वृश्चिक लगन की कुंडली है सूर्य और चन्द्र दोनों ही लगन में विराजमान है
लगनेश मंगल दूसरे भाव में केतु बुध शुक्र के साथ विराजमान है.लगनेश मंगल से
कार्य भाव की राशि कन्या है और बुध इस राशि के मालिक है,बुध से कार्य के
बारे में पता करना पडेगा तथा कार्य से मिलने वाले फलो के लिए कार्य भाव
कन्या राशि से दूसरा भाव तुला राशि को माना जाएगा.तुला राशि के मालिक शुक्र
की स्थिति से मिलने वाले लाभ के बारे में जानना पडेगा.शुक्र भी जैसे लगनेश
और कार्येश बुध के साथ ही विराजमान है इसलिए मिलने वाले लाभ और कार्य के
लिए जातक के खुद के द्वारा किये गए प्रयास ही माने जायेंगे.वृश्चिक लगन का
कारक मंगल है और वृश्चिक लगन का नौकरी आदि का मालिक भी मंगल है,जब मंगल का
स्थान धन भाव की राशि में स्थापित हो जाए और कार्येश को लगनेश से गिना जाए
तो कार्य का रूप तथा कार्य में मिलने वाली बढ़ोत्तरी को सामने रखकर ही
फलादेश देना होगा,जैसे राहू शक्ति देने वाला होता है और केतु उपाधि देने के
लिए माना जाता है,कुंडली में राहू की स्थिति लगनेश से सप्तम में है,और
केतु लगनेश के साथ है,राहू के द्वारा शुक्र और बुध का मिला जुला असर जातक
को शक्ति के रूप में प्राप्त होना माना जाएगा,कारण कालपुरुष की कुंडली के
अनुसार ग्रह से सप्तम में तुला राशि का होना और उसका असर शुक्र के कारणों
से भी गिना जाएगा तथा मिथुन राशि से राहू का प्रभाव बुध के असर से भी मिला
हुआ माना जाएगा.मिथुन राशि का प्रभाव कहने से प्रदर्शित करने से मीडिया
लेखन व्यापारिक रूप से अपने को प्रदर्शित करने माना जाएगा.लेकिन जब राहू का
प्रभाव लगन लगनेश सूर्य लगन सूर्य लगनेश चन्द्र चन्द्र लगनेश पर होगा तो
जातक को एक शक्ति का आभास होगा जो जातक को आगे बढ़ने और कार्य करने तथा
किये जाने वाले कार्यों के फल प्राप्त करने के लिए भी माना जाएगा,जो कार्य
जातक के द्वारा राहू के द्वारा गोचर से असर देने के कारण पैदा हुए उनके
द्वारा राहू की शक्ति से कितना फल जातक को प्राप्त हुया है उसे समझने के
बाद ही जातक को आगे मिलने वाले फलो से जोड़ कर देखा जाएगा.
जैसे वर्तमान में राहू का गोचर लगन में हो रहा है वह सूर्य को भी ग्रहण लगाकर बैठा है और चन्द्रमा को भी ग्रहण दे रहा है,इस ग्रहण के द्वारा सूर्य उपाधि और चन्द्रमा मन दोनों को यह राहू ग्रहण देता है तो वृश्चिक राशि का सूर्य ताऊ जैसी उपाधि वाले पिता या पिता से सम्बन्धित व्यक्ति के लिए तथा चन्द्रमा से वृश्चिक राशि से समबन्ध राकहने से ताई या माता से सम्बंधित परिवार की महिला के साथ ग्रहण देने के लिए माना जाता है.सूर्य जातक के लिए पुत्र से और चन्द्र जातक के लिए उम्र के पच्चीस साल के बाद पुत्र और बड़ी पुत्री के लिए भी माना जाता है,इसके साथ ही बड़ी उम्र में सूर्य को आँख और चन्द्रमा को मन के लिए भी माना जाता है,राहू के द्वारा गोचर करने से आँख पर भी और मन पर भी असर पडेगा.लगनेश के साथ इस राहू ने पिछले समय में मई के महीने तक गोचर किया है और इस गोचर में जातक के अन्दर कानूनी राशि धनु में मंगल होने से तथा राहू का शुक्र के साथ और बुध के साथ गोचर करने से केतु को भी राहू के द्वारा गोचर से असर देने के कारण बड़ी उपलब्धी को प्राप्त करने की बड़ी कोशिश को माना जा सक़ता है,लेकिन पिछले समय में शनि के द्वारा लगनेश से कार्य भाव में गोचर करने से जो भी किया गया वह सोच समझ कर नहीं किया गया और किये गए कार्यों का श्रेय किसी दूसरे के आपस जाना भी माना जा सक़ता है और कार्यों के अन्दर नीरसता का असर कार्य फल में जाना भी माना जा सकता है.वर्तमान में केतु का सीधा गोचर लगन से सप्तम में होने के कारण और गोचर के शनि से अपनी युति बनाने के साथ ही जन्म के शनि जो तीसरे भाव में मकर राशि का विद्यमान है के द्वारा कार्य से अनिच्छा का होना भी माना जा सक़ता है और कार्य को त्यागने की भावना भी दिमाग में पैदा होती है.लेकिन मिथुन के राहू से शनि का षडाष्टक योग होने के कारण और जन्म के राहू के द्वारा इस शनि को अपने घेरे में लेने के कारण जो नीरसता कार्य भाव में पैदा हो रही थी उसे दूर करने के बाद फिर भी हिम्मत से कार्य का किया जाना माना जा सक़ता है.गुरु का गोचर से वैसे तो केतु के साथ सम्बन्ध चल रहा है लेकिन गुरु भी पंचम में होने और स्वग्रही होने से राहू को बल देने वाला और राहू के द्वारा राज्य भाव के गुरु को अपनी शक्ति देने के कारण जो भी दिमागी कार्य किया गया उसका परिणाम भी मिलने की धारणा से कोई रोक नहीं सकता है.
सरकारी क्षेत्र में या प्राइवेट क्षेत्र में बुध गुरु का योगात्मक प्रभाव अगर किसी प्रकार से लड़ाई झगड़ा कोर्ट केश से जुड़ जाता है तो सरकारी क्षेत्र में तो गुरु का प्रभाव केतु के साथ होने से न्याय में जातक को फल मिलता है और बुध का प्रभाव होने से जातका को दूसरे स्थान पर उपाधि के रूप में फलकारक केतु बन जाता है.इस कुंडली के अनुसार जातक को अपनी पोस्ट में आगे बढ़ने का समय तभी माना जाएगा जब गुरु का जन्म के केतु से गोचर से साथ होगा.इस प्रकार से जातक का उपाधि मिलने का समय आने वाले बाईस मार्च से माना जा सकता है.
केंद्र और त्रिकोण में राहू का प्रभाव सूर्य चन्द्र और गुरु को वर्तमान में मिल रहा है इसलिए जातक को लगातार बुरी खबरों और शरीर तथा संतान संबंधी राज्य संबंधी बेकार के असर मिलने का समय चल रहा है जातक को अपने राहू का तर्पण करवाना बेहतर उपाय माना जा सकता है और किसी प्रकार के तामसी या राजनीति कारण को उठापटक करने से भी जातक को मान हानि का असर मिल सकता है,जातक को अपने पिता पिरवार और अपनी आँखों का भी ख्याल रखना जरूरी है.
जैसे वर्तमान में राहू का गोचर लगन में हो रहा है वह सूर्य को भी ग्रहण लगाकर बैठा है और चन्द्रमा को भी ग्रहण दे रहा है,इस ग्रहण के द्वारा सूर्य उपाधि और चन्द्रमा मन दोनों को यह राहू ग्रहण देता है तो वृश्चिक राशि का सूर्य ताऊ जैसी उपाधि वाले पिता या पिता से सम्बन्धित व्यक्ति के लिए तथा चन्द्रमा से वृश्चिक राशि से समबन्ध राकहने से ताई या माता से सम्बंधित परिवार की महिला के साथ ग्रहण देने के लिए माना जाता है.सूर्य जातक के लिए पुत्र से और चन्द्र जातक के लिए उम्र के पच्चीस साल के बाद पुत्र और बड़ी पुत्री के लिए भी माना जाता है,इसके साथ ही बड़ी उम्र में सूर्य को आँख और चन्द्रमा को मन के लिए भी माना जाता है,राहू के द्वारा गोचर करने से आँख पर भी और मन पर भी असर पडेगा.लगनेश के साथ इस राहू ने पिछले समय में मई के महीने तक गोचर किया है और इस गोचर में जातक के अन्दर कानूनी राशि धनु में मंगल होने से तथा राहू का शुक्र के साथ और बुध के साथ गोचर करने से केतु को भी राहू के द्वारा गोचर से असर देने के कारण बड़ी उपलब्धी को प्राप्त करने की बड़ी कोशिश को माना जा सक़ता है,लेकिन पिछले समय में शनि के द्वारा लगनेश से कार्य भाव में गोचर करने से जो भी किया गया वह सोच समझ कर नहीं किया गया और किये गए कार्यों का श्रेय किसी दूसरे के आपस जाना भी माना जा सक़ता है और कार्यों के अन्दर नीरसता का असर कार्य फल में जाना भी माना जा सकता है.वर्तमान में केतु का सीधा गोचर लगन से सप्तम में होने के कारण और गोचर के शनि से अपनी युति बनाने के साथ ही जन्म के शनि जो तीसरे भाव में मकर राशि का विद्यमान है के द्वारा कार्य से अनिच्छा का होना भी माना जा सक़ता है और कार्य को त्यागने की भावना भी दिमाग में पैदा होती है.लेकिन मिथुन के राहू से शनि का षडाष्टक योग होने के कारण और जन्म के राहू के द्वारा इस शनि को अपने घेरे में लेने के कारण जो नीरसता कार्य भाव में पैदा हो रही थी उसे दूर करने के बाद फिर भी हिम्मत से कार्य का किया जाना माना जा सक़ता है.गुरु का गोचर से वैसे तो केतु के साथ सम्बन्ध चल रहा है लेकिन गुरु भी पंचम में होने और स्वग्रही होने से राहू को बल देने वाला और राहू के द्वारा राज्य भाव के गुरु को अपनी शक्ति देने के कारण जो भी दिमागी कार्य किया गया उसका परिणाम भी मिलने की धारणा से कोई रोक नहीं सकता है.
सरकारी क्षेत्र में या प्राइवेट क्षेत्र में बुध गुरु का योगात्मक प्रभाव अगर किसी प्रकार से लड़ाई झगड़ा कोर्ट केश से जुड़ जाता है तो सरकारी क्षेत्र में तो गुरु का प्रभाव केतु के साथ होने से न्याय में जातक को फल मिलता है और बुध का प्रभाव होने से जातका को दूसरे स्थान पर उपाधि के रूप में फलकारक केतु बन जाता है.इस कुंडली के अनुसार जातक को अपनी पोस्ट में आगे बढ़ने का समय तभी माना जाएगा जब गुरु का जन्म के केतु से गोचर से साथ होगा.इस प्रकार से जातक का उपाधि मिलने का समय आने वाले बाईस मार्च से माना जा सकता है.
केंद्र और त्रिकोण में राहू का प्रभाव सूर्य चन्द्र और गुरु को वर्तमान में मिल रहा है इसलिए जातक को लगातार बुरी खबरों और शरीर तथा संतान संबंधी राज्य संबंधी बेकार के असर मिलने का समय चल रहा है जातक को अपने राहू का तर्पण करवाना बेहतर उपाय माना जा सकता है और किसी प्रकार के तामसी या राजनीति कारण को उठापटक करने से भी जातक को मान हानि का असर मिल सकता है,जातक को अपने पिता पिरवार और अपनी आँखों का भी ख्याल रखना जरूरी है.
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