प्रस्तुत कुंडली दिल्ली के एक सज्जन की है उन्हें शक है कि उन्हें कोइ गुप्त दुश्मन परेशान कर रहा है जो किसी भी प्रकार से व्यवसाय को आगे नहीं चलने देता है और घर में भी अशांति बनी रहती है.सिंह लगन की इस कुंडली में राहू मित्र भाव में है और केतु परिवार भाव में विराजमान है.लगनेश सूर्य नवे भाव में चन्द्रमा और बुध के साथ विराजमान है.भाग्य के कारक मंगल धन भाव में वक्री होकर शनि वक्री के साथ है.जातक का जन्म अमावस्या के योग में हुया है तीसरे भाव में गुरु वक्री है,तीन ग्रहों के वक्री होने पर जब भी कोइ ग्रह अपनी चाल में वक्री होगा तो जातक को कोइ न कोइ परेशानी आनी शुरू होगी और जातक के लिए यह दिमाग में आना शुरू हो जाएगा कि अभी तक तो सभी काम सही चल रहे थे लेकिन अचानक यह काम क्यों खराब होने लगे.व्यापार में जो सौदा अभी तक लोग आराम से कर रहे थे वह जो बेच रहा था लोग आराम से खरीद रहे थे लेकिन अचानक इस खरीद बेच में रोक कैसी लग गयी.कुंडली में तीन लगने अपना असर जीवन में डालती है इन तीनो के बिना जिन्दगी को कैसे भी नहीं पढ़ा जा सकता है और न ही अपनी खुद की जिन्दगी को समझा जा सकता है.पहली लगन जातक की उसके बाद चन्द्र की फिर सूर्य की लगन तीनो लगनो पर जो ग्रह सबसे अधिक प्रभाव दाल रहे होते है वही ग्रह जीवन में सुख और दुःख देने के कारक बन जाते है.
कुंडली में राहू के द्वारा ११,१,३,५,और सातवा भाव बाधित है,इनमे वक्री गुरु,केतु और शुक्र मुख्य है.राहू के द्वारा केतु को बल मिला है और केतु के द्वारा जिन ग्रहों पर सर्वाधिक असर मिला है वे शुक्र बुध सूर्य चन्द्र और जो भाव बाधित है वे पंचम,सप्तम नवं,एकादस और लगन को केतु ने बाधित किया है.राहू केतु जब कुंडली में अधिक प्रभाव देते है तो जातक कार्य तो भूत की तरह से करता है लेकिन जो दोस्त पहले घरेलू संबंधो में बने रहते है वे ही जब अपने काम को करने की कोशिश करते है तो वे जातक के काम काटने लगते है और किसी न किसी प्रकार से जातक के प्रति बदनामी करते रहते है.जातक को राहू केतु के उपाय करने से उन दोस्तों के द्वारा की जाने वाले बुराइयों और दुश्मनी में कमी आने के कारण बनाने लगेंगे.
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