कुंडली के अनुसार वृष लगन की कुंडली है और पंचम स्थान को संतान का भाव कहा
जाता है,इस लगन के पंचम में बुध की कन्या राशि आती है,इसलिए संतान का कारक
बुध को माना जाता है.बुध का स्थान कुंडली के आर्द्रा नक्षत्र में है जिसका
मालिक राहू है इसलिए संतान के प्रति आशंका का होना भी माना जा सक़ता
है.लेकिन इस नक्षत्र के दूसरे पद का मालिक शनि है इसलिए संतान के कारको में
देरी को भी माना जा सकता है,यह देरी विवाह के बाद के समय से मानी जा सकती
है.कुंडली के अन्दर राहू कर्क राशि का होकर तीसरे भाव में विराजमान है और
उसकी दृष्टि पंचम भाव में विराजमान गुरु और वक्री शनि पर है,इस प्रकार से
रिश्ते को बनाने वाला और रिश्ते को चलाने वाला गुरु राहू के घेरे में है
साथ ही कार्य के क्षेत्र का विकास करवाने वाला और सरकार के क्षेत्र में
विराजमान शनि वक्री को राहू के द्वारा बल मिलने के कारण राहू ही सरकारी
नौकरी को देने वाला है.राहू ने अक्टूबर दो हजार दस में चन्द्र लगनेश सूर्य
लगनेश और लगनेश शुक्र बुध को अपने द्वारा सप्तम दृष्टि से देखा था इसलिए
राहू ने ही शादी का कारण दिया था,यही राहू संतान को इसलिए देने वाला माना
जाएगा क्योंकि राहू का प्रभाव संतान भाव पर होने के कारण और संतान के कारक
बुध पर अपना असर देने के साथ लगनेश और पत्नी के कारक शुक्र पर भी राहू का
असर संतान के लिए माना जाता है.राहू का गोचर संतान भाव पर चन्द्र राशि से
आने वाले जनवरी दो हजार तेरह से शुरू होगा जभी संतान की पैदाइस के लिए समय
माना जा सकता है.केतु का असर संतान की राशि सिंह पर होने के कारण अगर कोई
परिवार का व्यक्ति या किसी की संतान को जैसे भानजा भतीजा साला या पत्नी की
बहिन का पुत्र या पुत्री को घर में रखा जाता है तो संतान के आने में देरी
हो सकती है.केतु के इस प्रभाव को दूर करने के लिए केतु के उपाय करना जरूरी है.
is it possible you tell me
ReplyDeleteAli naqi (Azmi) 21/10/1969 please hame bhi kuch bataia hame appna jivan aisa lagta hai ki jaise khatam ho gaya hai
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