दिल्ली से एक सज्जन ने सवाल किया है की नवे घर का केतु क्या संतान को ननिहाल से अधिक लगाव का कारण बनाता है? नवा भाव क्या है इसके बारे में जानना बहुत जरूरी है.कुंडली के अनुसार लगन को वर्त्तमान पंचम को भविष्य और नवे भाव को भूतकाल के नाम से जाना जाता है.नवे भाव का लगन पर वही असर पड़ता है जो जातक के पिछले जीवन में था.अगर जातक के नवे भाव को न्याय का घर कहा जाए तो जातक पिछले जन्म में न्याय अधिकारी था,अगर नवे घर को विदेश का घर कहा जाए तो नवे भाव का केतु जातक को विदेशी सभ्यता के द्वारा पला हुआ और धर्म कर्म में अधिक महत्ता के कारण इस जन्म में अपने चाहे गए स्थान में आकर जन्म लेना माना जाता है,इसे शास्त्रों में पिता का घर भी कहा है अगर जातक का के पिता के भाव में केतु उअप्स्थित है तो जाक को नवे भाव का केतु पिता को अपने पिता यानी दादा की अकेली पुत्र संतान का रूप माना जा सकता है,अगर नवे भाव को धर्म का घर कहा जाता है तो पिता के साथ साथ जातक का प्रभाव भी धर्म स्थान की स्थापना करना और प्रवचन करना ज्योतिष आदि को जानना अपने धर्म के अनुसार गद्दी को प्राप्त करना आदि माना जाएगा दूसरे शब्दों में धर्माधिकारी या पादरी की उपाधि भी दी जा सकती है,इसके अलावा यह भाव अगर संचालक के रूप में देखा जाए तो नवे से चौथा भाव यानी बारहवा घर यात्रा संबंधी कारणों का संचालक होने की बात को भी अपने अनुसार देता है इसके अलावा इसे लोगो की सहायता से चलने वाली संस्थाओं जैसे एन जी ओ आदि के संचालक के रूप में भी जाना जाता है,अगर किसी प्रकार से सूर्य ने अपने बल को दिया है तो जातक के पिछले कर्मो के अनुसार बड़े पद में जाने की बात भी मानी जा सकती है गुरु ने अगर अपने प्रभाव को दिया है तो जातक के लिए उच्च शिक्षा के द्वारा बड़े कालेज आदि में व्याख्याता आदि की उपाधि को जाना जाता है.इसी प्रकार से जातक के लिए ननिहाल का भाव माता के चौथे भाव से देखा जाता है अगर किसी प्रकार से केतु का सप्तम में स्थान होता तो जातक अपनी माता की माता से अधिक लगाव रखता,माता के भाव से नवा भाव छठा भाव है इसलिए जातक अपनी उम्र के तेरहवी साल से माता खानदान से किसी प्रकार की बुराई को समझ कर दूर रहना ही पसंद करता है.इस स्थान का केतु पिता के लिए उच्च का और माता के लिए नीच का फल देने वाला होता है,तीसरे भाव में इस भाव के केतु के होते ही राहू की स्थापना हो जाती है इसलिए माता को अपने डर की वजह से पिता के स्थान को नहीं छोड़ना होता है अगर किसी प्रकार की दिक्कत माता को होती है तो यह केतु माता को अधिक सोचने के कारण पेट संबंधी बीमारियों को देने वाला होता है या पाचन क्रिया को बाधित करता है.जातक की उच्च शिक्षा किसी विदेशी समुदाय के सानिध्य में होती है.
kaise kare ketu ka parbhav kam
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