एक कहावत कही जाती है कि जब घर गेहूँ होय सदा दिवाली सामने,यानी जब घर के अन्दर खाने के लिये गेंहूँ हों तभी दीपावली का त्यौहार है.शुक्र का त्यौहार दीपावली है,वैश्य वर्ण अपने लिये खास रूप से इस त्यौहार का प्रयोग करना जानता है.क्षत्रिय के लिये तो दसहरा माना जाता है ब्राह्मण के लिये राखी का त्यौहार और शूद्र के लिये होली का त्यौहार शास्त्रो मे भी बताया गया है.लेकिन धर्म और मर्यादा से त्यौहार मनाने के लिये गुरु का सही होना जरूरी है.गुरु अगर वक्री है तो मर्यादा से और सामाजिकता से अलग जाकर त्यौहार मनाया जायेगा,गुरु अस्त है तो त्यौहार के बारे मे लोग अपनी अपनी धारणा से त्यौहार को मनाने की कोशिश करेंगे जैसे दीपावली पर रंग का खेलना,रक्षा बन्धन पर पटाखे फ़ोडना,इसी प्रकार से जब गुरु अपने नीच स्थानो मे होता है तो लोगो का हुजूम बजाय धर्म कर्म के मदिरा और तामसी कारणो मे जाता हुआ देखा जा सकता है.इसी प्रकार से गुरु जब कन्या राशि का होता है तो मजदूर वर्ग मे अधिक उल्लास देखा जाता है गुरु अगर वृश्चिक का है तो उस त्यौहार को मनाने से लोग दूर हो जाते है,इसी प्रकार से जब गुरु मीन राशि का होता है तो लोग बहुत बढ चढ कर त्यौहार को मनाने की कोशिश करते है.गुरु के अनुसार ही लोग बाजारो मे देखे जाते है,जैसे गुरु अगर वक्री होकर मेष राशि का है तो लोग विदेशी चीजो को अधिक खरीदने की कोशिश करेंगे,अगर गुरु मार्गी होता तो अपनी सभ्यता और परिवेश से अपनी खरीददारी करते नजर आते। इस गुरु वक्री के समय मे जो भी धर्म कर्म को मानने वाले लोग है वे किसी न किसी कारण से अपने को या तो कार्य मे लगाये रहते है या किसी प्रकार से बाहर रहने के बाद अपने परिजनो के साथ ही नही आ पाते है.लोग कहते है कि उनके पास समय ही नही है जो किसी प्रकार से त्यौहार पर घर आ सकते,अधिकतर किसी न किसी प्रकार की उल्टी रीति देखी जा सकती है.
nice and and innovative way to celebrate
ReplyDelete