मुम्बई से एक देवी का प्रश्न है की उन्होंने मेरे ब्लॉग में आयुष्य योग को पढ़ा है और उन्हें अपने बारे में जानना है की वे भी कही अल्पायु योग में तो नहीं आती है. प्रस्तुत कुंडली मीन लगन की है और लगन में बुध शुक्र और मंगल विद्यमान है.दूसरे स्थान में राहू पंचम में चन्द्रमा अष्टम में केतु ग्यारहवे भाव में गुरु और बारहवे भाव में सूर्य विद्यमान है.ज्योतिष के अनुसार चौथा आठवा और बारहवा स्थान मोक्ष का कारक है नवा लगन और पंचम जीवन दाता के कारक माने जाते है.इन भावो के अनुसार मोक्ष प्रदान करने वाले चौथे का ग्यारहवा अष्टम का तीसरा और बारहवे का सातवा भाव अपनी स्थिति के अनुसार कारणों को प्रदान करता है.मेरी भदावरी ज्योतिष के अनुसार जो गणना की जाती है वह काल पुरुष की कुंडली के अनुसार ग्रहों की स्थिति को देख कर की जाती है,कारण आज के जमाने में सूक्ष्म रूप से किसी के पास जन्म समय की उपलब्धि नहीं हो पाती है उसके लिए भी गृह गणना ही जिम्मेदार मानी जाती है.कुंडली के अनुसार लगन का मारक शुक्र है पिता का मारक चन्द्रमा है माता का मारक शनि है.माता की माता का मारक मंगल है और माता के पिता का मारक भी शुक्र है.पिता के पिता का मारक मंगल है मौसी मामा का मारक गुरु है इस प्रकार से कुंडली के अनुसार पूरे परिवार की मृत्यु का रूप समझना जरूरी है.
कुंडली में मंगल बुध और शुक्र की उपस्थिति है.मीन लगन के अनुसार शुक्र को मारक कहा जा सकता है,मृत्यु का कारण दूसरे भाव में विराजमान राहू और मंगल को भी माना जा सकता है,उम्र की पच्चीस साल तक मारक शनि होता है जो जोखिम और काम के दौरान आने जाने के साधनों के द्वारा अथवा किसी प्रकार की सांस वाली बीमारी से मृत्यु को देने वाला होता है,उम्र की पचासवी साल में मारक मंगल बनाता है जो किसी दवाई के रियेक्सन या बिजली आदि के द्वारा दुर्घटना देता है,पिच्चहत्तर साल की उम्र में मारक चन्द्रमा बनाता है इस प्रकार से सौ साल की उम्र का ब्यौरा भी कुंडली के द्वारा मिलता है.
इस कुंडली में लगन में बुध मंगल और शुक्र विराजमान है काल पुरुष की कुंडली के अनुसार यह मंगल की मेष राशि का स्थान है और मंगल इस राशि में विद्यमान है.लगन का मंगल अल्पमृत्यु के कारक राहू को संभालने का काम उसी प्रकार से करता है जैसे एक अंकुश हाथी को संभालने का काम करता है.राहू का स्थान दूसरे भाव में कालपुरुष की कुंडली के अनुसार शुक्र की वृष राशि में होने से इस राशि के मालिक राशि से मंगल और कालपुरुष से शुक्र का मंगल के साथ होने से राहू से बारहवे भाव में होना भी मिलता है.महर्षि पाराशर के नियमो के अनुसार हर भाव का बारहवा भाव उसका विनाशक होता है,हर भाव के बारहवे भाव के ग्रह भी उस भाव के ग्रहों और भाव की राशि के विनाशक होते है.इस प्रकार से राहू का असर मंगल शुक्र और बुध के द्वारा समाप्त कर दिया है और यह अल्पायु भंग योग की सीमा में आ गया है.
दूसरा नियम यह होता है की राहू समय चक्र से विनाशक होता है और केतु पालक होता है,केतु के अष्टम भाव में आजाने से माता और माता परिवार के लिए तो दिक्कत मानी जा सकती है,लेकिन पिता और पिता परिवार के लिए दिक्कत केवल उम्र की पच्चीसवी साल तक एक भाई के लिए परेशानी का समय माना जा सकाता है इसके अन्दर दो भाइयों में या तो एक भाई की औकात कही विदेश में जाकर परिवार और मर्यादा से बाहर होती है या उसके संतान नहीं चलती या फिर उम्र के पहले भाग में वह किसी प्रकार से दुर्घटना का शिकार हो जाता है,लेकिन जातक के लिए यह राहू केतु किसी प्रकार से भी मारक कारण नहीं पैदा करते है.यह भी एक अल्पायु भंग योग की सीमा में आजाता है.
कुंडली में मंगल बुध और शुक्र की उपस्थिति है.मीन लगन के अनुसार शुक्र को मारक कहा जा सकता है,मृत्यु का कारण दूसरे भाव में विराजमान राहू और मंगल को भी माना जा सकता है,उम्र की पच्चीस साल तक मारक शनि होता है जो जोखिम और काम के दौरान आने जाने के साधनों के द्वारा अथवा किसी प्रकार की सांस वाली बीमारी से मृत्यु को देने वाला होता है,उम्र की पचासवी साल में मारक मंगल बनाता है जो किसी दवाई के रियेक्सन या बिजली आदि के द्वारा दुर्घटना देता है,पिच्चहत्तर साल की उम्र में मारक चन्द्रमा बनाता है इस प्रकार से सौ साल की उम्र का ब्यौरा भी कुंडली के द्वारा मिलता है.
इस कुंडली में लगन में बुध मंगल और शुक्र विराजमान है काल पुरुष की कुंडली के अनुसार यह मंगल की मेष राशि का स्थान है और मंगल इस राशि में विद्यमान है.लगन का मंगल अल्पमृत्यु के कारक राहू को संभालने का काम उसी प्रकार से करता है जैसे एक अंकुश हाथी को संभालने का काम करता है.राहू का स्थान दूसरे भाव में कालपुरुष की कुंडली के अनुसार शुक्र की वृष राशि में होने से इस राशि के मालिक राशि से मंगल और कालपुरुष से शुक्र का मंगल के साथ होने से राहू से बारहवे भाव में होना भी मिलता है.महर्षि पाराशर के नियमो के अनुसार हर भाव का बारहवा भाव उसका विनाशक होता है,हर भाव के बारहवे भाव के ग्रह भी उस भाव के ग्रहों और भाव की राशि के विनाशक होते है.इस प्रकार से राहू का असर मंगल शुक्र और बुध के द्वारा समाप्त कर दिया है और यह अल्पायु भंग योग की सीमा में आ गया है.
दूसरा नियम यह होता है की राहू समय चक्र से विनाशक होता है और केतु पालक होता है,केतु के अष्टम भाव में आजाने से माता और माता परिवार के लिए तो दिक्कत मानी जा सकती है,लेकिन पिता और पिता परिवार के लिए दिक्कत केवल उम्र की पच्चीसवी साल तक एक भाई के लिए परेशानी का समय माना जा सकाता है इसके अन्दर दो भाइयों में या तो एक भाई की औकात कही विदेश में जाकर परिवार और मर्यादा से बाहर होती है या उसके संतान नहीं चलती या फिर उम्र के पहले भाग में वह किसी प्रकार से दुर्घटना का शिकार हो जाता है,लेकिन जातक के लिए यह राहू केतु किसी प्रकार से भी मारक कारण नहीं पैदा करते है.यह भी एक अल्पायु भंग योग की सीमा में आजाता है.
abhishek yadav
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