Sir mera vivah kab hoga. Pehle apne december tak me hone ko bola tha ab
aap agle saal june ke baad bol rahe hai. Mera confusion dur karne ki
kripa kare.
यह प्रश्न हमारे एक पहले के जानकार सज्जन ने रीवा से भेजा है.उनका कहना है की पहले मैंने कहा था की शादी दिसंबर तक हो जायेगी लेकिन अब जून के बाद के लिए कहा है,इन सज्जन की कुंडली मीन लगन की है,और शादी के कारक बुध वक्री होकर कार्य भाव में धनु राशि के है,इसके साथ ही बुध गुरु के साथ है,शुक्र मंगल के साथ ग्यारहवे भाव में मकर राशि के है.सूर्य और केतु का स्थान नवे भाव में वृश्चिक राशि में है तथा शनि तुला राशि का होकर अष्टम में विराजमान है.राहू में बुध की दशा चल रही है,यह दशा फरवरी दो हजार तेरह तक चलेगी.
सप्तमेश के कार्य भाव में गुरु के साथ वक्री होने से तीन कारण बनाते है की जब बुध कार्य भाव में होता है तो राजयोग की स्थापना करता है लेकिन उसके विपरीत होते ही जातक के राजयोग की समाप्ति हो जाती है,गुरु और बुध आपस में शत्रु है और शत्रु के साथ बुध स्थापित है.गुरु भी दसवे भाव में जाने से कालपुरुष की कुंडली से नीचका प्रभाव देने के कारणों में माना जा सकता है,इसके साथ ही शुक्र गुरु बुध तीनो ही ग्यारहवे भाव के मंगल और अष्टम भाव के सूर्य के साथ होने के कारण पापकर्तरी योग (दो क्रूर ग्रहों के बीच में सौम्य ग्रह) भी पैदा होता है.राहू में बुध की अन्तर्दशा चलने के कारण रिस्तो के मामले में चलने वाले कनफ्यूजन भी माने जा सकते है जैसे एक तरफ तो पिता खानदान की मर्यादा को भी देखना और दूसरी तरफ से अपनी चाहत या जिसे दिमाग में बैठा रखा है उसे भी नहीं छोड़ना.यह संबंधो के मामले में एक बड़ा कनफ्यूजन माना जा सकता है.
यह प्रश्न हमारे एक पहले के जानकार सज्जन ने रीवा से भेजा है.उनका कहना है की पहले मैंने कहा था की शादी दिसंबर तक हो जायेगी लेकिन अब जून के बाद के लिए कहा है,इन सज्जन की कुंडली मीन लगन की है,और शादी के कारक बुध वक्री होकर कार्य भाव में धनु राशि के है,इसके साथ ही बुध गुरु के साथ है,शुक्र मंगल के साथ ग्यारहवे भाव में मकर राशि के है.सूर्य और केतु का स्थान नवे भाव में वृश्चिक राशि में है तथा शनि तुला राशि का होकर अष्टम में विराजमान है.राहू में बुध की दशा चल रही है,यह दशा फरवरी दो हजार तेरह तक चलेगी.
सप्तमेश के कार्य भाव में गुरु के साथ वक्री होने से तीन कारण बनाते है की जब बुध कार्य भाव में होता है तो राजयोग की स्थापना करता है लेकिन उसके विपरीत होते ही जातक के राजयोग की समाप्ति हो जाती है,गुरु और बुध आपस में शत्रु है और शत्रु के साथ बुध स्थापित है.गुरु भी दसवे भाव में जाने से कालपुरुष की कुंडली से नीचका प्रभाव देने के कारणों में माना जा सकता है,इसके साथ ही शुक्र गुरु बुध तीनो ही ग्यारहवे भाव के मंगल और अष्टम भाव के सूर्य के साथ होने के कारण पापकर्तरी योग (दो क्रूर ग्रहों के बीच में सौम्य ग्रह) भी पैदा होता है.राहू में बुध की अन्तर्दशा चलने के कारण रिस्तो के मामले में चलने वाले कनफ्यूजन भी माने जा सकते है जैसे एक तरफ तो पिता खानदान की मर्यादा को भी देखना और दूसरी तरफ से अपनी चाहत या जिसे दिमाग में बैठा रखा है उसे भी नहीं छोड़ना.यह संबंधो के मामले में एक बड़ा कनफ्यूजन माना जा सकता है.
वर्त्तमान में राहू का गोचर नवे भाव में सूर्य और केतु पर चलने के कारण भी पिता और ननिहाल खानदान के लिए दिक्कत का माना जा सकता है,अथवा किसी प्रकार की कानूनी दिक्कत का होना भी माना जा सकता है.वृहद पाराशर का नियम है की गुरु या शनि जब तुला राशि का होता है तो जातक को वैवाहिक सुख बहुत देर में देता है,कारण जब तक जातक ज्ञान और कार्य के प्रति अपने बेलेंस को बनाना नहीं जान पाता है तब तक गुरु या शनि पारिवारिक जीवन की शुरुआत नहीं करने देता है.
गुरु का शनि के साथ युति बनाने का योग आने वाले ग्यारह मई दो हजार बारह में बनाता है यही समय जातक के द्वारा विवाह करने का माना जाता है,विवाह के कारक ग्रह गुरु और शुक्र ही माने जा सकते है और यही ग्रह पुरुष जातक के विवाह में योग कारक होते है,जातक की कुंडली में शनि गुरु के नक्षत्र विशाखा में विराजमान है और नक्षत्र का पाया तीसरा होने के कारण वह शुक्र की श्रेणी में आजाता है.
can you tel me about the marriage yoga
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