मीन लगन की कुंडली है जातक दिल्ली में पैदा हुआ है.गुरु वक्री है जातक के दिमाग में हमेशा हर काम को करने की जल्दबाजी है.गुरु के बारहवे भाव में होने के कारण जातक आसानी से विदेश यात्रा कर सकता है,चन्द्र मंगल राहू पंचम स्थान में है,राशि कर्क है मंगल नीच का प्रभाव दे रहा है,राहू के साथ होने से मंगल की नीचता में और भी अधिक असर बढ़ जाता है.सप्तमेश बुध स्वग्रही है,इस कारण से जीवन साथी का प्रभाव अपने स्थान पर अटल है और उसके द्वारा लाभ भाव में केतु शनि से युति रखने के कारण कार्य करने की शक्ति है इस शक्ति के बल पर वह अपने कार्यों को लगातार विदेश में रहकर कर रही है.जो दिक्कत मंगल की नीचता से जातक को मिल रही है वही प्रभाव जीवन साथी के द्वारा उसके ग्यारहवे भाव में चन्द्र मंगल और राहू की युति होने से वह धार्मिक कारणों से और धर्म तथा भाग्य प्रति आस्था करने के कारण करने से वही कारण जीवन साथी को सफलता देने वाले माने जाते है,लाल किताब में भी जिक्र है की शुक्र के नवे भाव में होने से पत्नी भवसागर से पार करने वाली नाव की तरह से होती है वही बात गर्ग संहिता में बतायी गयी है की जातक की कुंडली में अगर वृश्चिक राशि का शुक्र नवे भाव में है तो जातक को बैतरनी पार करने वाली गाय की तरह से पत्नी का स्वभाव होता है वह जातक की हर मुशीबत को अपने गले बाँध कर उसे और सुअकी संतति को पार कर देने वाली होती है.कुंडली में राहू का स्थान पंचम में होने के कारण त्रिकोण में मकान जमीन जायदाद खुद के व्यापार करने का भाव और इसी प्रकार के कारणों के लिए जाना जाता है,जातक के भाग्येश का पंचम में होने से जातक की संतान विदेशी परिवेश में अपने जीवन को बिताती है और राहू की युति वृश्चिक के शुक्र के साथ होने से जातक को अपने पूर्वजो की संपत्ति को बरबाद करने का कारण भी इसी राहू के गोचर के समय में मिलता है,जैसे वर्त्तमान में राहू का गोचर इसी शुक्र के साथ है और इसी समय में जातक ने अपनी पूर्वजो की संपत्ति को बेच कर विदेश में जाकर अपने शरीर यानी लगनेश गुरु को वक्री स्वभाव से नौकरी में लगा लिया है,लेकिन दिमागी बदलाव और गुरु से वर्त्तमान में चौथा मंगल चन्द्र और राहू के होने से जातक को मानसिक रूप से संतुष्टि नहीं मिल पा रही है जातक अपने को किसी भी प्रकार से जल्दी धनवान बनाने के कारणों को खोज रहा है इन कारणों में वर्त्तमान में गुरु के धन भाव में गोचर करने से तथा इस गुरु के अष्टम में वृश्चिक का शुक्र होने से वह किसी ऐसी कार्य करने की क्रिया को खोज रहा है जिससे उसे जल्दी से कोइ बड़ा धन प्राप्त हो जाए और वह अपने जीवन के गए हुए मुकामो को फिर से प्राप्त कर ले,इस कारण में जातक का दिमाग एंटिक वस्तुओ पर भी जा सकता है या किसी प्रकार के उन कारको को पर भी जा रहा है जो यंत्र मन्त्र तंत्र आदि से जल्दी से जल्दी धनवान बनाने के लिए माने जाते है.
कुंडली के अनुसार सूर्य जातक के परिश्रम के बाद धन देने के लिए माना जा सकता है सूर्य का स्थान विदेश भाव में होने से जातक विदेश में रहकर विदेशी प्राइवेट कंपनियों में नौकरी भी कर सकता है या अपने इस सूर्य का सहारा लेकर नीच प्रकृति के मित्रो से अपने लिए कोइ व्यापार को भी करने के लिए मानसिकता को बना सकता है,पिछले समय में राहू इस सूर्य पर गोचर करने के बाद जातक को साझेदारी में घाटा देकर गया है और इसी कारण से जातक ने दूसरे की जमानत अपने पर लेकर जमानत वाले व्यक्ति के लिए खुद के द्वारा धन को दिया है,लेकिन यह घटना जातक के अन्दर एक सीख भी देकर गयी है की जातक आगे से किसी की जमानत नहीं लेना चाहेगा.अक्सर एक कारण हमेशा से देखा जाता रहा है की जो गृह कुंडली में वक्री है और वह जब गोचर से वक्री होता है तो अपने स्वभाव से भाव और राशि के अनुसार उलटा फल ही प्रदान करता है जैसे गुरु स्वभाव से अपने वक्री समय में रिस्तो के लिए धन के लिए ज्ञान के लिए अपने उलटे प्रभाव को देना शुरू करता है वर्त्तमान में गुरु वक्री है और इस कारण से जातक के लिए जो भी कार्य आदि है उनके लिए आने वाले इकत्तीस दिसंबर तक उलटा फल ही देखने को मिलेगा उसके बाद जातक का दिमाग दुबारा से किसी व्यवसाय को करने के लिए शुरू हो जाएगा.
कुंडली के अनुसार सूर्य जातक के परिश्रम के बाद धन देने के लिए माना जा सकता है सूर्य का स्थान विदेश भाव में होने से जातक विदेश में रहकर विदेशी प्राइवेट कंपनियों में नौकरी भी कर सकता है या अपने इस सूर्य का सहारा लेकर नीच प्रकृति के मित्रो से अपने लिए कोइ व्यापार को भी करने के लिए मानसिकता को बना सकता है,पिछले समय में राहू इस सूर्य पर गोचर करने के बाद जातक को साझेदारी में घाटा देकर गया है और इसी कारण से जातक ने दूसरे की जमानत अपने पर लेकर जमानत वाले व्यक्ति के लिए खुद के द्वारा धन को दिया है,लेकिन यह घटना जातक के अन्दर एक सीख भी देकर गयी है की जातक आगे से किसी की जमानत नहीं लेना चाहेगा.अक्सर एक कारण हमेशा से देखा जाता रहा है की जो गृह कुंडली में वक्री है और वह जब गोचर से वक्री होता है तो अपने स्वभाव से भाव और राशि के अनुसार उलटा फल ही प्रदान करता है जैसे गुरु स्वभाव से अपने वक्री समय में रिस्तो के लिए धन के लिए ज्ञान के लिए अपने उलटे प्रभाव को देना शुरू करता है वर्त्तमान में गुरु वक्री है और इस कारण से जातक के लिए जो भी कार्य आदि है उनके लिए आने वाले इकत्तीस दिसंबर तक उलटा फल ही देखने को मिलेगा उसके बाद जातक का दिमाग दुबारा से किसी व्यवसाय को करने के लिए शुरू हो जाएगा.
kaise or kya kare ??
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