Thursday, October 20, 2011

दुर्गा सप्तशती के मंत्र का प्रभाव और भूत वाधा का निवारण

जिला मुरैना के एक गांव से एक व्यक्ति अपनी लडकी को लेकर मेरे पास आये उनकी लडकी विक्षिप्त अवस्था मे थी किसी से बात करने पर वह बेकार की अनाप शनाप बाते करती और कभी जोर जोर से हंसने लगती और कभी अपने आप रोने लगती,न कपडो का ख्याल होता और न ही शरीर का कि कहां लग रही है और कहां नही,रात रात भर उसके घर वाले उसे सम्भालने के लिये जागते रहते,जब भी उसे कोई बहाना मिलता वह घर से बाहर निकलकर जंगल की तरफ़ भागने की ताक मे रहती,चार चार दिन खाना भी नही खाना जैसा पानी मिल जाये पी लेना एक तरह से नरक जैसी जिन्दगी हो गयी थी,मैने उसके पिता और भाई से जन्म तारीख आदि को पूंछा और कुंडली के अनुसार उस के लगनेश पर जन्म से अष्टम राहु की छाया थी। वे लोग बहुत से सयानो झाडफ़ूंक वालो के पास गये लेकिन उन्हे कोई फ़ायदा नही हुआ,वे केवल अपनी मेहनत की कमाई को झाडफ़ूंक वालो को देकर आ गये,किसी ने मेरा पता उन्हे बता दिया वे मेरे ही किसी जानकार को लेकर मेरे पास पहुंचे।
 मैने उस लडकी को अपने पूजा स्थान मे बैठाया उसे शांत रखने के लिये पहले दुर्गा सप्तशती के श्लोक -"सर्वाबाधा प्रसमनम.." से एक हजार बार जाप करते हुये जाप के पानी से छींटे दिये और उसके बाद इसी मंत्र की एक हजार आहुति लौंग घी तथा शक्कर से दीं,उस लडकी का स्वास्थ्य दूसरे दिन ही अचानक ठीक होने लगा,उसके घर वाले भी चकित थे,और मै भी देवी की कृपा से चकित था,वह लडकी अपने घर के बारे मे बाते कर रही थी और उसे यह भी पता था कि वह पहले बीमार हो गयी थी,जानने के बाद पता लगा कि उसके घर के पास मे ही कोई पुराना शमशान था,उस शमशान में शाम के समय वह शौच को गयी थी उसी रात से उसकी तबियत खराब हो गयी थी। मैने पूंछा कि जब वह दूसरे झाडफ़ूंक वालो के पास गयी तो उसे पता था कि वह कहां जा रही है,उसने बताया कि उसे कुछ भी पता नही है। इतना पता था कि कभी कभी वह अपने बच्चो को देखकर रोना शुरु कर देती थी उसे कोई जबरदस्ती जंगल में पकड कर ले जाना चाहता था उस समय वह चिल्लाना शुरु कर देती थी उसे पता नही होता था कि वह कहां जा रही है क्या उसके पैर में चुभ रहा है या कहां से उसके खून निकल रहा है और कहां दर्द हो रहा है.यही बात उसके घर वाले भी कह रहे थे,वह तीन चार दिन मेरे घर पर रही और अपने भाई तथा पति के साथ अपने गांव चली गयी।
माता दुर्गा की कृपा से वह ठीक होने के बाद उनकी आराधना भी करने लगी और वही श्लोक मैने उसे दिया कि जब भी उसे कोई दिक्कत हो तो वह उसे शाम सुबह को श्रद्धा से जाप करे और जब भी नवरात्रा आये तो वह दुर्गा सप्तशती का का पाठ नियम से करे,उसने इसी श्लोक को अपने जीवन मे उतार लिया है कभी कभी फ़ोन आता है तो कहती है चाचाजी आपने मेरी जिन्दगी को उबार दिया नही तो मैं पागल होकर या तो मर गयी होती या किसी स्थान पर पड कर सड रही होती,मैने भी कई बार महसूस किया है कि जब किसी प्रकार का कष्ट सामने आता है तो उस समय कोई न कोई बेकार की चिन्ता दिमाग मे समा जाती है और उस समय अगर साफ़ सुथरा होकर माता दुर्गा की आराधना शुरु कर दी जाये तो वह कष्ट या बेकार की चिन्ता अपने आप ही दूर हो जाती है।
इस लडकी के अलावा भी कई लोग मेरे पास आये जो केवल इसी श्लोक की महत्ता से अपने को ठीक करने के बाद अपने घर चले गये,ज्योतिष के लिये भी मैने इसी श्लोक का उच्चारण दिन रात लगकर पूरा किया था और एक करोड जाप करने के बाद मुझे लगने लगा था कि मैं माता की असीम कृपा से पूर्ण होता जा रहा हूँ,यह उन लोगो के लिये भी सीख है जो बेकार मे ही किसी झाडफ़ूंक या तंत्र मंत्र के चक्कर में पडकर अपने धन और समय को बरबाद करते है,पहले डाक्टर की सलाह लेनी जरूरी है और जब डाक्टर से कोई रोग ठीक नही हो और व्यक्ति का माथा घूम रहा हो वह किसी प्रकार की अनर्गल बाते कर रहा हो तो उसे सबसे पहले किसी अच्छे ज्योतिषी से जातक के ग्रह देखने चाहिये अगर किसी प्रकार से राहु का प्रकोप जातक के लगनेश लगन या चौथे आठवे या बारहवें भाव के मालिक के साथ या इन्ही भावो में अथवा चन्द्रमा से गोचर से या जन्म से है तो वे दशा अन्तर्दशा मे दिक्कत दे सकते है उस समय दुर्गा सप्तशती के इसी श्लोक का पहले एक हजार बार जाप कर लेना चाहिये उसके बाद एक हजार मंत्रो के जाप से अभिमंत्रित जल से रोगी पर छींटे देने चाहिये,तथा उसके बाद एक हजार आहुतियां लौंग घी और शक्कर को मिलाकर देनी चाहिये,यह कार्य स्वच्छ और हवादार कमरे के अन्दर ही करना चाहिये,जो लोग पहले से ही शराब कबाब भूत के भोजन के वशीभूत है वे लोग कृपया इस मंत्र का जाप या इसका प्रयोग कदापि नही करें.
(सादर माँ दुर्गामर्पणस्तु)


4 comments:

  1. मुझे इसके नियम बताए

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  2. Guru Ji saadar pranam mera naam shashank hai mai pichle kai saalo se bimario se pareshan hu kabhi cham rog to kabhi bahut elaaj karwachuka hu jab tak dawa chalti hi kuch aaram rahta haidawa band og jas-ka-tas mujhe bhidurga saptsati k koi argar matra ataye jisse ki sareer ko dawa aur ua se purntah swasth kar saku mera D.O.B-25/26November 1983 Subah ke 4.45

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  3. abhi harm rog to kahi kaff janya rog to kabhi kuch alag hi ho jaata hai

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