मीन राशि की कुंडली है और गुरु वक्री होकर ग्यारहवे भाव मे मकर राशि का होकर बैठा है। मकर राशि के अन्दर अगर गुरु वक्री हो जाता है तो वह अपनी नीचता को दूर करने के बाद उच्चता मे आ जाता है। लेकिन जो अन्य ग्रह गुरु पर असर देने वाले होते है उनसे गुरु के स्वभाव मे परिवर्तन होना माना जाता है। चौथे भाव मे शनि विराजमान है और वह गुरु को अष्टम नजर से देख रहा है। माता के भाव से अष्टम मे गुरु होने से जातक को परदेशी या परदेश वास के लिये अपनी युति को देता है,साथ ही जातक के अन्दर अपने स्वभाव को वक्री करने के कारण जो भी कार्य समाज धर्म आदि होता है उससे अपने को केवल कर्म की मान्यता को मानने वाला भी होता है,चन्द्र लगनेश के द्वारा शनि केतु को छठे प्रभाव से देखने के कारण जातक की माता को अस्वस्थ माना जाता है। चौथा शनि अक्सर केतु के साथ होने से कंटक ढैया के नाम से भी जाना जाता है यह कंटक ढैया उन्ही कारको को प्रभावित करती है जो कारक ग्रह या भाव के रूप मे शनि की नजर में होते है। इस कुंडली मे शनि पहले तो अपने बैठने वाले स्थान को जडता दे रहा है,शनि एक पत्थर की भांति केतु की शक्ल मे लम्बा बनाकर शनि यानी ठंडी और निवास के स्थान मे केवल कमन्यूकेशन के कारणो से पूर्ण होने के बाद व्यक्ति को लम्बा लिटाने के लिये माना जाता है। शनि के साथ केतु होने से जिस कारक मे वह अपना असर देता है उसी कारक को नकारात्मक कर देता है,जैसे इस कुंडली मे शनि चौथे भाव मे है और वह चौथे भाव की कारक वस्तुओ जीवो को अपने अनुसार फ़्रीज कर रहा है,उन्हे सहारा देने के लिये शनि अपने पराक्रम को चौथे भाव से अपने तीसरे स्थान यानी छठे भाव को देख रहा है उस भाव मे शुक्र के स्थापित होने के कारण और शुक्र का राज्य की राशि मे स्थापित होने के कारण तथा सिंह राशि को सन्तान की कारक होने के कारण पुत्री सन्तान को या पुत्र की पत्नी को अपनी सेवा के लिये अपने को आगे पीछे खिसकाने को या अपने लिये कोई सहायता लेने के लिये जरूरत मे मानता है। यह स्थान शुक्र के छठे भाव मे होने के कारण नौकरानी के लिये भी माना जाता है,और जातक की माता के लिये नौकरानी की भी जरूरत पडती है इसके साथ ही यह स्थान बीमारी का होने के कारण और बीमारी के वक्त तीमारदारी करने के लिये भी अपनी गति को प्रदान करता के प्रति माना जाता है। शनि की निगाह छठे भाव के बाद अष्टम भाव मे भी है कारण एक पांच नौ किसी भी भाव के त्रिकोण की राशियों मे गिने जाते है और जो भी ग्रह इन भावो मे होते है सम्बन्धित भाव को उसी प्रकार से देखते है जैसे कि लगन पंचम और नवम को देखा जाता है। माता के भाव से पंचम में अष्टम भाव पंचम मे है जातक की माता को जीवन मे इस शनि और केतु के कारण अपमान जोखिम और परिवार को सम्भालने के काम तथा परिवार को किसी भी प्रकार की जोखिम से दूर रखने के कामो के लिये जाना जाता है,जातक के पिता की राशि मे राहु के होने से जातक के पिता के लिये केवल इतना ही माना जा सकता है कि वह या तो शिक्षा के क्षेत्र मे अपने को जोड कर रखता है या किसी प्रकार के मनोरंजन वाले क्षेत्र मे अपने को आगे बढाने और उसी के अन्दर अपने कार्यों को करने के लिये माना जाता है,अथवा वह सरकारी संस्थाओ मे अपने कार्यों को करना जानता है। इसके अलावा सूर्य के आगे शुक्र के होने से माता के अलावा भी किसी स्त्री जातक के साथ सम्बन्ध रहने और माता के प्रति बेरुखी अपनाने के लिये भी माना जाता है,माता के द्वारा किसी शिक्षा संस्थान मे कार्य करना भी माना जा सकता है।
शनि केतु का चौथे भाव मे होना जातक की माता के लिये अच्छा नही माना जा सकता है,कारण शनि का स्वभाव नीरस होता है और अगर मंगल लगन मे चन्द्रमा के साथ होता है तो जातक की सोच मे अधिक तामसी कारण होने अर्थात जरा सी बात मे गुस्सा होने की बात को भी माना जा सकता है,इस कारण से भी जातक की माता को मानसिक रूप से कष्ट मिलने की बात मिलती है,शनि केतु के एक साथ होने से और गुरु के वक्री होने के कारण अक्सर जातक को स्त्री सन्तान के रूप मे भी माना जाता है और जातक के अगर कोई भाई होता भी है तो वह अपने परिवार से दूर जाकर अपने घर के बारे मे केवल सोचने के अलावा और कोई सहायता नही कर पाता है। राहु के गोचर के कारण जब भी जातक का राहु का राहु बारहवे भाव से गोचर करने के बाद जैसे जैसे जातक के नवे भाव की तरफ़ बढता जाता है वैसे वैसे जातक के चौथे भाव को समाप्त करने की अपनी गति को प्रदान करने की तरफ़ चलता जाता है। जैसे चौथे भाव का कारक माता को माना जाता है तो राहु जब जातक के बारहवे भाव मे आयेगा तो वह अपनी नवी द्रिष्टि से जातक की माता को पारिवारिक सोच के अन्दर ले जायेगा इस प्रकार से जातक की माता को अपने परिवार और सन्तान के भाग्य के लिये सोच पैदा हो जाती है साथ ही जातक की माता को यह चिन्ता सताने लगती है कि उसके परिवार और समाज के साथ क्या कारण बनेंगे जिसके कारण से वह अपनी औकात को कैसे दूसरे के सामने प्रस्तुत करने की कोशिश करेगा,इसके बाद राहु का गोचर जब जातक के ग्यारहवे भाव मे होता है तो जातक की माता के अष्टम भाव मे यह अपनी युति को प्रदान करता है,जातक की माता के सामने कार्यों मे या आने जाने के अन्दर अथवा किसी प्रकार से घर के अन्दर की कोई दुर्घटना या कोई इन्फ़ेक्सन वाली बीमारी के द्वारा अथवा घर के सजाये संवारे जाने के दौरान जातक की माता को शारीरिक कष्टो का सामना करना पडता है,जब राहु का गोचर जातक के दसवे भाव मे होता है तो पिता की कारक वस्तुओ या पिता के स्वभाव को अक्समात ही छठे शुक्र की युति से दिक्कत देने वाला बन जाता है अथवा जातक का कार्यों की तरफ़ या किसी प्रकार से अन्य जाति की स्त्री के साथ या किसी कार्य करने वाली महिला के साथ सम्बन्ध बन जाता है इस सम्बन्ध के कारण जातक अपनी माता की देखभाल केवल बहुत बडी दिक्कत मे ही कर पाता है और जातक की माता के शरीर मे जो जडता से अपने स्थान पर पडा होता है के अन्दर कोई न कोई इन्फ़ेक्सन जो पीठ वाले होते है अथवा कोई कारण जो बिछाने वाले कपडो से सम्बन्धित होते है खराब होने लगते है और जातक के कार्य के प्रति कोई भी समय वाले काम नही माने जाते है,इसके बाद जैसे ही राहु जातक के नवे भाव मे प्रवेश करता है वह कारण अगर दूसरी या तीसरी बार राहु के नवे भाव मे आने के कारण जातक की माता के लिये यह राहु अपनी अष्टम गति चौथे भाव मे देने के लिये शोक या मृत्यु सम्बन्धी कारणो को पैदा करने वाला माना जाता है। जैसे वर्तमान मे राहु इस कुंडली मे नवे भाव मे है और माता के घर को अष्टम द्रिष्टि से देख रहा है तथा केतु का तीसरे भाव मे होना और शनि का केतु के साथ वर्तमान मे सहायक होना जातक की माता के लिये मोक्ष को देने वाला भी माना जा सकता है शनि की नजर इस राहु पर आने वाले नवम्बर के महिने तीसरे सप्ताह तक है इसलिये जातक की माता के लिये सांस की बीमारिया होने या जातक की माता को अधिक सर्दी आदि के कारण यह राहु अपनी पूरी गति को प्रदान करने के बाद जातक की माता के लिये मृत्यु जैसे कारण पैदा करने के लिये माना जा सकता है। आने वाले नौ नवम्बर की रात 12:30 से 03:30 का समय जातक की माता के लिये बहुत ही खतरनाक माना जा सकता है।
जातक की माता की सुरक्षा के लिये एक उपाय बहुत ही कारगर है कि बेसन की रोटी पर सरसों का तेल चुपड कर थोडा सा गुड उस रोटी पर रखकर जातक की माता के ऊपर सात वार उसारा करने के बाद उसे किसी काले जानवर को खिलाने से इस प्रकार का खराब असर दूर किया जा सकता है। गुरु जो बेसन का कारक है और सरसों का तेल राहु की श्रेणी मे भी आता है तथा गुड मंगल के रूप मे जो अष्टम का रूप माना जाता है,को लेकर काले जानवर यानी राहु की श्रेणी के जीव को खिलाने से बुरा असर लालकिताब के अनुसार समाप्त किया माना जाता है। इसके अलावा राहु का नवे भाव मे होने से अगर तर्पण करवा दिया जाये तो भी जातक की माता को फ़ायदा मिलने की बात मानी जा सकती है।
शनि केतु का चौथे भाव मे होना जातक की माता के लिये अच्छा नही माना जा सकता है,कारण शनि का स्वभाव नीरस होता है और अगर मंगल लगन मे चन्द्रमा के साथ होता है तो जातक की सोच मे अधिक तामसी कारण होने अर्थात जरा सी बात मे गुस्सा होने की बात को भी माना जा सकता है,इस कारण से भी जातक की माता को मानसिक रूप से कष्ट मिलने की बात मिलती है,शनि केतु के एक साथ होने से और गुरु के वक्री होने के कारण अक्सर जातक को स्त्री सन्तान के रूप मे भी माना जाता है और जातक के अगर कोई भाई होता भी है तो वह अपने परिवार से दूर जाकर अपने घर के बारे मे केवल सोचने के अलावा और कोई सहायता नही कर पाता है। राहु के गोचर के कारण जब भी जातक का राहु का राहु बारहवे भाव से गोचर करने के बाद जैसे जैसे जातक के नवे भाव की तरफ़ बढता जाता है वैसे वैसे जातक के चौथे भाव को समाप्त करने की अपनी गति को प्रदान करने की तरफ़ चलता जाता है। जैसे चौथे भाव का कारक माता को माना जाता है तो राहु जब जातक के बारहवे भाव मे आयेगा तो वह अपनी नवी द्रिष्टि से जातक की माता को पारिवारिक सोच के अन्दर ले जायेगा इस प्रकार से जातक की माता को अपने परिवार और सन्तान के भाग्य के लिये सोच पैदा हो जाती है साथ ही जातक की माता को यह चिन्ता सताने लगती है कि उसके परिवार और समाज के साथ क्या कारण बनेंगे जिसके कारण से वह अपनी औकात को कैसे दूसरे के सामने प्रस्तुत करने की कोशिश करेगा,इसके बाद राहु का गोचर जब जातक के ग्यारहवे भाव मे होता है तो जातक की माता के अष्टम भाव मे यह अपनी युति को प्रदान करता है,जातक की माता के सामने कार्यों मे या आने जाने के अन्दर अथवा किसी प्रकार से घर के अन्दर की कोई दुर्घटना या कोई इन्फ़ेक्सन वाली बीमारी के द्वारा अथवा घर के सजाये संवारे जाने के दौरान जातक की माता को शारीरिक कष्टो का सामना करना पडता है,जब राहु का गोचर जातक के दसवे भाव मे होता है तो पिता की कारक वस्तुओ या पिता के स्वभाव को अक्समात ही छठे शुक्र की युति से दिक्कत देने वाला बन जाता है अथवा जातक का कार्यों की तरफ़ या किसी प्रकार से अन्य जाति की स्त्री के साथ या किसी कार्य करने वाली महिला के साथ सम्बन्ध बन जाता है इस सम्बन्ध के कारण जातक अपनी माता की देखभाल केवल बहुत बडी दिक्कत मे ही कर पाता है और जातक की माता के शरीर मे जो जडता से अपने स्थान पर पडा होता है के अन्दर कोई न कोई इन्फ़ेक्सन जो पीठ वाले होते है अथवा कोई कारण जो बिछाने वाले कपडो से सम्बन्धित होते है खराब होने लगते है और जातक के कार्य के प्रति कोई भी समय वाले काम नही माने जाते है,इसके बाद जैसे ही राहु जातक के नवे भाव मे प्रवेश करता है वह कारण अगर दूसरी या तीसरी बार राहु के नवे भाव मे आने के कारण जातक की माता के लिये यह राहु अपनी अष्टम गति चौथे भाव मे देने के लिये शोक या मृत्यु सम्बन्धी कारणो को पैदा करने वाला माना जाता है। जैसे वर्तमान मे राहु इस कुंडली मे नवे भाव मे है और माता के घर को अष्टम द्रिष्टि से देख रहा है तथा केतु का तीसरे भाव मे होना और शनि का केतु के साथ वर्तमान मे सहायक होना जातक की माता के लिये मोक्ष को देने वाला भी माना जा सकता है शनि की नजर इस राहु पर आने वाले नवम्बर के महिने तीसरे सप्ताह तक है इसलिये जातक की माता के लिये सांस की बीमारिया होने या जातक की माता को अधिक सर्दी आदि के कारण यह राहु अपनी पूरी गति को प्रदान करने के बाद जातक की माता के लिये मृत्यु जैसे कारण पैदा करने के लिये माना जा सकता है। आने वाले नौ नवम्बर की रात 12:30 से 03:30 का समय जातक की माता के लिये बहुत ही खतरनाक माना जा सकता है।
जातक की माता की सुरक्षा के लिये एक उपाय बहुत ही कारगर है कि बेसन की रोटी पर सरसों का तेल चुपड कर थोडा सा गुड उस रोटी पर रखकर जातक की माता के ऊपर सात वार उसारा करने के बाद उसे किसी काले जानवर को खिलाने से इस प्रकार का खराब असर दूर किया जा सकता है। गुरु जो बेसन का कारक है और सरसों का तेल राहु की श्रेणी मे भी आता है तथा गुड मंगल के रूप मे जो अष्टम का रूप माना जाता है,को लेकर काले जानवर यानी राहु की श्रेणी के जीव को खिलाने से बुरा असर लालकिताब के अनुसार समाप्त किया माना जाता है। इसके अलावा राहु का नवे भाव मे होने से अगर तर्पण करवा दिया जाये तो भी जातक की माता को फ़ायदा मिलने की बात मानी जा सकती है।
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