मंडावा राजस्थान से एक सज्जन ने अपने प्रश्न में एक साथ इतनी बाते जाननी चाहिए है,उनकी कुंडली धनु लगन की है और लगनेश गुरु है,गुरु का स्थान कुंडली में छठे भाव में वृष राशि में वक्री है.जातक के लिए भाग्य का कारक ग्रह सूर्य है जो तुला राशि में ग्यारहवे भाव में नीच का होकर बारहवे और पंचम भाव के स्वामी मंगल कार्य और जीवन साथी भाव के मालिक बुध तथा राहू के साथ विराजमान है.इनकी चन्द्र राशि मीन है इसका भी स्वामी गुरु है जो राशि से तीसरे भाव में वक्री होकर विराजमान है,चन्द्रमा से दूसरे भाव में केतु विराजमान है यानी लगन से पंचम भाव में केतु है.चन्द्र राशि से नवे भाव में बारहवे भाव का शुक्र वैसे तो वृश्चिक राशि का है लेकिन बारहवे भाव में होने के कारण अपनी उच्चता को भी प्रदान कर रहा है,जातक के अष्टम भाव में शनि जो धन भाव और पराक्रम भाव का मालिक है विराजमान है,यह शनि जातक की राशि से से पंचम में और लगन से अष्टम में है.जातक के लिए सबसे पहले किस लगन का प्रयोग करना अधिक उत्तम होगा जिस लगन से हम जातक के लिए भाग्य रत्न की खोज करे,केवल लगन के सहारे अगर भाग्य रत्न को देखे है तो सूर्य नीच राशि में है,चन्द्रमा से भाग्य की खोज करते है तो मंगल चन्द्रमा से अष्टम में है,सूर्य लगन से खोज करते है तो भाग्येश बुध सूर्य के साथ होने से और मंगल तथा राहू के साथ होने से इसके अलावा अस्त होने से खुद ही कमजोर है,लगनेश गुरु से अगर नवे भाव यानी भाग्य भाव की खोज करते है तो शनि जो लगनेश से भी तीसरे भाव में है और लगन से अष्टम में है चन्द्रमा से भी पंचम में है,इस कारण को जब सही रूप से खोजते है तो जातक के जन्म के समय लगन का कारक धनु के मूल नक्षत्र में पैदा होने से केतु मालिक माना जाता है,तथा पहले पाए में पैदा होने के कारण स्वामी शुक्र को माना जा सकता है.केतु के आगे गुरु और पीछे चन्द्रमा की सहायता भी है इसलिए जातक के जीवन के कारको में केतु को लगन का ग्रह मानकर भाग्य के रत्न की समीक्षा की जा सकती है.जातक के लिए केतु लगन का प्रभावी होना उत्तम माना जा सकता है कुंडली के अनुसार भी केंद्र में केवल चन्द्रमा ही सहायक है और त्रिकोण में केतु का ही बल प्राप्त है इसके अलावा कोइ भी ग्रह केंद्र और त्रिकोण में फल दाई नहीं है.ग्यारहवे भाव को और दूसरे भाव को शनि अपनी दृष्टि से देख रहा है इसलिए जातक के लिए जहां भी लाभ के भाव होंगे वही पर कोइ न कोइ मानसिक बदलाव के कारण लाभ के कारण पीछे रह जायेंगे और तथा जो भी धन की प्राप्ति होगी वह भी शनि की सप्तम दृष्टि से आहात हो जायेगी.गुरु चूंकि त्रिक भाव में वक्री है और जातक के लिए कर्जा दुश्मनी बीमारी आदि के लिए सहायक है जातक को बेंकिंग और फायनेंस वाले कार्यों में कोइ दिक्कत नहीं है वह पलक झपकते ही इन कारको में अपनी उच्च और जल्दबाजी की शक्ति को प्रयोग करने के बाद सहायता को ले सकता है,इसलिए केतु के नवे भाव में धनु राशि के होने से जातक के लिए गुरु का रत्न पुखराज ही बेहतर है,लेकिन पुखराज को कुंडली के गुरु के अनुसार ही पहिना जा सकता है जैसे गुरु शुक्र की वृष राशि में है तो पुखराज का पीला होना जरूरी नहीं है वह सफ़ेद रंग की आभा लिए हो वह ठीक माना जा सकता है.इसी प्रकार से जातक के लिए केतु की सहायता और केतु की स्थिति से केतु ही जातक के लिए उत्तम ग्रह माना जा सकता है,केतु का विरोधी ग्रह राहू है जो मंगल की श्रेणी में है तथा मंगल के साथ है इसलिये वह जातक के साथ कोइ बुराई नहीं कर सकता है,जातक को उच्च विद्या आदि देने के बाद विदेश आदि के लिए अपनी गति को देने वाला है और जातक के द्वारा रिस्तो से अधिक औकात का सहारा लेकर काम करने की आदत को भी राहू दे रहा है,सभी ग्रह अपने अपने अनुसार सहायक है सूर्य केवल बलकारी है और केतु से पंचम होने के कारण अगर पिता या संतान में पुत्र संतान की बाधा हो तो सूर्य की वस्तुए दान की जा सकती है.
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