विवाह एक पवित्र सामाजिक बन्धन है जिसके द्वारा अपने संसार की उत्पत्ति की जाती है,चार प्रकार के पुरुषार्थों में काम नाम का पुरुषार्थ विवाह बन्धन के बाद ही शुरु होता है। मुख्य रूप से विवाह के चार प्रकार माने गये है,पहला विवाह वैदिक विवाह होता है जो समाज अपने अपने अनुसार पूर्वजों के संस्कारों के अनुसार करता है,दूसरा गंधर्व विवाह होता है जिसके अन्दर वर या वधू अपनी पसंद से जीवन साथी को चुन कर अपने विवाह संस्कार को पूरा करते है,तीसरा त्रिक विवाह होता है जो शरीर की काम सम्बन्धी क्रियाओं की सन्तुष्टि के लिये किया जाता है,लेकिन सामाजिक रूप से यह विवाह मान्य नही है,चौथा प्रकार धरणी विवाह कहा गया है जो किसी प्रकार के बल को प्राप्त करने के लिये किया जाता है वह बल चाहे शरीर के बल को प्राप्त करने के लिये या धन अथवा अपनी इज्जत आदि को कायम रखने के लिये किया जाता है इस विवाह को अक्सर पुराने जमाने मे राजे रजवाडे किया करते थे। इस आर्थिक युग मे वैदिक विवाह की खानापूरी ही अक्सर देखी जाती है,वर्तमान मे विवाह का रूप गन्धर्व विवाह के रूप मे अधिक प्रचलन मे है जो वर और वधू की आपसी सहमति से किया जाता है और यह विवाह अक्सर जयमाला आदि की रस्म के द्वारा पहले पूर्ण कर लिया जाता है उसके बाद केवल नाम मात्र के लिये विवाह संस्कार को पूर्ण करने का उपाय रचा जाता है। तीसरे प्रकार का विवाह आजकल जब वर और वधू को अपने अपने अनुसार जीवन साथी नही मिल पाते है या घर तथा परिवार की असमान्य स्थिति को लडका लडकी नही समझ पाते है तो उनके लिये उम्र का निकलते जाना और जीवन साथी का नही मिलना तथा रोजाना की जिन्दगी की भागम भाग से कुछ समय के लिये अपने शरीर की सन्तुष्टि के लिये कुछ समय का शारीरिक मिलन करने के बाद एक दूसरे की व्यक्तिगत जिन्दगी मे दखल नही देने की क्रिया के कारण बहुत अधिक प्रचलन मे हो गया है।अच्छे या बुरे सम्बन्धो के लिये गुरु अपनी मर्यादा को निभाने के लिये माना जाता है और गुरु के द्वारा लगनेश चन्द्र लगनेश सूर्य लगनेश नवान्स लगनेश सप्तमेश चन्द्र लगन से सप्तमेश सूर्य लगन से सप्तमेश नवान्स की लगन से सप्तमेश के मिलने पर शादी का समय माना जाता है इसके बाद भी जातक की पैदा होने की घडी लगन को भी उचित रूप से देखा जाता है,कारकांश की लगन से भी सप्तम का मिलन शादी के लिये देखना जरूरी होता है। जो बात लगन नही बता पाती है वह कारकांश बता देता है कारण लगन को देखने के समय हो सकता है कि जन्म समय मे कोई त्रुटि रह सकती है लेकिन कारकांस के सामने आने पर अपने आप पता लग जाता है कि जन्म समय कितना आगे और कितना पीछे है। इसके अलावा भी गुरु और राहु शुक्र और राहु बुध और राहु केतु और मंगल शुक्र और मंगल शुक्र और गुरु का आपसी मिलन तथा जन्म का चन्द्रमा और राहु का मिलन जन्म का बुध और शुक्र का मिलन आदि भी विवाह के सुख से पूर्ण करने वाले माने जाते है। इसके अलावा जो ग्रहों के कारक अपने अपने अनुसार विवाह के लिये अपनी युति को पैदा करते है वे इस प्रकार से है:-
- कुंडली मे सिंह धनु और मेष राशि का गुरु किसी भी पाप ग्रह से सम्बन्ध नही रख रहा है और कोई पाप ग्रह गुरु को प्रताणित नही कर रहा है तो शादी का असर हमेशा सही भी रहता है और जो भी सम्बन्ध किया जायेगा वह हमेशा ही कायम रहेगा,कभी कभी की परेशानी तो आसकती है लेकिन विवाह का रूप खत्म नही हो सकता है,यह गुरु जब भी लगनेश से सप्तमेश से अपनी युति करेगा वह समय शादी विवाह का समय माना जायेगा.लेकिन गुरु का समय भी देखना होग अन्यथा गुरु तो हर बारह साल मे जाकर सप्तमेश से अपनी युति को बनायेगा तो इसका मतलब यह नही होगा कि हर बारह साल मे विवाह होता रहेगा। गुरु अगर लगन मे है तो सोलहवी साल मे पंचम मे है तो उन्नीसवी साल मे सप्तम मे है तो पच्चीसवी साल में ग्यारहवे भाव मे है तो पैंतालीसवी साल में विवाह का योग बनेगा.
- शुक्र के अनुसार भी शादी का योग देखा जाता है अगर शुक्र लगन मे है तो सोलहवी साल मे सप्तम मे है तो उन्नीसवी साल में पच्चीसवी साल मे इकत्तीसवी साल मे और बयालीसवी साल मे शादी का योग बनेगा.शुक्र अगर दूसरे भाव मे है तो दो बार शादी का योग बन सकता है तीसरे भाव मे है तो छोटे भाई बहिन की शादी के बाद शादी का योग बनेगा चौथे भाव मे है अट्ठाइसवे वर्ष मे शादी का योग बनता है शुक्र अगर छठे भाव मे है तो शादी का योग भी बनेगा और शादी के बाद जीवन साथी का सुख भी नही मिलेगा.
- शुक्र अगर राहु के साथ है और केतु का मिलान गुरु के साथ है तो भी शादी का योग बनता रहेगा लेकिन शारीरिक सुख नही मिल पायेगा कारण शरीर के अन्दर उत्तेजना तो होगी लेकिन जीवन साथी अपनी उत्तेजना को प्रकट नही कर पायेगा।
- राहु अगर वृश्चिक का होगा और किसी भी प्रकार से लगन सप्तम मे होगा तथा केतु का साथ अगर शनि से है तो वर वधू समाज परिवार की आंख बचाकर भाग जायेगे.
- राहु वृश्चिक का है और केतु मंगल के साथ है तो विवाह के बाद जीवन मे अनहोनी घटनाये होने लगेंगी यहां तक कि जीवन साथी एक दूसरे के जान के दुश्मन बन जायेंगे.
- राहु का गोचर जब भी लगनेश के साथ होगा उस समय शरीर मे एक विचित्र सा तूफ़ान उठने लगेगा और हर समय किसी स्त्री के प्रति सोचना तथा स्त्री है तो पुरुष के लिये सोचना रहेगा,लेकिन जब भी कोई स्त्री या पुरुष सामने होगा तो तूफ़ान अक्समात समाप्त हो जायेगा।
- अष्टम चौथा बारहवा राहु जब भी लगनेश या सप्तमेश से मिलेगा उस समय अद्रश्य रूप से विचरण करने वाली अतृप्त आत्मायें शरीर पर कब्जा कर लेती है और वे अपने अनुसार अपने अपने अनुसार भोग की कामना से जातक या जातिका को चलाने लगती है,अपने भोग की पूर्ति होने के बाद वे आत्माये साथ छोड जाती है उसके बाद जो भी दुर्गति या सदगति जातक या जातिका की होती है उससे उन्हे कोई लेना देना नही होता है। यह आत्माये उन लोगों को अक्सर तलाशती है जो तामसी भोजन को लेते है अथवा अपनी संगति को खराब करने के बाद लोगो को प्रताणित करने की कोशिश मे रहते है.
- शुक्र बुध का योग हमेशा दोहरे सम्बन्ध बनाने के लिये अपनी युति को प्रदान करता है.
- केतु के साथ शुक्र के होने से जीवन साथी से केवल न्याय या सामाजिक प्रताणना से सम्बन्ध बनता है.
- चन्द्रमा बुध और शुक्र के साथ रहने से जीवन साथी की सोच हमेशा घर के सदस्यों को आक्षेप देने वाली होती है.
- गुरु शुक्र का साथ फ़लदायी नही हो पाता है देखने मे धार्मिक लगने वाला व्यक्ति पता नही कब अपनी कामुकता से रिस्ते को बरबाद कर दे कोई पता नही होता है.
- सूर्य शुक्र का योगात्मक प्रभाव विवाह और जीवन साथी के प्रति समाज परिवार और घर मे हमेशा कोई न कोई राजनीति चला करती है.
- मीन का गुरु कभी रिस्ते को सम्भाल कर नही रख पाता है,अगर उसके साथ मंगल भी मिल जाये तो वह दिमाग मे बल पूर्वक रिस्ता बनाने की कोशिश मे रहता है।
- गोचर से जब भी तीसरा राहु गोचर मे आता है तभी जातक के अन्दर एक सम्बन्ध बनानेकी सोच चलने लगती है और वह सोच अक्सर वैवाहिक जीवन को बरबाद करने के लिये मानी जा सकती है.
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