है। जीवो मे बिल्ली को भी राहु माना गया है और चूहे को भी राहु की श्रेणी मे माना गया है। बिल्ली के पास ताकत और घात लगाने की योजना का ज्ञान होता है जबकि चूहे को बिल्ली से बचने के लिये भागने और छुपने का ज्ञान होता है दोनो मे जिसके ज्ञान की कसौटी खरी उतरती है वही अपनी घात मे सफ़ल हो जाता है या बच जाता है। इसी प्रकार से जब दो व्यक्तियों के लिये देखा जाये तो राहु किसी व्यक्ति के लिये पहले तो एक प्रकार का प्रसिद्धि का कारण पैदा करता है फ़िर लोग उस प्रसिद्धि को सुनकर देखकर या अपने ही लोगो के विश्वास मे आकर उसके पास जाते है,अगर राहु सुने गये व्यक्ति का बलवान है तो जो उस व्यक्ति के प्रति सुनकर गया है वह ठगा जाता है और किसी प्रकार से जो व्यक्ति सुन कर गया है उसका राहु बलवान है तो वह सुने गये व्यक्ति की चालाकी या जो भी क्रिया उसके द्वारा की जाती है को समझकर अपने को ठगने से बचा लेता है।राहु गोचर जब लगन से शुरु होता है तो जो व्यक्ति लगन यानी शरीर से अपनी शक्ति और प्रदर्शन के मामले से अपनी औकात को दिखाने की हिम्मत रखते है और दुनिया को अपने शरीर के शौर्य से अचम्भित कर देते है वही लोग जब किसी प्रकार के शरीर की शक्ति से दिक्कत मे आते है तो वह किसी अन्य व्यक्ति से भी अपने शरीर से ही ठगे जाते है।
क्रिकेट मैच मे चीटिंग
ठगना यानी घात लगाकर अपने कार्य को पूरा कर लेना,यही बात मौका देखकर अपने कार्य को पूरा कर लेना प्रतिस्पर्धा मे आकर अपनी योजना को पूरी करने के लिये अलावा बुद्धि का प्रयोग करना,रोजाना की जिन्दगी मे उन्ही कार्यों को करना जो अन्य लोगो की समझ से बाहर की बात हो,काम कुछ करना और लोगो को दिखाना कुछ,जाना कही और बताना कहीं के लिये आदि बाते भी इसी ठगने की श्रेणी मे आजाती है। माता पिता अपने पुत्र को वही बात सिखाना चाहते है कि उनका पुत्र आगे के लोगो से कुछ अलग से अपनी औकात को प्रस्तुत करे,और वह सभी लोगो को पीछे छोड कर आगे निकल जाये इसके लिये ही लोग अपने को अलावा कार्यों को करते हुये देखे जाते है जो लोग अपनी विद्या मे निपुणता को लाना चाहते है वह एक ही बिन्दु पर अपने को बेलेन्स करने के बाद लेकर चलते है और अलावा लोगो से आगे निकल जाते है जबकि दूसरा व्यक्ति किसी प्रकार से एक बिन्दु की नही सोच कर कई कारणो को एक साथ लेकर चलता है और जो बिन्दु उसके सामने है उससे भटक जाता है यानी पीछे रह जाता है। व्यक्ति जब नौकरी या व्यवसाय मे आगे निकलना चाहता है तो उसे अपने प्रतिद्वन्दी से ही खतरा होता है या तो वह अपने उद्देश्य मे सफ़ल होने के लिये कुछ ऐसा करे जो अन्य नही कर पाये या वह अपने व्यवसाय को कुछ इस सम्मोहन से करे कि बाकी के नही कर पाये यही बात अक्सर लोगो के पास प्राइवेट या व्यक्तिगत कारणो से घिरी होती है जो लोग नही बताना चाहते है और अपने कार्यों को उसी पद्धति से करते जाते है जैसे ही उनके कार्यों की पोल खुलती है वे अक्समात ही ऊपर जाते हुये नीचे आजाते है। यह बात भी ठगी की तरह से ही देखी जाती है और जब तक उनकी माया को कोई समझता नही है तब तक वह आगे निकलते जाते है जैसे ही उनकी माया सभी के सामने आती है वह अपने खेल से नीचे आने लगता है। कोई समय का फ़ेर देकर कोई ऋतु का फ़ेर देकर कोई देश का फ़ेर देकर कोई जलवायु का फ़िर देकर कोई जानकारी और जानपहिचान का फ़ेर देकर अपने को आगे निकालने के लिये प्रयास करने मे लगा हुआ है जैसे ही उसकी बारी आती है और उसने अपने प्रदर्शन को पूरा किया है तो वह अपने को आगे निकाल ले जाता है।
व्यवसाय मे ठगी
व्यवसाय मे ठगने के भी बहुत से तरीके लोग प्रयोग मे लाते है,एक ही उत्पादन को कई प्रकार के सम्मोहन मे लेजाकर उसे सौ गुनी कीमत पर बेचने का कारण शिक्षा या समझदारी नही कही जा सकती है केवल ठगी का जाल ही कहा जा सकता है। जो वस्तु रोजाना की जिन्दगी मे जरूरी है उसे समय पर नही देने के बाद उसे मुंहमांगी कीमत पर बेचना,तब तक उसे स्टोर करके रखना जबतक कि उसकी कीमत कई गुनी आगे नही बढ जाये यह भी एक कारण ठगी का जाना जाता है। व्यापारिक कला को जानने के लिये लोग अपनी अपनी बुद्धि का प्रयोग किया करते है लोगो की जेब से पैसा निकालने के लिये कई तरह के उपक्रम चलाया करते है यह व्यापार की नजर मे तो व्यापार है लेकिन दूसरी नजर से देखी जाये तो वह ठगी के अलावा कुछ नही है। ठगी का मुख्य कारण सम्मोहन ही होता है। बिना सम्मोहन के किसी को ठगा नही जा सकता है। सम्म्होन और बुद्धि जिसके पास होती है वह एक नम्बर का ठग माना जाता है। बुद्धि से अपने को पहले प्रचार के क्षेत्र मे उतारा जाता है प्रचार मे सम्मोहन को प्रस्तुत किया जाता है। जैसे एक खिलाडी अपने को पहले प्रचार मे लाता है,वह अपने दाव पेच सभी बाते प्रचार मे प्रस्तुत करता है जो लोग इस क्षेत्र से जुडे होते है वह उसकी बुद्धि की सराहना करते है,वह सराहना करने के बाद लगातार अपने को सम्मोहन मे लेकर लोगो के लिये खेलना शुरु कर देता है उसकी कीमत अन्य खिलाडिओं से आगे बढती जाती है।जैसे जैसे उसका सम्मोहन बढता जाता है वह अपने को आगे बढाता जाता है। यह राहु के मजबूत रहने तक ही माना जाता है जैसे ही राहु कमजोर होता है या राहु विपरीत भावो मे जाता है उस व्यक्ति की सम्मोहन की शक्ति कम होती जाती है और जैसे ही सम्मोहन की शक्ति कमजोर होती है वह नीचे आजाता है। करतब दिखाना और बुद्धि को प्रयोग करना भी एक प्रकार से मदारी की तरह से ही होता है,जैसे करतब दिखाने के लिये लोग अपने को लोगो के सामने ले जाते है और जैसे ही करतब दिखाकर वह लोगो के सामने प्रस्तुत होता है लोग उसकी वाहवाही करने लगते है,यह भी राहु के द्वारा ही होता है जैसे एक मदारी अपने हाथ को हिलाकर कुछ कह रहा है लेकिन वह अपने कार्य को दूसरे प्रकार से कर रहा है तो जो लोग उसके हाव भाव को देख रहे है वे उसके कार्यों की तरफ़ नही उसकी बोली पर चल रहे होते है,लेकिन जब बोली के बाद उसके कार्य का फ़ल सामने आता है तो मदारी अपने करतब से सबको सम्मोहित कर लेता है।
जिसे लोग हुनर के नाम से जानते है कला के नाम से जानते है शिक्षा के नाम से जानते है यह केवल बुद्धि को विकसित करने के नाम से जाना जाता है। एक ही क्षेत्र मे बुद्धि को विकसित करने के बाद कोई भी अपनी कला को प्रदर्शित कर सकता है,अपने हुनर को दिखा सकता है। जो लोग उस हुनर को नही जानते है जो लोग कला मे नही गये होते है उन्हे उस कला और हुनर को देखकर अचम्भित होना लाजिमी है। हर आदमी हर काम को नही कर सकता है जिसे जितना ज्ञान होता है उतना ही कथन वह कर सकता है। जिस आदमी ने कभी हुनर वाले काम सीखे ही नही हो या वह आदमी एक प्रकार की विद्या से कालचक्र या अपनी विशेष परिस्थिति से नही गुजरा हो वह उस हुनर या कला मे अपनी स्थिति को मजबूत करके नही दिखा सकता है। जो दिखा नही सकता है वही तुलना करने के लिये जाना जा सकता है जैसे अमुक हीरो या हीरोइन ने कला का अच्छा प्रदर्शन किया है अमुक के अन्दर कला का ज्ञान नही है,अथवा अमुक खिलाडी ने अपने करतब खूब दिखाये है लेकिन अमुक ने नही दिखाये है। बुद्धि का एक ही क्षेत्र मे विकास की तरफ़ ले जाना उसी क्षेत्र मे अपने सफ़लता को दिखाने के लिये जाना जाता है। भौतिक सिद्धान्त हमेशा एक ही नजर से देखे जाते है लेकिन उन सिद्धान्तो को बहुत ही गूढ रूप से देखे जाने पर वे अलग अलग रास्ते से अलग अलग प्रभाव प्रस्तुत करने के लिये भी अपनी औकात को रखते है। पृथ्वी सूर्य के चारो तरफ़ घूमती है,अगर समान गति और समान परिक्रमा मे होती तो सभी लोग समान होते सभी वस्तुयें भी समान होती लेकिन पृथ्वी की परिक्रमा के मार्ग मे फ़ेर बदल है,वह कभी तो सूर्य के निकट होती है तो कभी सूर्य से दूर होती है,इसके अलावा भी पृथ्वी अपनी ही धुरी पर भी घूम रही है इस घूमने की क्रिया मे भी अलग अलग बदलाव होते जितने बदलाव होते है उतनी ही गतिया बदल जाती है सोच बदल जाती है,इसके अलावा भी जब मन की स्थिति किसी भी पल एक जैसी नही होती है तो लोगो की सोच भी एक जैसी नही हो सकती है,जब सोच एक जैसी नही होगी तो बात भी एक जैसी नही होगी एक अमीर बनता है और एक गरीब बनता है यह तो कालचक्र का क्रम है एक स्वस्थ है एक अस्वस्थ है यह भी काल चक्र का नियम है,एक ठगता है एक ठगा जाता है,यह भी कालचक्र का नियम है,एक मारता है एक मरता है यह भी कालचक्र का प्रभाव है। जब सभी कुछ कालचक्र के प्रभाव मे है तो मनुष्य अपनी बुद्धि को आगे पीछे क्यों रेडियो स्टेशन की तरह से ट्यून करने मे लगा रहता है,यह भी कालचक्र के प्रभाव के कारण होता है।
अति सुन्दर और सही व अच्छी जानकारी है।
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