कन्या लगन की इस कुंडली में विवाह के कारक ग्रह की स्थिति छठे भाव में है,यह भाव कर्जा दुश्मनी बीमारी नौकरी तथा बेंक फायनेंस पिटा का पूर्व का जीवन माता के छोटे भाई बहिन बड़ी बहिन या भाई का रिस्क लेने का स्थान माना जाता है,धन और कुटुंब के मामले में गुप्त रूप से धन को रखने का स्थान भी यही भाव है मामा के लिए भी इसी भाव को जानाता है.इस स्थान को राहू का बल लेकर मंगल अपनी चौथी नजर से कंट्रोल करने की कोशिश कर रहा है साथ ही इस कोशिश के अन्दर जीवन साथी का कारक ग्रह गुरु भी आ गया है.गुरु की युति वक्री शनि से है वक्री शनि भी कार्य भाव में है जो मेहनत से कार्य नहीं करने के कारण तथा अधिक दिमाग का प्रयोग करने के बाद सूर्य बुध शुक्र को अपना बल प्रदान कर रहा है और साथ ही अपनी दसवी नजर से विवाह के भाव पर भी वक्री नजर को दे रहा है,इसलिए जातक का वैवाहिक जीवन क्लेश से ग्रस्त है.इसके अलावा भी सप्तम भाव से तीसरे भाव में केतु विराजमान है यह यह केतु न्याय के घर में भी है तथा धन की राशि में होने के कारण न्याय को धन के द्वारा प्राप्त करने के लिए भी माना जा सकता है.कुंडली के लगन पंचम और नवे भाव को जातक के व्यक्तिगत जीवन के लिए तथा तीसरे सातवे और ग्यारहवे भाव को जातक के जीवन साथी के लिए माना जाता है.कुंडली के अनुसार जातक के प्रति केवल केतु का प्रभाव व्यक्तिगत जीवन के लिए है और मंगल राहू चन्द्र का प्रभाव जातक के जीवन साथी के लिए है.पाराशरीय नियमो के अनुसार हर भाव का बारहवा भाव उसका विनाशक होता है के नियम से अगर देखा जाए तो कुंडली का छठा भाव ही वैवाहिक जीवन को दिक्कत देने वाला और समाप्त करने वाला माना जाएगा इस भाव में सप्तम भाव के मालिक के साथ चौथे भाव के मालिक गुरु के होने से और गुरु खुद ही इस सम्बन्ध को समाप्त करने के लिए अपनी युति को देने वाला माना जाएगा.गुरु माता का भी कारक है और माता परिवार के छोटे भाई बहिनों के लिए भी जाना जाएगा तथा गुरु को पत्नी का कारक और पत्नी के जीवन को भी प्रभावित करने वाला माना जाएगा,गुरु को जो असर देने वाले ग्रह है उनके अन्दर सप्तमे से चौथे भाव में वक्री शनि होने से जीवन साथी की माता को भी वैवाहिक जीवन को समाप्त करने में अपनी युति को देना माना जाएगा और यही स्थान जातक के पिता का होने के कारण जातक के पिता का भी इस वैवाहिक जीवन में दखल देने का कारक माना जाएगा,मैंने ऊपर लिखा है की मंगल और राहू का प्रभाव तीसरे भाव में है,मंगल के चौथी दृष्टि राहू का बल लेकर गुरु पर है.मंगल के शमशानी राशि में होने पर तथा राहू को शमशानी प्रभाव देने के कारण भी जातक के लिए गाली गलौज दुर्वचन भय और तांत्रिक शक्तियों के बल पर अपने जीवन साथी के कारक गुरु को संभालने का कारण जाना जा सकता है.मानसिक रूप से भी जीवन साथी के लिए यह प्रभाव घातक माना जा सकता है,अक्सर यह युति जीवन साथी के द्वारा आत्म ह्त्या के कारणों को भी पैदा करती है,जीवन साथी के द्वारा आत्महत्या के लिए प्रयोग में किये जाने वाले पदार्थो में दवाइयां जो अक्सर तनाव को दूर करने के लिए ली जाती है अथवा आग के कारक मंगल और राहू के कारक केरोसिन आदि से भी जीवन साथी अपनी इहलीला को समाप्त करने के लिए माना जा सकता है.
इस प्रकार के कारणों को रोकने के लिए जातक के द्वारा अपने जीवन साथी को बचाने और वैवाहिक जीवन को सुरक्षित रखने के लिए गुरु का ही बल लेना जरूरी है जैसे गुरु चन्द्र का षडाष्टक योग को दूर करने के लिए माँ से दूर रहा जाए,पिता की दिमागी रूप रेखा को अपने खुद के कार्यों को करने के बाद उनके स्थान पर ही सीमित कर दिया जाए,बहिन या इसी प्रकार का भावुकता पूर्ण दिमागी खतरनाक असर देने के कारको पर अक्समात विशवास नहीं किया जाए और किसी प्रकार का लांछन नहीं लगाया जाय,तो कारण से वैवाहिक जीवन बच सकता है.
pandit ji mere sath b esa hi h krpya aap marg darsan kre ..pankaj sharma .14/10/1974 time 5.31am
ReplyDeletejhunjhunu (raj)
mai kaafi bimar rhta hoon pandit ji aap koi tarika bata dijiye
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